शनिवार, मार्च 16, 2024

जब जल, जंगल और ज़मीन पर विकास के नाम पर खतरे मंडराए

कैसे लड़ी जानवरों ने भी अपने अस्तित्व और संघर्ष की वह लड़ाई 

एक संकेतक और काल्पनिक रिपोर्ट:-कार्तिका कल्याणी सिंह


जंगल के घर और ठिकाने
: 15 मार्च 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//इर्दगिर्द डेस्क):

आधी रात्रि होने को है। कुछ देर बाद तारीख भी बदल जाएगी। फिर कुछ और घंटे सुबह की रौशनी सामने आने लगेगी लेकिन उससे पहले संघर्षों का एक अदभुत दृश्य सामने है। जीवन के अस्तित्व की लड़ाई लड़ी जा रही है। यह लड़ाई उस विकास के खिलाफ भी जिसे मानव ने जनून की तरह अपना लिया है। पुराना बहुत कुछ है जो आज भी काम का है लेकिन उसकी बलि दे दी गई है। 

मानव समाज का एक समूह अपने हिसाब से दुनिया बना रहा है। वह आज का ईश्वर हो गया है। बड़े बड़े विकसित देश इसी तरह के रौबदाब का ही दिखावा कर रहे हैं। मानव समूहों की भीड़ जब अचानक जंगलों में तबाही मचाने आने लगी तो जानवरों के झुण्ड जंगल में के अंदर दूर तक घुसते चले गए। उन्हें विकास के इस हमले से छिपना जो था। यह  उनकी खानदानी ज़मीन थी जिसे मानव समाज उनके सामने ही छीनता चला जा रहा था। 

जानवरों के समूह भयभीत भी थे लेकिन इसके प्रतिरोध की तैयारी भी कर रहे थे। छिपने की चाह उन्हें जंगल के दुर अंदर तक ले जा रही थी। बाहर से आती सूर्य की रौशनी बहुत पीछे छूट गई थी। जैसे-जैसे वे जंगल में गहराई तक भटकते गए, जानवरों के समूह को हवा में बदलाव नज़र आने लगा। पत्तियाँ, जो आमतौर पर हवा में सरसराहट करती थीं, अब भी शांत थीं। जंगल की तरफ आ रही हवा में बड़ी बड़ी मशीनों के डीज़ल और पैट्रोल की गंध भी आरही थी और मशीनों का शोर भी। जानवरों को यह मशीनें किसी बड़े से राक्षस की तरह लगा रहीं थी। 

उन्होंने एक अपरिचित मशीन की आवाज़ का अनुसरण किया, जो हर कदम के साथ तेज़ होती जा रही थी। अचानक, वे घने पत्तों के बीच से निकले और एक विशाल अर्थमूवर को देखा, जिसके धातु के पंजे मिट्टी में खुदाई कर रहे थे। उनके सामने उनके घर के अवशेष पड़े थे: पेड़ गिरे हुए थे, शाखाएँ बिखरी हुई थीं, और एक बार हरा-भरा जंगल एक उजाड़ बंजर भूमि में बदल गया। उनके क्षेत्र के बीच से एक नया राजमार्ग बनाया जा रहा था, जो उन्हें बाकी जंगल से काट रहा था। वे सदमे में खड़े थे, समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा कैसे हो सकता है।

जैसे ही उन्होंने विनाश का पैमाना देखा, जानवर अपने अगले कदम पर बहस करने लगे। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि उन्हें मनुष्यों और उनकी मशीनों को दूर भगाने के लिए अपनी संयुक्त शक्ति का उपयोग करके वापस लड़ना चाहिए। दूसरों ने तर्क दिया कि यह व्यर्थ था; इंसानों ने खुद को बहुत शक्तिशाली और अथक साबित कर दिया था। युवा हिरन का बच्चा, जो अभी भी दुनिया की कठोर वास्तविकताओं से अछूता था, उसने अपने बड़ों से आशा न छोड़ने का अनुरोध किया। उसकी बातें सुन कर बड़े बूढ़े जानवर हंसने भी लगे लेकिन युवा हिरण की बातें सचमुच ढांढ़स बढ़ाने वाली थी। उसकी बातों में दम था। 

उसके पास एक विचार था. उसने देखा था कि कैसे इंसानों ने अपनी मशीनों का उपयोग करके अपने आसपास की दुनिया को आकार दिया, और उसका मानना था कि घुसपैठियों के खिलाफ अपनी क्षमताओं का उपयोग करने का एक तरीका होना चाहिए। वह तरीका जिसमें अक्ल का इस्तेमाल हो। शरीरक बल से इस मानव हमले के खिलाफ निपटना आसान नहीं था। उस पल में, उसे तुरंत ही दृढ़ संकल्प की वृद्धि महसूस हुई, एक अहसास हुआ कि उसकी किस्मत में कुछ ऐसा बड़ा है जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। उसे अपने अंर्तमन से एक शक्ति का आना महसूस हो रहा था। 

युवा हिरण के बच्चे ने बहुत ही हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ अन्य जानवरों को अपने चारों ओर इकट्ठा करना शुरू कर दिया। उसने इस विशेष सभा में सभी को अपनी योजना समझाई। उसने कहा-वे राजमार्ग निर्माण की प्रगति को धीमा करने के लिए अपने शरीर और दिमाग का उपयोग करेंगे। वे सड़क के नीचे सुरंग खोद सकते थे, और अधिक गहरी सुरंग खोदते थे जब तक कि सड़क अस्थिर न हो जाए और उनके पैरों के नीचे ढह न जाए। वे अपने संयुक्त वजन और संख्या का उपयोग करके उन विशाल मशीनों को गिराने के लिए एक जीवित दीवार भी बना सकते थे जो उनके घर को खतरे में डाल रही थीं। अस्तित्व की इस लड़ाई को लड़े बिना कोई दूसरा चारा ही नहीं बचा था। 

उस युवा हिरण की बातें सुन कर अन्य जानवर पहले तो सशंकित थे, लेकिन हिरन के बच्चे का दृढ़ संकल्प संक्रामक था। उन्हें उसकी योजना में बहुत बड़ी संभावना भी नज़र आने लगी और उन्हें अहसास हुआ कि कोशिश करने से उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है जब की जीतने के लिए एक पूरा संसार उनके सामने है। 

बस सहमति होते ही वे तुरंत काम पर लग गए, प्रत्येक जानवर ऑपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था। हर किसी को अपनी ज़िम्मेदारी का पूरा अहसास अहसास था। उनका भोजन पानी और जंग सब कुछ बेहद अनुशासित हो गया। 

इस लड़ाई के हर मैदान पर सभी ने अपनी डयूटी संभाल ली थी। गिलहरियां और खरगोश झाड़-झंखाड़ में इधर-उधर भागते हुए औजार और सामग्रियाँ इकट्ठा करने लगे। ऊदबिलावों और बिज्जुओं ने सुरंगें तेज़ी से सुरंगें खोदनी खोदनी शुरू कर दिन। इस अभियान के अंतर्गत उन्होंने अपने अस्थायी किले की नींव को मजबूत किया। हिरणों और मृगों ने अपने आप को सर्वाधिक जोखिम में रखते हुए एक जीवित दीवार बनाई, वे कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे और निर्माणाधीन वाहनों का सामना कर रहे थे। उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि खतरे में थी। इसकी रक्षा उनके लिए अब सबसे अधिक आवश्यक कर्तव्य की तरह उनके सामने आ खड़ी हुई थी। 

जानवरों और पक्षियों के समूह  जिस रक्षा प्रणाली के अंतर्गत अपनी रक्षा में लगे थे वह एक तरह से गोरिल्ला जंग से मिलती जुलती भी थी। इधर मानव शायद बेखबर था। मनुष्यों ने, अपने पैरों के नीचे पनप रहे प्रतिरोध से अनभिज्ञ होकर, अपनी निरंतर प्रगति जारी रखी। उन्होंने अर्थमूवर्स को आगे बढ़ाया, इस बात से अनजान कि जैसे-जैसे ज़मीन खिसकने लगी और सुरंगें गहरी होती गईं, हर कदम कठिन होता जा रहा था। 

जानवरों ने अपनी सूझबूझ और एकता के साथ अथक परिश्रम किया, विनाश के ज्वार को रोकने के लिए संघर्ष करते समय उनकी मांसपेशियों में बुरी तरह से खिंचाव आ गया था। वे जब भी थकते तो बस कुछ पल सिस्टा कर फिर से तरोताज़ा हो जाते। यह सब देख कर युवा हिरन का दिल आशा और दृढ़ संकल्प से भरा हुआ था, उसने अपने साथियों को और आगे बढ़ने का आग्रह किया, यह विश्वास करते हुए कि वे प्रगति की इन ताकतों के खिलाफ इस लड़ाई को हर हाल में जीत सकते हैं।

जैसे-जैसे निर्माण वाहन करीब आते गए, जानवर जमीन के माध्यम से अपने इंजनों के कंपन को महसूस कर सकते थे। ऊदबिलाव और बिज्जू बेहद उत्साहित थे। उन्होंने एक साथ काम करते हुए, अपनी सुरंगों को बहुत ही तेज़ी से मज़बूत किया और भागने के नए रास्ते बनाए। इनकी सुरंगे देख कर बड़े बड़े किलों और जंगलों में मानव की बनाई सुरंगें भी मत खा रही थीं। उनके साथ ही गिलहरियाँ और खरगोश इधर-उधर भागते रहे और इस लड़ाई में ज़रूरी  उपकरण और आपूर्ति इकट्ठा करते रहे। हिरण और मृग कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे, जिससे एक अभेद्य दीवार बन गई जिसने बुलडोजर और उत्खनन कर्ताओं की प्रगति को काफी धीमा कर दिया था। 

अफ़सोस कि अपनी जन्मभूमि और अपनी कर्मभूमि अर्थात जंगलों को बचाने के लिए जिस शक्ति, बलिदान और हिम्मत का परिचय ये जानवर दे रहे थे उसे दुनिया को बताने के लिए वहां न कोई इतिहासकार था, न कोई लेख, न कोई टीवी चैनल और न कोई अख़बार का प्रतिनिधि। उनकी बहादुरी दुनिया को दिखाने वाला वहां कोई नहीं था। मानव की अमानवीय बर्बरता दिखाने वाला भी वहां कोई नहीं था। कुछ जानवर ही सोच रहे थे कि उनकी बहादुरी और कुर्बानी गुमनामी के अंधेरे में गुम हो कर रह जाएगी।  फिर भी सभी जुटे हुए थे। सम्पदा बनाने और  शोहरतें कमाने की लालसा और इच्छा से कोसों दूर। त्याग और बलिदान की एक ऐसी जंग लड़ी जा रही थी जिसमें केवल धरती मां का शुद्ध प्रेम नज़र आ रहा था। अपनी जन्मभूमि के साथ अटूट लगाव की एक तस्वीर नज़र आने लगी थी। 

इस बीच, युवा हिरण के बच्चे ने फिर से कमाल किया। उसकी ऊर्जा सचमुच अटूट लग रही थी, प्रोत्साहन के शब्दों के साथ उसने अन्य जानवरों को एक बार फिर से एक छोटी सी लेकिन आपात बैठक के लिए एकजुट किया। उसने उन्हें उन सभी अन्य जानवरों की कहानियाँ भी उन्हें सुनाईं, जिन्होंने कठिन से कठिन बाधाओं का सामना किया और विजयी हुए, जिससे सबसे अधिक संदेह करने वाले लोगों के मन में भी आशा की किरण जगी। उसका दृढ़ संकल्प संक्रामक था, और यह जंगल की आग की तरह पूरे समूह में फैल गया। शायद पहली बार इस जंगल में इन जानवरों ने अपने बहादुर पुरखों और योद्धाओं का इतिहास पढ़ा था और उससे प्रेरणा लेने की ज़रूत भी महसूस की थी। अतीत उनके सामने वर्तमान बना नज़र आने लगा था। 

जानवारों का यह ज़ोरदार जवाबी संघर्ष रंग भी लाने लगा था। जैसे-जैसे मनुष्यों ने जल जंगल और ज़मीन पर अपने एकाधिकार और अपने कब्ज़े की अपनी निरंतर प्रगति जारी रखी, उन्होंने ध्यान देना शुरू कर दिया कि उनकी मशीनों को आगे बढ़ने में कठिनाई हो रही थी। उनके नीचे की ज़मीन खिसक रही थी और अस्थिर थी, और वे समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा क्यों है। उन्हें शायद बहुत कम ही पता था कि जानवर अपने घर और देश को बचने के लिए लगातार कड़ी मेहनत कर रहे थे, सुरंगें खोद रहे थे और अपनी सुरक्षा को मजबूत कर रहे थे। इस तरह जानवर एक दुर्जेय शक्ति बन गए थे, जो अपनी बुद्धि और ताकत का उपयोग करके मनुष्यों और उनकी मशीनों को मात दे रहे थे। मानव की बड़ी बड़ी मशीनें जानवरों की एकता और क्षमता के सामने हारती हुई लगने लगी थी। 

इस बीच, युवा हिरण का बच्चा अपने साथी जानवरों के लिए आशा और लचीलेपन का प्रतीक बन गया था। उनके नेतृत्व कौशल और अटूट दृढ़ संकल्प ने उन्हें दुर्गम बाधाओं का सामना करते हुए भी लड़ना जारी रखने के लिए प्रेरित किया। उस युवा हिरणी की मां भी जानती थी कि वे प्रगति के खिलाफ इस लड़ाई को हमेशा के लिए नहीं जीत सकते, लेकिन उन्हें यह भी विश्वास था कि वे हर हाल में बदलाव ला सकते हैं। वह अपने उस हिरण बेटे पर गर्व से सिर ऊंचा कर के आसमान की तरफ देख रही थी जिसने शेर जैसा कलेजा दिखाया है। अस्तित्व की लड़ाई कमज़ोर से कमज़ोर लोगों को भी कितना बहादुर बना देती है। जब मन की शक्ति तन की शक्ति के साथ आ मिलती है तो ऐसा चमत्कार होना ही होता है। 

जंगलों पर कब्ज़ा जमाने को आतुर मानव समाज तरह तरह के धुएं और ज़हरों का भी इस्तेमाल करने लगा। मशीने भी नई नई मंगवा ली गईं। हरे भरे वृद्ध विशाल पेड़ों को काट कर उनकी जगहों पर कंक्रीट की बड़ी बड़ी इमारतें खड़ी करने का अभियान ज़ोरों पर था। जानवर हैरान थे कि जिस विकास के लिए मानव पागल हुआ जा रहा है उसके पूरा होने पर मानव भोजन में क्या खाएगा? प्यास लगने पर पानी कहां से पिएगा? इन सभी से बढ़ कर बड़ी समस्या यह भी कि जंगलों के पेड़ों को काट कर सांस कहां से लेगा? पर शायद उनकी सुनने वाला वहां कोई नहीं था। एक मात्र लड़ना ही उनके सामने बाकी था। और कोई चुनाव नहीं था। 

इसी बीच दो लोग कुछ गाते हुए उधर से गुज़र रहे था। क्या गए रहे थे समझ में नहीं आ रहा था। उन्होंने नीलवन्ती रन्थ जाने वाले एक बहुत ही समझदार वृद्ध सन्यासी से सम्पर्क किया। उसे सभी जानवरों और पशुपक्षियों की ज़ुबानें आती थी। वह सभी की बात समझ सकता था और सभी से बात कर सकता था। उसने दो राहगीरों का वो अदभुत गीत सुना और बताया अरे ज़ेह तो पंजाबी साहित्य की अनमोल है। यह पाश की काव्य रचना है--असीं लड़ागे  साथी--असीं लड़ागे  साथी! अर्थात हम लड़ेंगे साथी! हम लड़ेंगे साथी!

इस काव्य रचना को सुनते ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे जानवरों के हौंसले और बुलंद हो गए। उन्होंने आक्रमणकारियों के खिलाफ अपने शरीर को हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हुए सुरंगें खोदना और जीवित दीवारें बनाना जारी रखा।

जानवरों ने इस लड़ाई के साथ ही गीत गाते जा रहे उन दो राहगीरों को सलाम किया  और धन्यवाद भी कहा कि आप ने हमारे हक़ में आवाज़ बुलंद की। उन दो राहगीरों ने दोनों हाथ मुक्के की तरफ ऊपर उठाए और नारे लगाए हम आपके साथ हैं। उन्होंने वायड भी किया हम आपकी आवाज़ मेधा पाटकर तक भी पहुंचाएंगे और हिमांशु कुमार तक भी और मेनका गांधी तक भी। 

इसी बीच युद्ध जारी रहा। जैसे-जैसे निर्माण आगे बढ़ा, मनुष्य अप्रत्याशित असफलताओं से और अधिक निराश होते गए। वे इस पर काबू पाने की उम्मीद में बड़ी मशीनरी और अधिक श्रमिकों को भी लेकर आए लेकिन उनकी कोशिशे नाकाम होने लगीं। 

गुरुवार, जून 22, 2023

बहुत लोकप्रिय और आकर्षक है कुम्भकर्ण पर्वतमाला

नेपाल में कंचनजंगा पहाड़ों के साथ ही स्थित है


मोहाली
: 23 जून 2023: (इर्द गिर्द डेस्क//सहयोग टूर्ज एंड ट्रेवेल्स):: 

जब भगवान श्री राम और रावण में भयानक युद्ध शुरू हुआ तो हर दिन हर पल सनसनी भरा होता था कि न जाने आज क्या होगा .जब रावण के सभी योद्धा हार कर बारी बारी से मारे जाने लगे तो रावण को अपने उस भाई की याद आई जो सोया हो रहता था। उसे वरदान की बजाए वास्तव में निन्द्रासन का श्राप ही मिला हुआ था जिस वजह से वह सोया ही रहता था।  पौराणिक कथा के अनुसार कुंभकरण ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी। लेकिन जब वरदान मांगने का सुअवसर आया तो माता सरस्वती उसकी जीभ पर आ कर बैठ गईं, जिसके कारण उसकी जबान फिसल गई और उसने इंद्रासान की बजाए निद्रासन मांग लिया। 

तस्वीर विकिपीडिया से साभार By Jankovoy - Own work,7

इसे सबसे पहले रावण ने महसूस किया कि निन्द्रासन तो एक तरह से श्राप ही हो गया।  बाद में कुम्गभकरण को भी अपनी गलती का अहसास हुआ तो रावण के कहने पर ब्रह्मा जी ने उसे छह माह तक सोने का वरदान दे दिया। इस वरदान के साथ ही व्रह्मा जी ने ये चेतावनी भी दे दी कि इसके बाद वह केवल एक दिन के लिए उठेगा। इस एक दिन के बाद फिर सो जाया करेगा। चेतावनी में पूरी तरह सपष्ट शब्दों में कहा गया था कि यदि इस से पहले कुंभकरण उठेगा या उसे उठाया जाएगा तो तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। इसके बावजूद हालत ऐसे बने थे कि कुम्भकरण को उठाना ही एक मात्र विकल्प बचा था। बहुत आकर्षक है कुंभकर्ण पर्वतमाला  

गौरतलब है कि कुंभकरण भी रावण की तरह ज्ञानी था। उसकी साधना कम नहीं थी। कुंभकरण के बारे में कहा जाता है कि वो अत्यंत विद्वान था।  उसे भी वेद, शास्त्र आदि की पूरी जानकारी थी। इस संबंध में शोघ करें तो पता चलता है कि जब कुंभकरण जागता था तो उस दौरान भी वह शोध कार्य किया करता था।  कुम्भकरण के बारे मैं बहुत कुछ इतना अच्छा भी है कि वह आम लोगों के सामने नहीं आ सका।  

विदित हो कि कुंभकर्ण के पिता का नाम ऋषि विश्रवा था। कुंभकरण भूत और भविष्य का भी ज्ञाता था। इसीलिए उसने रावण को कई बार समझाने की भी पूरी कोशिश की लेकिन रावण ने उसकी एक न मानी। हालाँकि उसे नींद से उठाना भी आसान नहीं हुआ करता था लेकिन लंका पर संकटकाल आ चूका था। स्थाथिति गंभीर बन चुकी थी।  इस लिए हर ढंग तरीका प्रयोग कर के उसे उठाया गया।  

जब उसे उठाने में कामयाबी मिल गई तो उसे भोजन करवाना आवश्यक  हुआ करता था। यह भोजन भी कोई छोटी समस्या नहीं थी।  उसे भोजन वगैरा करवा कर सारी समस्या बताई गई की लंका संकट में है। 

इस पर रावण के भाई कुम्भकरण ने रावण की आलोचना भी की और उसकी नीतियों को भला बुरा भी कहा। लेकिन भाई होने के नाते उसने युद्द में जाना स्वीकार कर लिया। श्रीमान कुम्भकरण को युद में जाते हुए देख कर लंका की जनता भी उत्साह में आ गई। इतने विराट शरीर वाला बाहुबली जब लंका की गलियों और बाज़ारों में चल रहा था तो किसी पर्वत से कम नहीं लग रहा था। उसकी विशाल और शक्तिशाली भुजाएं युद्ध में भय का माहौल बना रही थी। 

युद्द के मैदान में श्री राम की सेना को अपने पांवों के नीचे कुचलते हुए उसने त्राहि त्राहि मचा दी। युद्ध क्षेत्र में जाते ही उसने कोहराम मचा दिया। हर तरफ उसने तबाही मचा रखी थी। श्री राम की सेना का कोई भी योद्धा उसे मारने में सक्षम ना था। संकट विकराल था। तब स्वयं श्री राम ने कुंभकरण से युद्ध किया और उसका एक हाथ काट कर उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया। 

यह बात तो भगवान श्री राम ने भी मानी कि न भूतो न भविष्यति।  कुम्तीभकरण जैसा न कोई पहले था न ही कभी  होगा। एक विशेष तीर के माध्यम से महान योद्धा कुम्भकरण के कटे हुए सिर को दूर पहाड़ी पर रखवा दिया। कहते आज भी हिमालय की कंचनगंगा पहाड़ी के पास एक पहाड़ है जो नेपाल में स्थित है। उसका नाम कुंभकरण हैं ये वही पहाड़ी है जहां पर कुंभकरण का सिर गिरा था। नेपाल में स्थित कुंभकरण पर्वत हिंदी में 

उल्लेखनीय  है कि कुम्भकरण पर्वत, जो नेपाल में स्थित है, हिमालय की एक प्रमुख पर्वतमाला है। इसका अपना ही गौअर्यव भी है और महत्व भी। यह पर्वत नेपाल तथा चीन (तिब्बत) की सीमा पर स्थित है और अपनी विशालता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। यहाँ पर्यटकों का लगाव बहुत अच्छा है। 

इसकी चर्चा करें तो पता चलता है कि कुंभकरण पर्वतमाला को मुख्य रूप से तीन पहाड़ीय शिखरों से दूर रह कर भी पहचाना जा सकता है। मान्यता है। इनमें से सबसे ऊँचा शिखर जिसे कुंभकरण शिखर भी कहा जाता है, की ऊँचाई लगभग 8,586 मीटर (28,169 फीट) है। इसी पर रखा गया था कुंभकरण का कटा हुआ। दुसरे शिखर का नाम कर्णाली शिखर है, जो 7,925 मीटर (26,001 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। इसे देख कर एक विशेष किस्म का सौन्दर्य बोध जागता है। तीसरे  शिखर का नाम राजारानी शिखर है, जो 7,711 मीटर (25,299 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। इन तीनो शिखरों  इस जगह की अलग किस्म की पहचान भी बनती है। यहां आने वाले पर्यटक इसे दूर से ही पहचान जाते हैं। 

यहां प्राकृति की सुंदरता भी देखने वाली होती है।  कुंभकरण पर्वतमाला वनस्पति और वन्यजीवों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहां पेड़ पौधों, फूलों, जन्तुओं और पक्षियों की विविधता भी बहुत नज़दीक देखी जा सकती है। इसके अलावा, यहां के धरती के नीचे के क्षेत्रों में सफेद हिमाच्छादित पर्वतीय चोटियाँ, ग्लेशियर्स, झीलें और नदियाँ भी बहुत खूबसूरती में नज़र आती हैं। 

कुंभकरण पर्वतमाला यात्रियों के बीच लोकप्रिय है, जो इसके प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए आते हैं। पर्वतारोहण, ट्रेकिंग, जंगल सफारी, और पर्यटनीय गाँवों का दौरा कुछ लोकप्रिय कार्यक्रम हैं। यहाँ आने वाले लोगों को आमतौर पर तिब्बती बौद्ध बिहारी जीवनशैली, धार्मिक स्थलों, और स्थानीय ग्रामीण संस्कृति का भी अनुभव करने का मौका मिलता है। बौद्ध तिब्बतिय साधकों से मिला कर यहां अध्यात्म और समाधि का भी अलौकिक सा अनुभव होने लगता है। मन की एकाग्रता बढ़ जाती है इंसान बहुत ही सहजता से ध्यान में उतरने लगता है। उसकी अध्यात्मिक उड़ान को यहाँ पंख मिलने का अहसास होने लगता है।  

शनिवार, जून 17, 2023

हमारे आसपास के क्षेत्रों में स्थित सैलानी स्थल भी होते हैं अच्छी जगह

 कम खर्चे में मिलते हैं सैर सपाटे के याद गारी अनुभव 


मोहाली
: 17 जून 2023: (इर्दगिर्द डेस्क टीम)::

दूरदराज के क्षेत्रों में एक सैलानी की तरह जाने की इच्छा और ललक अक्सर सभी के मन में बनी रहती है लेकिन बहुत दूर निकलने से पहले खुद से एक सवाल ज़रूर कीजिए कि क्या आपने आसपास के सैलानी स्थल देख लिए? बहुत अच्छा अनुभव होता है इन्हें देखने के मिशन में भी। नज़दीक होने के कारण खर्चा भी काम होता है और आपके आधार क्षेत्र में एक प्राकृतिक और भावनात्मक विस्तार भी आने लगता है। 

क्षेत्र और स्थान के अनुसार, आपके आसपास कई सैलानी स्थल हो सकते हैं। यह सारा सिलसिला और इनका अतापता आपके निवास स्थान के आधार पर बदल भी सकता है। हालांकि यहां आपके लिए कुछ प्रमुख सैलानी स्थलों का उल्लेख किया भी जा रहा है लेकिन यह बहुत संक्षिप्त है। यदि आपको ज़्यादा विवरण चाहिए तो आप हमारी टूर ट्रेवल गाईड टीम से भी सम्पर्क कर सकते हैं। 

उत्तर भारत में हिमालय दर्शन तो बहुत ही कमाल का अनुभव रहता है। यदि आप भारत में रहते हैं, तो हिमालय एक प्रमुख सैलानी स्थल है। यदि आपका निवास उत्तर भारत है तो यह सब बहुत नज़दीक रहेगा। यहां आपको नेपाल, भूटान, और तिब्बत जैसे सुंदर पर्वतीय प्रदेश भी देखने को मिलेंगे जहाँ जाना किस्मत की बात ही कही जा सकती है। तिब्बत के लोगों से मिलना एक अध्यात्मकअनुभव भी है। हिमालय में जा कर पहुंचे हुए साधु संतों के दर्शन भी सम्भव हो सकते हैं। यदि के अंतर्मन में ऐसे संतों के दर्शनों की कोई प्यास है तो आपकी मनोकामना पूरी भी होगी। 

इसी तरह हिमाचल प्रदेश में शिमला बेहद कमल का है। शिमला भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश की राजधानी है और पर्वतारोहण के लिए एक लोकप्रिय स्थान है। यहां पर्वतारोहण, ट्रेकिंग, और पर्वतीय वन्यजीवन का आनंद लिया जा सकता है। शिमला में साहित्य, कला और फिल्म निर्माण से जुड़ा हुआ भी बहुत कुछ है।  प्रदेश की राजधानी होने के कारण यहाँ अक्सर पत्रकार सम्मेलन भी होते रहते हैं और केंद्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लोग भी आए रहते हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन भी होते ही रहते हैं।  

इसी सिलसिले में देवदार गढ़ भी एक विशेष जगह है। उत्तराखंड, भारत में स्थित देवदार गढ़ भी एक लोकप्रिय सैलानी स्थल है। यहां बर्फ के मैदान, आकर्षक पर्वतीय झरने, और शानदार दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है। उत्तराखंड में पहुंच कर भी ऐसा लगने लगी जैसे कि देवभूमि में पहुँच गए हों। इस तरह की अनुभूति यहां बार बार होने लगती है। धार्मिक स्थलों की भूमि होने के कारण यहां बहुत सी धार्मिक और आध्यात्मिक टँगें भी महसूस होने लगती है। यदि आप संवेदनशील हैं तो आपको ऐसा भी लगने लगेगा कि जैसे स्वयंमेव ही ध्यान किसी शक्ति विशेष से जुड़ने लगेगा। 

इसी तरह चुनौतियों में रोमांच के मज़े ढूंढ़ने की बात करें तो एवरेस्ट बेस कैम्प ऐसे बहुत से अनुभवों का खज़ाना हो सकता है जहाँ बहुत कुछ मिल सकता है। ज़मीन की हकीकत पर खड़े हो कर आसमान की ऊंचाई छूने जैसा अहसास एक अनूठा अनुभव देता है। गौरतलब है कि एवरेस्ट पर्वतमाला, नेपाल में स्थित है और यहां एवरेस्ट बेस कैम्प वॉक एक प्रसिद्ध सैलानी यात्रा है। यह सैलानी यात्रा पर्वतारोहण का एक उत्कृष्ट अनुभव प्रदान करती है। जोखिम और चुनौतियों को नज़दीक हो कर  शक्ति और क्षमता में वृद्धि ही होती है। 

इस चर्चा के साथ ही तानाह राता की चर्चा भी ज़रूरी है। अरुणाचल प्रदेश, भारत में स्थित तानाह राता एक अत्यंत सुंदर सैलानी स्थल है। यहां आपको वन्य जीवन, झरने, और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने का मौका मिलेगा। यहां भी मिलेजुले और अनूठे अनुभव होंगें जो आपको बार बार यहाँ आने को प्रेरित करेंगे। 

सैलानी स्थलों और घूमने  मामलों में ये कुछ उदाहरण हैं जो बेहद दिलचस्प हैं। इनके इलावा भी आपके आसपास के क्षेत्र में अन्य सैलानी स्थल भी हो सकते हैं। आप अपने नजदीकी पर्यटन ब्यूरो या इंटरनेट से भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आपको हमारी टूर ट्रेवल टीम भी सहायता कर सकती है। 


गुरुवार, मई 11, 2023

कांग्रेस घोषणापत्र और हेट स्पीच पर प्रतिबन्ध: सन्दर्भ कर्नाटक

 11th May 2023 at 12:32 PM

राम पुनियानी का विशेष आलेख जो आप में जगाएगा नई सोच और नई दिशा  

भोपाल: 11 मई 2023: (राम पुनियानी//इर्दगिर्द)

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र (मई 2023) में कांग्रेस ने वायदा किया है कि अगर राज्य में उसकी सरकार बनी तो नफरत फैलाने वाले संगठनों पर प्रतिबन्ध लगाया जायेगा। पीएफआई पर पहले से ही प्रतिबन्ध लगाया जा चुका है। कांग्रेस ने संघ परिवार के सदस्य बजरंग दल को भी पीएफई के समतुल्य बताया है। 

इस बात पर हंगामा खड़ा हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर वार्ड स्तर के नेताओं तक ने इसे चुनावी मुद्दा बना लिया है। एक तरह से उन्हें वह मैदान मिल गया है जिसमें खेलना उन्हें सबसे ज्यादा पसंद है। वे बजरंग दल को भगवान हनुमान के तुल्य बताने लगे हैं और मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह भगवान हनुमान को उसी तरह कैद करने का प्रयास कर रही है जैसे उसने भगवान राम को किया था। ज्ञातव्य है कि अब तक भाजपा चुनावों में भगवान राम के नाम का भरपूर इस्तेमाल करती आई है। 

कांग्रेस ने पलटवार करते हुए कहा कि भगवान हनुमान की तुलना बजरंग दल से करना उनका अपमान है और भाजपा ने ऐसा करके हिन्दुओं की भावनाओं को चोट पहुंचाई है। कुछ लोगों ने यह भी याद दिलाया है कि प्रमोद मुत्तालिक की श्री राम सेने पर गोवा की भाजपा सरकार ने प्रतिबन्ध लगाया था। जब भाजपा स्वयं भगवान राम के नाम वाले संगठन को प्रतिबंधित कर सकती है तो बजरंग दल के मुद्दे पर हंगामा मचाने को अवसरवादिता के अलावा क्या कहा जा सकता है।  

भगवान हनुमान को देश के कई हिस्सों में श्रद्धा के साथ पूजा जाता है और तुलसीदास कृत ‘हनुमान चालीसा’ शायद सबसे लोकप्रिय प्रार्थनाओं में से एक है। हनुमान अपने आराध्य के प्रति श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक भी हैं। क्या बजरंग दल को हम किसी भी तरह बजरंगबली से जोड़ सकते हैं?   

समाज को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत करने के लिए भाजपा की चुनावी सभाओं में ‘जय बजरंगबली’ के नारे लगाये जा रहे हैं।  किसी ने यह भी पूछा है कि जिन लोगों ने भारत के संविधान के नाम पर शपथ ली है, क्या वे सार्वजनिक मंचों से भगवानों के जयकारे लगा सकते हैं? अगर दूसरे धर्म में आस्था रखने वाले नेता ‘नारा ऐ तकबीर-अल्लाह हू अकबर’ का नारा आमसभाओं में बुलंद करें तो क्या यह उन्हें स्वीकार होगा?

बजरंग दल आखिर है क्या? वह विश्व हिन्दू परिषद् (विहिप) की एक शाखा है और विहिप, आरएसएस का अनुषांगिक संगठन है।  विहिप सन 1980 के दशक में अचानक चर्चा में आई जब उसने राम मंदिर का मुद्दा जोरशोर से उठाना शुरू किया। बजरंग दल का गठन विहिप की युवा शाखा के रूप में किया गया था ताकि पहले उत्तर प्रदेश और फिर देश के अन्य भागों में युवाओं को राममंदिर आन्दोलन से जोड़ा का सके। बजरंग दल ने ही कारसेवा और बाबरी मस्जिद को जमींदोज करने के लिए लड़कों को भर्ती किया। बाबरी मस्जिद के ध्वंस के लिए लोगों को गोलबंद करने में बजरंग दल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह संगठन हिंसा में यकीन रखता है। यह इससे भी साबित होता है कि लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के दौरान उसने खून से भरा एक पात्र अडवाणी को भेंट किया था और उनके माथे पर रक्त का टीका भी लगाया था। हिंसा इस संगठन के रगों में है। 

बजरंग दल के मुखिया विनय कटियार, जो बाद में भाजपा सांसद बने, ने बाबरी ध्वंस की पूर्वसंध्या पर कहा था कि मस्जिद को मिटा दिया जायेगा और उसके मलबे तो सरयू नदी में बहा दिया जायेगा  . बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद किस तरह की भयावह हिंसा पूरे देश में हुई थी यह हम सब को पता है। 

बजरंग दल वैलेंटाइन्स डे के भी खिलाफ था और देश के कई भागों में उसने इस दिन प्रेमी जोड़ों की पिटाई भी की. बाद में उसने लड़कियों के जीन्स पहनने पर भी आपत्ति जताई और महिलाओं के लिए एक ‘ड्रेस कोड’ भी बनाया. 

पास्टर ग्राहम स्टेंस और उनके दो मासूम बच्चों की जिंदा जला कर क्रूर हत्या को तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने “समय की कसौटी पर खरी उतरे सहिष्णुता और सद्भाव के मूल्यों के भयावह पतन” का प्रतीक बताते हुए कहा था कि “यह कुत्सित काण्ड दुनिया के सबसे काले कारनामों की सूची में शामिल होगा”. उस समय के केंद्रीय गृहमंत्री एल.के. आडवाणी ने इस अमानवीय घटना में बजरंग दल का हाथ होने से इंकार किया था परन्तु बाद में हुई जांच से पता चला कि बजरंग दल के एक सदस्य राजेंद्र पल उर्फ़ दारा सिंह ने इस वीभत्स घटना को अंजाम दिया था. दारा सिंह इस समय आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। 

सन 2006 से 2008 के बीच देश में अनेक आतंकी हमले हुए. इसी दौरान, नरेश और हिमांशु पांसे नामक दो बजरंग दल कार्यकर्ता बम बनाते हुए मारे गए. घटनास्थल से कुर्ता-पायजामा और एक नकली दाढ़ी भी बरामद हुई. इसी तरह की घटनाएं देश के अन्य कई इलाकों में हुईं. सन 2019 की जनवरी में योगेश राज नाम के एक बजरंग दल कार्यकर्ता को बुलंदशहर में मरी हुई गाय से जुड़े एक मामले में पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।  

हाल में रामनवमी पर हुई हिंसा के सिलसिले में बिहारशरीफ में बजरंग दल के कुंदन कुमार को गिरफ्तार किया गया है.

जहाँ तक पीएफआई का सवाल है, नफरत फैलाना और हिंसा करना उसकी प्रमुख गतिविधियों में शामिल रहा है. सन 2010 में केरल में ‘ईशनिंदा’ के नाम पर प्रोफेसर जोसफ के हाथ काटने की वीभत्स घटना हम सबको याद है। 

धर्म के नाम पर अपनी गतिविधियाँ चलाने वाले सभी संगठन असहिष्णु होते हैं, नफरत फैलाते हैं और हिंसा का सहारा लेते है. इस तरह के संगटनों में समानताएं भी होतीं हैं और अंतर भी। 

एक मौके पर राहुल गाँधी ने आरएसएस की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से की थी। उन्होंने कहा था, “आरएसएस भारत के मिज़ाज को बदलने का प्रयास कर रहा है। देश में कोई ऐसा कोई अन्य संगठन नहीं है जो भारत की सभी संस्थाओं पर कब्ज़ा करना चाहता है। मुस्लिम ब्रदरहुड भी अरब देशों में ठीक यही करना चाहता था. दोनों का लक्ष्य यही है कि उनकी सोच हर संस्था पर लागू होनी चाहिए और अन्य सभी विचारों को कुचल दिया जाना चाहिए। ” उन्होंने यह भी कहा कि, “मुस्लिम ब्रदरहुड पर अनवर सादात की हत्या के बाद प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। उसी तरह, महात्मा गाँधी कि हत्या के बाद आरएसएस को प्रतिबंधित कर दिया गया था। सबसे दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही संगठनों में महिलाओं के लिए कोई स्थान नहीं है।”

इन दोनों संगठनों का काम करने का तरीका बेशक अलग-अलग है परन्तु वे समान इसलिए हैं क्योंकि उनकी नींव उनके धर्मों की उनकी अपनी समझ पर रखी गई है, वे इस सोच को समाज पर लादना चाहते हैं और यही सोच उनकी राजनीति का आधार भी है. वे आज़ादी, बराबरी और भाईचारे के मूल्यों के खिलाफ हैं. और हाँ, दोनों समाज में परोपकार के काम भी करते है.

पिछले कुछ दशकों में समाज में धार्मिकता बढ़ी है और धर्म के नाम पर राजनीति भी. समाज में दकियानूसीपन बढ़ा है और आस्था पर आधारित सोच हावी हुई है. नतीजा यह है कि धर्मनिरपेक्ष पार्टियाँ भी सांप्रदायिक ताकतों द्वारा धर्म के उपयोग को नज़रअंदाज़ नहीं कर पा रहीं हैं. तालिबान महिलाओं को कुचल रहा है. परन्तु क्या महिलाओं को जीन्स पहनने से रोकना या उन्हें बुर्का पहनने पर मजबूर करना भी तालिबानी सोच का कुछ नरम संस्करण नहीं है? (अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

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बुधवार, मई 10, 2023

ताज़ा ग़ज़ल//विजय तिवारी ‘विजय’

ताज़ा ग़ज़ल//विजय तिवारी ‘विजय’

जिसमें मिलेगी अतीत और आज की झलक 


लुधियाना: 12 फरवरी 2023: (हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

भोपाल एक ऐसा शहर है जहां शिक्षा और साहित्य से जुड़े बहुत से लोग रहते हैं। बुलंद आवाज़ लेकिन बहुत ही सलीके से सच कहने वाले इन लोगों से मिल कर, इनका कलाम पढ़ कर लगता है जैसे भोपाल के जलवायु में ही कोई ऐसा जादू है जो कलम में इंकलाब ले आता है। वहां भोपाल जा कर इन लोगों के जनजीवन को नज़दीक से देखने का मन भी अक्सर होता है और कुछ समय इनके पास रहने का भी। बहुत ही गहरी बातें बहुत ही सादगी से कह जाते हैं ये लोग। कलम और कलाम की दुनिया में इनका कद बहुत ऊंचा ही बना रहता है इसके बावजूद मिलने वालों को इनकी विनम्रता और स्नेह हमेशां के लिए  अपना भी बना लेते हैं ये लोग। विजय तिवारी विजय  लम्बे समय से बहुत ही सादगी से बहुत ही गहरी बातों की शायरी  करते आ रहे हैं। उनकी शायरी सियासत की साज़िशों की बात भी करती है और जी टी रोड पर जीने को तरसती ज़िंदगी की बात भी। देखिए उनकी एक ग़ज़ल की झलक। आज के महाभारत में घिरे अभिमन्यु की चर्चा भी आपको इसी शायरी में मिलेगी और इसके साथ ही हिंदी की मधुरता और उर्दू की मिठास को एक दुसरे के नज़दीक लाने का ज़ोरदार प्रयास भी। मुशायरा कहीं भी हो उनकी हाज़री उसमें चार चाँद लगा देती है। उनकी कोशिश भी होती है कि निमंत्रण मिलने पर शामिल भी ज़रूर हुआ जाए। इसके बावजूद कभी कभी कोई मजबूरी आन ही पड़ती है तो उनके चाहने वाले उदास हो जाते हैं। आपको उनकी शायरी कैस लगी अवश्य बताएं। आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी ही।  --रेक्टर कथूरिया 

कितनी मुश्किल से कटा दिन होश के मारों के बीच। 

शाम ए ग़म का शुक्रिया ले आई मयख़ारों के बीच ...


क्या कभी देखा है वो ग़ुब्बारा ग़ुब्बारों के बीच। 

पेट की ख़ातिर भटकता दौड़ता कारों के बीच...


रिंद ओ साक़ी जाम ओ पैमाना तलबगारों के बीच। 

आ गये सब ग़म के मारे अपने ग़मख़्वारों के बीच... 


चीख़ता ही रह गया मैं अम्न हूँ मैं अम्न हूँ। 

दब गई आवाज़ मेरी मज़हबी नारों के बीच...


बार ए ग़म से लड़खड़ाकर क्या गिरा मस्जिद में आज । 

यूँ घिरा जैसे शराबी कोई दींदारों के बीच...


मौसम ए तन्हाई में बहते हैं आँसू इस क़दर। 

दस्त में बहता हो जैसे झरना कुहसारों के बीच...


बज़्म ए जानाँ में मुझे देखा गया कुछ इस तरह। 

जैसे कोई ग़म का नग़मा कहकहाज़ारों के बीच...


या ख़ुदा अहल ए अदब में यूँ रहे मेरा वुजूद। 

एक जुगनू आसमाँ पर चाँद और तारों के बीच...


एक अभिमन्यु घिरा फिर धर्म संसद में ‘विजय’

रिश्तेदारों चाटुकारों और सियहकारों के बीच

                           ----विजय तिवारी ‘विजय’

चलते चलते विजय साहिब का ही एक और शेयर:

किसी के इश्क में दुनिया लुटा कर

सुखनवर हो गए हैं कुल मिलाकर! 

मंगलवार, फ़रवरी 07, 2023

पति के गुज़र जाने के बाद ही सामने आया ज़िंदगी का असली इम्तिहान

06 February 2023 at  21:17 

स्वरोजगार योजना से दिखाया यशोदा पटवा ने आजीविका में कमाल 

छिन्दवाडा: 06 फरवरी 2023: (इर्द गिर्द ब्यूरो)::

शासन द्वारा संचालित स्वरोजगार योजना जरूरतमंद व्यक्तियों को आर्थिक रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। छिंदवाड़ा जिले की नगर परिषद चांद की श्रीमती यशोदा पटवा के लिए भी स्वरोजगार योजना संकट की घड़ी में बड़ा सहारा साबित हुई है। 

कोरोना महामारी में पति के गुजर जाने के बाद नगर परिषद चांद की स्वरोजगार योजना की मदद से ही उनकी आजीविका संभल सकी है और अब वे अपने रेडीमेड कपड़े के व्यवसाय को लगातार बढ़ाने की दिशा में प्रयासरत हैं। उन्हें स्वरोजगार योजना के साथ ही नगर परिषद् के माध्यम से प्रधानमंत्री आवास योजना, खाद्यान्न सुरक्षा
योजना, मुख्यमंत्री जनकल्याण संबल योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत योजना का भी लाभ प्राप्त हुआ है।  इसके लिए वे केंद्र शासन, मध्यप्रदेश शासन, जिला प्रशासन और नगर परिषद चाँद को धन्यवाद देती हैं। 

गौरतलब है कि चांद नगर की श्रीमती यशोदा ने दुर्भाग्य और गरीबी की इस अकस्मात मुसीबत के साथ एक जंग लड़ी भी है और जीती भी है। उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी में मेरे पति का स्वर्गवास हो गया। पति का साथ छूटने के बाद परिवार की जिम्मेदारी पूरी तरह मेरे ऊपर आ गई थी। 


पूर्व में मैं गांव-गांव घूमकर मनिहारी एवं मंगलसूत्र गुथाई का काम करके
अपने परिवार का पालन-पोषण करती थी जिससे लगभग 4-5 हजार रूपए की मासिक आय होती थी, लेकिन कोरोना काल में मेरा व्यवसाय पूरी तरह से बंद हो गया। कोरोना के दौर में जो पाबंदियां लगीं उनके कारण गांव गांव घूमना सम्भव ही नहीं था। घरों में बंद  रहना ही जान बचने के लिए आवश्यक हो गया था। 

व्यवसाय बंद हो जाने का मानसिक तनाव भी बना रहता था। बचत राशि पास में कुछ नही थी, जैसे-जैसे पैसे का जुगाड़ कर के रेडीमेड कपडे की दुकान बाजार चौक चाँद में लगाना प्रारंभ किया जिससे 200-300 रूपए की आमदनी प्रतिदिन हो जाती थी। लगभग एक साल मैंने फुटपाथ पर दुकान लगाई। इसके बाद नगर परिषद चाँद के माध्यम से स्वरोजगार योजना का पता चला कि इसमें रोजगार स्थापित करने के लिए 2 लाख रूपए तक का ऋण कम ब्याज दर पर प्राप्त हो रहा है। 

इसके लिए मैने नगर परिषद में आवेदन किया और मध्यप्रदेश ग्रामीण बैंक शाखा चाँद से मुझे 2 लाख रूपए का ऋण प्राप्त हुआ। इस राशि से मैंने सबसे पहले बाजार क्षेत्र में एक दुकान किराये से ली और उसमें किड्स वेयर, मेन्स वेयर और रेडीमेड कपड़ों से दुकान आरम्भ की। 

इस दुकान के माध्यम से मुझे अब प्रतिदिन 500-600 रूपए और प्रति माह लगभग 15 हजार रुपए की बचत हो जाती है। ऋण की मासिक किश्त और दुकान का किराया भी समय पर जमा कर देती हूं। बाकी रुपयों से परिवार का भरन-पोषण अच्छी तरह से हो जाता है और परिवार के साथ हँसी-खुशी जीवन व्यतीत कर रही हूँ। पति के जाने के बाद शासन की योजना की मदद से ही मेरा जीवन पहले से बेहतर हो सका है, इसके लिए मैं शासन को धन्यवाद देती हूं।

इस तरह शासन की योजनाओं का लाभ ले कर सुश्री यशोदा पटवा ने अपनी किस्मत की लकीरों को ही बदल डाला। उसने दुर्भाग्य की रेखाओं को मिटा डाला और हिम्मत कर के अपनी मर्ज़ी की किस्मत खुद लिख दी। आप भी चाहें तो ऐसा कर सकते हैं। सत्ता की योजनाएं आप के लिए भी खुली हैं। 


शुक्रवार, दिसंबर 02, 2022

विशेष लेख//पर्यटन पर्वः सब देखो अपना देश//अनिल दुबे

 विशेष सेवा और सुविधाएँ 13-October, 2017 13:56 IST

पर्यटन ही आसान रास्ता है प्रकृति से जुड़ने का 

नई दिल्ली: 2 दिसंबर 2022: (इर्द गिर्द डेस्क):: 

ज़िंदगी में रहते रहते प्राकृति के नज़दीक रहना, उसे जान लेना और उस के साथ अपनी सुर मिला लेना वास्तविक प्रसन्नता के लिए बहुत आवश्यक होता है। दूर दराज के रमणीय स्थानों पर घूमना इस मकसद के लिए बहुत ही अच्छा रहता है। पत्र सूचना कार्यालय के लिए अनिल दुबे ने यह आलेख कुछ वर्ष पहले लिखा था लेकिन यह आज भी बहुत प्रसंगिक है। लीजिए पढ़िए इस आलेख को पूरी तरह से। इस पर आपके विचारों की इंतज़ार भी बनी रहेगी और इसके साथ ही  आपकी अपनी लिखी रिपोर्ट्स/रचना/तस्वीरों और वीडियो इत्यादि की भी।  -संपादक//इर्द-गिर्द 


''सैर कर दुनिया की गाफिल ज़िंदगानी फिर कहां,

जिंदगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहां ''

यह पंक्तियां घुमक्कड़ी, यायावरी, पर्यटन और यात्राओं के पूरे दर्शन को समाहित किए हुए है। पर्यटन आज दुनिया ही नहीं अब भारत में भी एक बड़ा उद्योग का दर्जा पा चुका है, लेकिन बीते हजारों वर्षों में दुनिया को जोड़ने, खोजने, समझने और साहित्य, कला संस्कृति के साथ विज्ञान को भी एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचाने का काम भी यात्रियों व पर्यटकों ने ही किया है। कम से कम भारत जैसे विविधताओं और विभिन्नता वाले देश में पर्यटन ही एक ऐसा मजबूत माध्यम रहा है, जिससे विभिन्न संस्कृतियां एक दूसरे के नजदीक तेजी आयीं। विदेशों से भारत में आने वाले सैलानियों के साथ ही अब घरेलू पर्यटकों की संख्या में भी भारी वृद्धि गत वर्षों में हुई है। इसको देखते हुए केंद्र सरकार राज्य सरकारों के सहयोग से 5 अक्टूबर से लेकर 25 अक्टूबर तक शानदार पर्यटन पर्व मना रही है। इसके तहत 'देखो अपना देश', 'सभी के लिए पर्यटन' और 'पर्यटन एवं शासन व्यवस्था' जैसे लक्ष्यों को लेकर एक बड़ा अभियान शुरु किया गया है, जिसमें देश के पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण के बीच मौजूद सभी राज्यों में भव्य व विस्तृत कार्यक्रम किए जा रहे हैं।

देश में  आम लोगों के लिए घुमक्कड़ी कोई शौक नहीं था, लेकिन आज घरेलू पर्यटकों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। देश में राहुल सांस्कृत्यायन भारत के बड़े यायावर अथवा यात्री थे, जिन्होंने पूरा जीवन दर्जनों देशों की यात्रा करने में बिताया. उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ में जन्मे राहुल ने अपने जीवन के 45 वर्ष भारत, तिब्बत, रूस, श्रीलंका, यूरोप और कई एशियाई देशों की दुर्गम यात्राओं में गुजारे थे। साथ ही उन्होंने यात्राओं के संस्मरण भी लिखे, जो हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर  बन चुके हैं। 'अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा' उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक है, जो घूमने के शौकीनों के लिए किसी धर्म ग्रंथ से कम नहीं है।

यहां एक बात स्पष्ट समझ लेनी चाहिए कि पर्यटक और यात्री में फर्क होता है। पर्यटक उन्हीं चीजों को देखने जाता है, जिसके बारे में वह पहले से जानता है, लेकिन यात्री नये स्थलों को खोजता है और नई जानकारियां जुटाता है। अगर मार्को पोलो व वास्कोडिगामा जैसे यात्री ना होते तो  दुनिया के तमाम देशों को  दूसरे  अज्ञात देशों की जानकारी ना हो पाती। इसी तरह चीनी यात्रियों फाह्यान व ह्वेनसांग आदि की वजह से बौद्ध धर्म व प्राचीन भारतीय संस्कृति का संपर्क चीन के साथ हो सका। देश में उत्तर भारत को दक्षिण से जोड़ने और पश्चिम को पूर्वी भारत से जोड़ने का काम आजादी के बाद पर्यटन उद्योग ने ही किया। इन्हीं सब उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से देश में घूमने और उसकी विविधता को समझने का आह्वान किया था।

इसको ध्यान में रखते हुए ही पर्यटन मंत्रालय ने 20 दिवसीय पर्यटन पर्व देशभर में मनाने का अभियान शुरू किया है। केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार डॉ महेश शर्मा और केंद्रीय पर्यटन राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार के.जे. अल्फोंस ने देश की राजधानी दिल्ली स्थित हुमायूं के मकबरे से पर्यटन पर्व का उद्घाटन किया, तो वही सभी राज्यों में 5 अक्टूबर से ही उन राज्यों के प्रमुख पर्यटक व ऐतिहासिक स्थलों पर  विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए अभियान की शुरुआत हुई। राज्यों के साथ ही केंद्र सरकार के 18 मंत्रालय भी इस पर्व में सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं। कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत पर इस अभियान के जरिए विशेष जोर दिया जा रहा है। पर्यटन पर्व का समापन इंडिया गेट पर 25 अक्टूबर को होगा, जिसमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी उपस्थित रहेंगे।

इस पर्व की खूबी यह भी है कि यह सिर्फ लोगों को घूमने-फिरने के बारे में जानकारी देने अथवा उन्हें प्रोत्साहित करने मात्र के लिए नहीं है। बल्कि इसके जरिए देश में तेजी से विकसित हो रहे पर्यटन उद्योग में रोजगार के असीम अवसरों को पहचानना और युवाओं को इस रोजगार के प्रति आकर्षित कराना भी है. इसीलिए अल्फोंस ने अपने संबोधन में इसका उल्लेख करते हुए कहा कि बढ़ते पर्यटन से लोगों को रोजगार देने और क्षेत्रीय विकास के नए अवसर पैदा होंगे। पर्व के दौरान रेलवे, सड़क परिवहन व शहरी विकास जैसे कई मंत्रालय पर्यटन स्थलों व उसके आस-पास के इलाकों में साफ सफाई को लेकर विशेष अभियान चला रहे हैं। वहीं पर्यटन मंत्रालय ऐतिहासिक धरोहरों और पर्यटक स्थलों की साफ-सफाई का अभियान चलाने के साथ ही स्थानीय स्तर पर ऐसे कार्यक्रम भी चला रहा है, जिससे लोगों को ऐतिहासिक स्थलों का महत्व पता चले और वह उनकी देखभाल व साफ- सफाई करने के लिए प्रेरित हों।

दुनिया में पर्यटन उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। यही कारण है कि वर्ष 2016 में लगभग 123 करोड़ पर्यटकों ने विश्व भ्रमण किया। विश्व जीडीपी में पर्यटन उद्योग का योगदान 10.2% है. वहीं भारत के सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन उद्योग का 9.6 प्रतिशत का योगदान है। देश में उपलब्ध रोजगार में से 9.3 प्रतिशत रोजगार इस क्षेत्र से मिल रहा है। विदेशी पर्यटकों को सुविधा प्रदान करने के लिए सैलानियों को 16 हवाई अड्डों पर ई-पर्यटक वीजा उपलब्ध कराने का काम पहले ही शुरू कर दिया गया था। इससे विदेशी पर्यटकों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। इस वर्ष जनवरी से मार्च के सिर्फ 3 माह में 4.67 लाख विदेशी यात्री इ-वीजा के माध्यम से देश में आए।

पर्यटन पर्व के तीन प्रमुख बिंदु हैं, जिसमें देखो अपना देश, सभी के लिए पर्यटन और पर्यटन एवं शासन व्यवस्था पर कार्यक्रम किए जा रहे हैं। इस अवसर पर विभिन्न पर्यटन स्थलों के वीडियो, फोटोग्राफी और ब्लॉग लेखन की प्रतियोगिताएं की जा रही हैं। सोशल मीडिया पर पर्यटकों की दृष्टि से भारत की गाथाओं का वर्णन किया जा रहा है। पर्यटन संबंधी प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम, वाद-विवाद और चित्रकला प्रतियोगिता का भी आयोजन राज्यों में हो रहा है। जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में पर्यटकों को लुभाने के लिए टेलीविजन द्वारा अभियान शुरू किया गया है। इसके अलावा सभी राज्यों में पर्व के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य, संगीत, नाटक और कथा वाचन का भी आयोजन हो रहा है। कार्यक्रम स्थलों पर पर्यटन प्रदर्शनी लगाई गई है, जिसमें संस्कृति, खान-पान और हस्तशिल्प कला का प्रदर्शन हो रहा है। साथ ही पर्यटन उद्योग से जुड़े विभिन्न हितधारकों व पक्षकारों के लिए भी कार्यशाला लगाई गई है।

अहमदाबाद में 5 से 25 अक्टूबर तक फोटोग्राफी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है, जिसमें प्रकृति और वन्यजीव फोटोग्राफी की थीम रखी गई है। 'खुशबू गुजरात की' का विशेष आयोजन करने के अलावा जनजातीय उत्सव भी मनाया गया. महाराष्ट्र में 25 अक्टूबर तक राज्य के विभिन्न स्कूलों में वीडियो प्रदर्शनी व  महाराष्ट्र को खोजें विषय पर कई कार्यक्रम रखे गए हैं। इसी तरह पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह, पंजाब,  बिहार और मध्य प्रदेश में भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ विविध आयोजन किए जा रहे हैं।

रेलवे ने यात्रियों के लिए यात्रा सुखद करने के दृष्टिकोण से स्टेशनों  की विशेषता सज्जा की है इसी तरह सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने पर्यटन सर्किटों में सड़कों के किनारे जन सुविधाओं की शुरुआत करके कार्यक्रम में सहयोग किया है। इसके अलावा नागर विमानन मंत्रालय, वित्त, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, गृह,  वाणिज्य और विदेश मंत्रालय ने भी अपने अपने ढंग से पर्व में सहयोग किया है। इस पूरे पर्व के दौरान राज्य सरकारें और केंद्र सरकार के मंत्रालय सभी आयोजनों में स्थानीय नागरिकों की भागीदारी करा रहे है। विशेष तौर पर युवाओं को इसमें जोड़ा गया है। पर्यटन उद्योग में रोजगार के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर असीम संभावनाएं हैं और इसके लिए युवाओं को पर्व के दौरान जानकारी दी जाएगी। यही नहीं कई राज्यों में टैक्सी, ऑटो, रिक्शा चालकों, होटल व्यवसायियों व अन्य लोगों को पर्यटकों के साथ अच्छे व्यवहार करने व उनकी मदद करने  के तरीकों की भी जानकारी दी जा रही है। पर्व का यह पूरा अभियान भारत के पर्यटन उद्योग का परिदृश्य बदल देगा। इससे जहां घरेलू पर्यटकों का आवागमन बढ़ेगा, वही विदेशी सैलानियों को और अनुकूल वातावरण देश में उपलब्ध हो सकेगा।PIB

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