इस समय जो भी आप के सामने है वो जिंदगी के अलग अलग रंग हैं वक्त वक्त की बात.......................!
एक और बुलंद आवाज़
घर में जितनी भी किताबें थी वे मैं सब पढ़ चुका था। न ही समीक्षा के लिए कोई नयी किताब मेरे पास आई थी और न ही भेंट में. चैनल की नौकरी छोड़ने के बाद वितीय संकट भी एक बार फिर गहरा गया था। किसी बुक स्टाल पर भी अब पहले की तरह एक दम सीधे सीधे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। एक दिन लुधियाना के पंजाबी भवन में एक मीटिंग का बुलावा था सो वहां चला गया। मीटिंग शुरू होने में अभी आधा घंटा लगता नज़र आ रहा था. वक़्त का फायदा उठाने के लिए वहीँ पर स्थित लोक गीत प्रकाशन के कार्यालय में जाना कुछ ज्यादा ठीक लगा। मन में आया के चलो नयी किताबों का भी पता चल जायेगा और कीमत का भी कुछ अंदाजा हो जायेगा. वहां विनय कुमार जी थे शायद वहां के इंचार्ज। बहुत ही सनेह से मिले और सूचि मांगने पर उन्होंने मुझे अमृतसर से निकलती एक पंजाबी पत्रिका "अक्खर" का अप्रैल अंक पकड़ा दिया जिसमें पुस्तक सूची भी थी और बहुत कुछ और भी था जिसने मुझे काफी सुखद अहसास दिया।इस पत्रिका में काफी कुछ था। गुलज़ार की नज़म, वान गाग का उदासी का पोर्ट्रेट, डॉक्टर रविंदर से मुलाकात, नोबल पुरस्कार को आलुओं की बोरी कह कर ठुकरा देने वाले जान पाल सार्तेर के साथ उसकी महबूबा का संवाद और बहुत कुछ और भी। साथ ही मोहनजीत की ओर से लिखित इमरोज़ उर्फ जैक लन्दन के बारे में एक काव्य चित्र जो की एक कमाल की रचना है। न जाने कितने सागरों की गहरायीओं और कितने ही आसमानों की उडानों को पकड़ा है, उन्हें महसूस किया और उनका एहसास पाठकों को भी कराया....कुल मिलकर यह सब कुछ पढ़ कर ही महसूस किया जा सकता है। यह पत्रिका नागमणि की याद दिलाने के साथ साथ हेम ज्योति, रोहले बाण, किन्तु, प्रेरणा और नागमणि की याद दिलाने और उन सब की कमी को पूरा करने की ज़िम्मेदारी निभाने का पर्यास करती हुयी भी लगती है.हाँ एक बात और.........इस में विनय दुब्बे की एक नज़म भी है जो सिरजन के साभार पर्काशित की गयी है. आओ देखें इस नज़म के दो अंश:मैं जब भी कविता लिखता हूँ तो भूख को भूख लिखता हूँ विचार या विचारधारा नहीं लिखता..............--------विचार या विचारधारा के सम्बन्ध मुख्य सचिव प्रगतिशील लेखक mukhya सचिव जनवादी लेखक संघ से बात करो मैं तो कविता लिखता हूँ...........------------------विचारों से सव्तंत्र रहने का विचार भी अपने आप में बुरा नहीं पर शोषितों और शोषकों का अंतर अब किस विचार की ऐनक से देखा जाये यह भी विनय दुब्बे ही बता सकते हैं..............बार बार पढ़ने लायक इस पंजाबी पत्रिका के संपादक हैं परमिंदर जीत औरउनका दूरभाष फैक्स नंबर है : ०१८३-२५८६१०७ (अमृतसर)
पंजाब के सपूत डॉक्टर मान की कवितायेँ
"तुम वसंत हम पतझड़" डॉ ज्ञान सिंह मान रचित यह काव्य संग्रह जब मैंने पहली बार देखा तो मुझे लगा कि शायद ये शानिकाएं हैं छोटी छोटी कवितायेँ ; पर डॉक्टर मान कहते हैं कि नहीं ये सूत्र कवितायेँ हैं बिल्कुल ही नई विधा में ; कहीं से भी शुरू करो, कहीं से भी पढ़ लो :* मजबून इस ख़त का कुछ यूँ तो न था,कि आप पढ़ते और फाड़ देते । * मेरे फ़िर से जी उठने की हैरानी न होती;भूल से अगर इक बार ; तुमने छू लिया होता ! * रास्ते में बन गए कितने ही साथी ,मंजिल तक सिर्फ़ चार ने ही साथ निभाया है । * मेरी जिंदगी कोई प्लेटफोर्म तो न थीकि तुम आतीऔर रेल सी चली जाती। * लायूं कहाँ से इतने कृष्ण ,यहाँ तो हर शहर ही महांभारत है।
पंजाब और पंजाब
पंजाब............पाँच दरियाओं की धरती ! जहाँ दरिया झनां ने किताबे-इश्क में कई नए अफ़साने जोड़ कर एक नया इतिहास लिखा.............. सोहनी महीवाल का, हीर-राँझा का और बहुत कुछ जो दर्द से सराबोर है पर फ़िर bhi शाह हुसैन को अगर ज़्यादा मकबूलियत मिली तो उस किस्से से जिस में वोह लिखता है :
जंग हिंद पंजाब दा होण लगा , दोवें पातशाही फौजां भारीयाँ ने , अज होवे सरकार ता मुळ पावे , जेहडिआं खालसे तेगां मारियाँ ने ! पर इसी पंजाब को पंजाब ke ही एक और शायर प्रोफ़ेसर मोहन सिंह ने लिखा है :भारत है वांग मुंदरी! विच नग् पंजाब दा ..................इन दो महान शायरों का ये ख्याल किस हालात में कविता बन कर निकला होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है..........!
खुदा के रंग
मेरे एक मित्र हैं तुषार भारतीय मेरे साथ ही एक टीवी चैनल में काम करते हैं । इसी सितम्बर महीने की 9 तारीख को रात २३:३५ पर उनका एस एम एस आया :मंजिल भी उनकी थी, रास्ता भी उनका था !एक हम अकेले थे ; बाकी सारा काफिला भी उनका था !साथ साथ चलने की सोच भी उनकी थी, फ़िर रास्ता बदलने का फ़ैसला भी उनका था ! आज क्यूँ अकेले हैं हम...? दिल सवाल करता है , लोग तो उनके थे, क्या खुदा भी उनका था...........?ये उन्हों ने मुझे क्यूँ भेजा मैं समझ नहीं पाया सो आपकी नज़र कर रहा हूँ कि शायद आप भी उन्हें कुछ समझाएं ।वैसे मुझे लगता है कि शायद किसी से परेशान हैं ; अगर ऐसा है तो उन्हें बताना चाहता हूँ कि मुन्नी बेगम को ज़रूर सुने खास तौर पर ये ग़ज़ल उन्हों ने बहुत ही तर्रनुम और दर्द से गाई है ।: जालिमों अपनी किस्मत पे नाजां न हों ,दौर बदलेगा ये वक्त की बात है ; वो यकीनन सुनेगा सदाएं मेरी ;क्या तुम्हारा खुदा है ! हमारा नहीं ?
जिम्मेदार कौन ?
कभी एक गीत बहुत ही लोकप्रिया था :
सोहणे देशां विचों देश पंजाब नी सयियो ;
जिवें फुल्लां विचों फुल गुलाब नी सयियो !
पर अब पंजाब की हालत देख कर पूछा जा सकता है उन लोगों से जो रहनुमा होने का दावा करते हैं कि आख़िर हँसता बसता पंजाब टुकड़े टुकड़े और लहू लुहान कैसे हो गया ? सरबत्त का भला मांगने वाली इस धरती पर भाई भाई का दुश्मनी कैसे बन गया ? कहीं शरारत सियासत की तो नहीं ? कहीं ऐसा तो नहीं के मामला यहीं पर ही गड़बड़ हो....!
लगा कर आए हो जब पेड़ तुम बबूलों के ;
तुम्ही बतायो कहाँ से गुलाब निकलेगा ?
अधूरे पंजाब के नाम.....
मेरे एक मित्र कंवर सुखदेव ने कई दशक पहले लिखा था :एह मेरे नेत्रां दे दोआबे ; मैथों रो रो पंजाब मंगदे ने !ओह जेहड़े आप ने सिफर वर्गे ; मैथों सो सो हिसाब मंगदे ने !
एक सच जिंदगी के बारे में......
ओशो कहते हैं : जिंदगी क्या है इक पहेली है !कभी दुश्मन कभी सहेली है !छू के देखा तो महफिले यारां ;अपनी अपनी जगह अकेली हैं !