नेपाल में कंचनजंगा पहाड़ों के साथ ही स्थित है
मोहाली: 23 जून 2023: (इर्द गिर्द डेस्क//सहयोग टूर्ज एंड ट्रेवेल्स)::
जब भगवान श्री राम और रावण में भयानक युद्ध शुरू हुआ तो हर दिन हर पल सनसनी भरा होता था कि न जाने आज क्या होगा .जब रावण के सभी योद्धा हार कर बारी बारी से मारे जाने लगे तो रावण को अपने उस भाई की याद आई जो सोया हो रहता था। उसे वरदान की बजाए वास्तव में निन्द्रासन का श्राप ही मिला हुआ था जिस वजह से वह सोया ही रहता था। पौराणिक कथा के अनुसार कुंभकरण ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी। लेकिन जब वरदान मांगने का सुअवसर आया तो माता सरस्वती उसकी जीभ पर आ कर बैठ गईं, जिसके कारण उसकी जबान फिसल गई और उसने इंद्रासान की बजाए निद्रासन मांग लिया।
तस्वीर विकिपीडिया से साभार By Jankovoy - Own work,7 |
गौरतलब है कि कुंभकरण भी रावण की तरह ज्ञानी था। उसकी साधना कम नहीं थी। कुंभकरण के बारे में कहा जाता है कि वो अत्यंत विद्वान था। उसे भी वेद, शास्त्र आदि की पूरी जानकारी थी। इस संबंध में शोघ करें तो पता चलता है कि जब कुंभकरण जागता था तो उस दौरान भी वह शोध कार्य किया करता था। कुम्भकरण के बारे मैं बहुत कुछ इतना अच्छा भी है कि वह आम लोगों के सामने नहीं आ सका।
विदित हो कि कुंभकर्ण के पिता का नाम ऋषि विश्रवा था। कुंभकरण भूत और भविष्य का भी ज्ञाता था। इसीलिए उसने रावण को कई बार समझाने की भी पूरी कोशिश की लेकिन रावण ने उसकी एक न मानी। हालाँकि उसे नींद से उठाना भी आसान नहीं हुआ करता था लेकिन लंका पर संकटकाल आ चूका था। स्थाथिति गंभीर बन चुकी थी। इस लिए हर ढंग तरीका प्रयोग कर के उसे उठाया गया।
जब उसे उठाने में कामयाबी मिल गई तो उसे भोजन करवाना आवश्यक हुआ करता था। यह भोजन भी कोई छोटी समस्या नहीं थी। उसे भोजन वगैरा करवा कर सारी समस्या बताई गई की लंका संकट में है।
इस पर रावण के भाई कुम्भकरण ने रावण की आलोचना भी की और उसकी नीतियों को भला बुरा भी कहा। लेकिन भाई होने के नाते उसने युद्द में जाना स्वीकार कर लिया। श्रीमान कुम्भकरण को युद में जाते हुए देख कर लंका की जनता भी उत्साह में आ गई। इतने विराट शरीर वाला बाहुबली जब लंका की गलियों और बाज़ारों में चल रहा था तो किसी पर्वत से कम नहीं लग रहा था। उसकी विशाल और शक्तिशाली भुजाएं युद्ध में भय का माहौल बना रही थी।
युद्द के मैदान में श्री राम की सेना को अपने पांवों के नीचे कुचलते हुए उसने त्राहि त्राहि मचा दी। युद्ध क्षेत्र में जाते ही उसने कोहराम मचा दिया। हर तरफ उसने तबाही मचा रखी थी। श्री राम की सेना का कोई भी योद्धा उसे मारने में सक्षम ना था। संकट विकराल था। तब स्वयं श्री राम ने कुंभकरण से युद्ध किया और उसका एक हाथ काट कर उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया।
यह बात तो भगवान श्री राम ने भी मानी कि न भूतो न भविष्यति। कुम्तीभकरण जैसा न कोई पहले था न ही कभी होगा। एक विशेष तीर के माध्यम से महान योद्धा कुम्भकरण के कटे हुए सिर को दूर पहाड़ी पर रखवा दिया। कहते आज भी हिमालय की कंचनगंगा पहाड़ी के पास एक पहाड़ है जो नेपाल में स्थित है। उसका नाम कुंभकरण हैं ये वही पहाड़ी है जहां पर कुंभकरण का सिर गिरा था। नेपाल में स्थित कुंभकरण पर्वत हिंदी में
उल्लेखनीय है कि कुम्भकरण पर्वत, जो नेपाल में स्थित है, हिमालय की एक प्रमुख पर्वतमाला है। इसका अपना ही गौअर्यव भी है और महत्व भी। यह पर्वत नेपाल तथा चीन (तिब्बत) की सीमा पर स्थित है और अपनी विशालता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। यहाँ पर्यटकों का लगाव बहुत अच्छा है।
इसकी चर्चा करें तो पता चलता है कि कुंभकरण पर्वतमाला को मुख्य रूप से तीन पहाड़ीय शिखरों से दूर रह कर भी पहचाना जा सकता है। मान्यता है। इनमें से सबसे ऊँचा शिखर जिसे कुंभकरण शिखर भी कहा जाता है, की ऊँचाई लगभग 8,586 मीटर (28,169 फीट) है। इसी पर रखा गया था कुंभकरण का कटा हुआ। दुसरे शिखर का नाम कर्णाली शिखर है, जो 7,925 मीटर (26,001 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। इसे देख कर एक विशेष किस्म का सौन्दर्य बोध जागता है। तीसरे शिखर का नाम राजारानी शिखर है, जो 7,711 मीटर (25,299 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। इन तीनो शिखरों इस जगह की अलग किस्म की पहचान भी बनती है। यहां आने वाले पर्यटक इसे दूर से ही पहचान जाते हैं।
यहां प्राकृति की सुंदरता भी देखने वाली होती है। कुंभकरण पर्वतमाला वनस्पति और वन्यजीवों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहां पेड़ पौधों, फूलों, जन्तुओं और पक्षियों की विविधता भी बहुत नज़दीक देखी जा सकती है। इसके अलावा, यहां के धरती के नीचे के क्षेत्रों में सफेद हिमाच्छादित पर्वतीय चोटियाँ, ग्लेशियर्स, झीलें और नदियाँ भी बहुत खूबसूरती में नज़र आती हैं।
कुंभकरण पर्वतमाला यात्रियों के बीच लोकप्रिय है, जो इसके प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए आते हैं। पर्वतारोहण, ट्रेकिंग, जंगल सफारी, और पर्यटनीय गाँवों का दौरा कुछ लोकप्रिय कार्यक्रम हैं। यहाँ आने वाले लोगों को आमतौर पर तिब्बती बौद्ध बिहारी जीवनशैली, धार्मिक स्थलों, और स्थानीय ग्रामीण संस्कृति का भी अनुभव करने का मौका मिलता है। बौद्ध तिब्बतिय साधकों से मिला कर यहां अध्यात्म और समाधि का भी अलौकिक सा अनुभव होने लगता है। मन की एकाग्रता बढ़ जाती है इंसान बहुत ही सहजता से ध्यान में उतरने लगता है। उसकी अध्यात्मिक उड़ान को यहाँ पंख मिलने का अहसास होने लगता है।
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