शनिवार, मार्च 16, 2024

जब जल, जंगल और ज़मीन पर विकास के नाम पर खतरे मंडराए

कैसे लड़ी जानवरों ने भी अपने अस्तित्व और संघर्ष की वह लड़ाई 

एक संकेतक और काल्पनिक रिपोर्ट:-कार्तिका कल्याणी सिंह


जंगल के घर और ठिकाने
: 15 मार्च 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//इर्दगिर्द डेस्क):

आधी रात्रि होने को है। कुछ देर बाद तारीख भी बदल जाएगी। फिर कुछ और घंटे सुबह की रौशनी सामने आने लगेगी लेकिन उससे पहले संघर्षों का एक अदभुत दृश्य सामने है। जीवन के अस्तित्व की लड़ाई लड़ी जा रही है। यह लड़ाई उस विकास के खिलाफ भी जिसे मानव ने जनून की तरह अपना लिया है। पुराना बहुत कुछ है जो आज भी काम का है लेकिन उसकी बलि दे दी गई है। 

मानव समाज का एक समूह अपने हिसाब से दुनिया बना रहा है। वह आज का ईश्वर हो गया है। बड़े बड़े विकसित देश इसी तरह के रौबदाब का ही दिखावा कर रहे हैं। मानव समूहों की भीड़ जब अचानक जंगलों में तबाही मचाने आने लगी तो जानवरों के झुण्ड जंगल में के अंदर दूर तक घुसते चले गए। उन्हें विकास के इस हमले से छिपना जो था। यह  उनकी खानदानी ज़मीन थी जिसे मानव समाज उनके सामने ही छीनता चला जा रहा था। 

जानवरों के समूह भयभीत भी थे लेकिन इसके प्रतिरोध की तैयारी भी कर रहे थे। छिपने की चाह उन्हें जंगल के दुर अंदर तक ले जा रही थी। बाहर से आती सूर्य की रौशनी बहुत पीछे छूट गई थी। जैसे-जैसे वे जंगल में गहराई तक भटकते गए, जानवरों के समूह को हवा में बदलाव नज़र आने लगा। पत्तियाँ, जो आमतौर पर हवा में सरसराहट करती थीं, अब भी शांत थीं। जंगल की तरफ आ रही हवा में बड़ी बड़ी मशीनों के डीज़ल और पैट्रोल की गंध भी आरही थी और मशीनों का शोर भी। जानवरों को यह मशीनें किसी बड़े से राक्षस की तरह लगा रहीं थी। 

उन्होंने एक अपरिचित मशीन की आवाज़ का अनुसरण किया, जो हर कदम के साथ तेज़ होती जा रही थी। अचानक, वे घने पत्तों के बीच से निकले और एक विशाल अर्थमूवर को देखा, जिसके धातु के पंजे मिट्टी में खुदाई कर रहे थे। उनके सामने उनके घर के अवशेष पड़े थे: पेड़ गिरे हुए थे, शाखाएँ बिखरी हुई थीं, और एक बार हरा-भरा जंगल एक उजाड़ बंजर भूमि में बदल गया। उनके क्षेत्र के बीच से एक नया राजमार्ग बनाया जा रहा था, जो उन्हें बाकी जंगल से काट रहा था। वे सदमे में खड़े थे, समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा कैसे हो सकता है।

जैसे ही उन्होंने विनाश का पैमाना देखा, जानवर अपने अगले कदम पर बहस करने लगे। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि उन्हें मनुष्यों और उनकी मशीनों को दूर भगाने के लिए अपनी संयुक्त शक्ति का उपयोग करके वापस लड़ना चाहिए। दूसरों ने तर्क दिया कि यह व्यर्थ था; इंसानों ने खुद को बहुत शक्तिशाली और अथक साबित कर दिया था। युवा हिरन का बच्चा, जो अभी भी दुनिया की कठोर वास्तविकताओं से अछूता था, उसने अपने बड़ों से आशा न छोड़ने का अनुरोध किया। उसकी बातें सुन कर बड़े बूढ़े जानवर हंसने भी लगे लेकिन युवा हिरण की बातें सचमुच ढांढ़स बढ़ाने वाली थी। उसकी बातों में दम था। 

उसके पास एक विचार था. उसने देखा था कि कैसे इंसानों ने अपनी मशीनों का उपयोग करके अपने आसपास की दुनिया को आकार दिया, और उसका मानना था कि घुसपैठियों के खिलाफ अपनी क्षमताओं का उपयोग करने का एक तरीका होना चाहिए। वह तरीका जिसमें अक्ल का इस्तेमाल हो। शरीरक बल से इस मानव हमले के खिलाफ निपटना आसान नहीं था। उस पल में, उसे तुरंत ही दृढ़ संकल्प की वृद्धि महसूस हुई, एक अहसास हुआ कि उसकी किस्मत में कुछ ऐसा बड़ा है जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। उसे अपने अंर्तमन से एक शक्ति का आना महसूस हो रहा था। 

युवा हिरण के बच्चे ने बहुत ही हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ अन्य जानवरों को अपने चारों ओर इकट्ठा करना शुरू कर दिया। उसने इस विशेष सभा में सभी को अपनी योजना समझाई। उसने कहा-वे राजमार्ग निर्माण की प्रगति को धीमा करने के लिए अपने शरीर और दिमाग का उपयोग करेंगे। वे सड़क के नीचे सुरंग खोद सकते थे, और अधिक गहरी सुरंग खोदते थे जब तक कि सड़क अस्थिर न हो जाए और उनके पैरों के नीचे ढह न जाए। वे अपने संयुक्त वजन और संख्या का उपयोग करके उन विशाल मशीनों को गिराने के लिए एक जीवित दीवार भी बना सकते थे जो उनके घर को खतरे में डाल रही थीं। अस्तित्व की इस लड़ाई को लड़े बिना कोई दूसरा चारा ही नहीं बचा था। 

उस युवा हिरण की बातें सुन कर अन्य जानवर पहले तो सशंकित थे, लेकिन हिरन के बच्चे का दृढ़ संकल्प संक्रामक था। उन्हें उसकी योजना में बहुत बड़ी संभावना भी नज़र आने लगी और उन्हें अहसास हुआ कि कोशिश करने से उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है जब की जीतने के लिए एक पूरा संसार उनके सामने है। 

बस सहमति होते ही वे तुरंत काम पर लग गए, प्रत्येक जानवर ऑपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था। हर किसी को अपनी ज़िम्मेदारी का पूरा अहसास अहसास था। उनका भोजन पानी और जंग सब कुछ बेहद अनुशासित हो गया। 

इस लड़ाई के हर मैदान पर सभी ने अपनी डयूटी संभाल ली थी। गिलहरियां और खरगोश झाड़-झंखाड़ में इधर-उधर भागते हुए औजार और सामग्रियाँ इकट्ठा करने लगे। ऊदबिलावों और बिज्जुओं ने सुरंगें तेज़ी से सुरंगें खोदनी खोदनी शुरू कर दिन। इस अभियान के अंतर्गत उन्होंने अपने अस्थायी किले की नींव को मजबूत किया। हिरणों और मृगों ने अपने आप को सर्वाधिक जोखिम में रखते हुए एक जीवित दीवार बनाई, वे कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे और निर्माणाधीन वाहनों का सामना कर रहे थे। उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि खतरे में थी। इसकी रक्षा उनके लिए अब सबसे अधिक आवश्यक कर्तव्य की तरह उनके सामने आ खड़ी हुई थी। 

जानवरों और पक्षियों के समूह  जिस रक्षा प्रणाली के अंतर्गत अपनी रक्षा में लगे थे वह एक तरह से गोरिल्ला जंग से मिलती जुलती भी थी। इधर मानव शायद बेखबर था। मनुष्यों ने, अपने पैरों के नीचे पनप रहे प्रतिरोध से अनभिज्ञ होकर, अपनी निरंतर प्रगति जारी रखी। उन्होंने अर्थमूवर्स को आगे बढ़ाया, इस बात से अनजान कि जैसे-जैसे ज़मीन खिसकने लगी और सुरंगें गहरी होती गईं, हर कदम कठिन होता जा रहा था। 

जानवरों ने अपनी सूझबूझ और एकता के साथ अथक परिश्रम किया, विनाश के ज्वार को रोकने के लिए संघर्ष करते समय उनकी मांसपेशियों में बुरी तरह से खिंचाव आ गया था। वे जब भी थकते तो बस कुछ पल सिस्टा कर फिर से तरोताज़ा हो जाते। यह सब देख कर युवा हिरन का दिल आशा और दृढ़ संकल्प से भरा हुआ था, उसने अपने साथियों को और आगे बढ़ने का आग्रह किया, यह विश्वास करते हुए कि वे प्रगति की इन ताकतों के खिलाफ इस लड़ाई को हर हाल में जीत सकते हैं।

जैसे-जैसे निर्माण वाहन करीब आते गए, जानवर जमीन के माध्यम से अपने इंजनों के कंपन को महसूस कर सकते थे। ऊदबिलाव और बिज्जू बेहद उत्साहित थे। उन्होंने एक साथ काम करते हुए, अपनी सुरंगों को बहुत ही तेज़ी से मज़बूत किया और भागने के नए रास्ते बनाए। इनकी सुरंगे देख कर बड़े बड़े किलों और जंगलों में मानव की बनाई सुरंगें भी मत खा रही थीं। उनके साथ ही गिलहरियाँ और खरगोश इधर-उधर भागते रहे और इस लड़ाई में ज़रूरी  उपकरण और आपूर्ति इकट्ठा करते रहे। हिरण और मृग कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे, जिससे एक अभेद्य दीवार बन गई जिसने बुलडोजर और उत्खनन कर्ताओं की प्रगति को काफी धीमा कर दिया था। 

अफ़सोस कि अपनी जन्मभूमि और अपनी कर्मभूमि अर्थात जंगलों को बचाने के लिए जिस शक्ति, बलिदान और हिम्मत का परिचय ये जानवर दे रहे थे उसे दुनिया को बताने के लिए वहां न कोई इतिहासकार था, न कोई लेख, न कोई टीवी चैनल और न कोई अख़बार का प्रतिनिधि। उनकी बहादुरी दुनिया को दिखाने वाला वहां कोई नहीं था। मानव की अमानवीय बर्बरता दिखाने वाला भी वहां कोई नहीं था। कुछ जानवर ही सोच रहे थे कि उनकी बहादुरी और कुर्बानी गुमनामी के अंधेरे में गुम हो कर रह जाएगी।  फिर भी सभी जुटे हुए थे। सम्पदा बनाने और  शोहरतें कमाने की लालसा और इच्छा से कोसों दूर। त्याग और बलिदान की एक ऐसी जंग लड़ी जा रही थी जिसमें केवल धरती मां का शुद्ध प्रेम नज़र आ रहा था। अपनी जन्मभूमि के साथ अटूट लगाव की एक तस्वीर नज़र आने लगी थी। 

इस बीच, युवा हिरण के बच्चे ने फिर से कमाल किया। उसकी ऊर्जा सचमुच अटूट लग रही थी, प्रोत्साहन के शब्दों के साथ उसने अन्य जानवरों को एक बार फिर से एक छोटी सी लेकिन आपात बैठक के लिए एकजुट किया। उसने उन्हें उन सभी अन्य जानवरों की कहानियाँ भी उन्हें सुनाईं, जिन्होंने कठिन से कठिन बाधाओं का सामना किया और विजयी हुए, जिससे सबसे अधिक संदेह करने वाले लोगों के मन में भी आशा की किरण जगी। उसका दृढ़ संकल्प संक्रामक था, और यह जंगल की आग की तरह पूरे समूह में फैल गया। शायद पहली बार इस जंगल में इन जानवरों ने अपने बहादुर पुरखों और योद्धाओं का इतिहास पढ़ा था और उससे प्रेरणा लेने की ज़रूत भी महसूस की थी। अतीत उनके सामने वर्तमान बना नज़र आने लगा था। 

जानवारों का यह ज़ोरदार जवाबी संघर्ष रंग भी लाने लगा था। जैसे-जैसे मनुष्यों ने जल जंगल और ज़मीन पर अपने एकाधिकार और अपने कब्ज़े की अपनी निरंतर प्रगति जारी रखी, उन्होंने ध्यान देना शुरू कर दिया कि उनकी मशीनों को आगे बढ़ने में कठिनाई हो रही थी। उनके नीचे की ज़मीन खिसक रही थी और अस्थिर थी, और वे समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा क्यों है। उन्हें शायद बहुत कम ही पता था कि जानवर अपने घर और देश को बचने के लिए लगातार कड़ी मेहनत कर रहे थे, सुरंगें खोद रहे थे और अपनी सुरक्षा को मजबूत कर रहे थे। इस तरह जानवर एक दुर्जेय शक्ति बन गए थे, जो अपनी बुद्धि और ताकत का उपयोग करके मनुष्यों और उनकी मशीनों को मात दे रहे थे। मानव की बड़ी बड़ी मशीनें जानवरों की एकता और क्षमता के सामने हारती हुई लगने लगी थी। 

इस बीच, युवा हिरण का बच्चा अपने साथी जानवरों के लिए आशा और लचीलेपन का प्रतीक बन गया था। उनके नेतृत्व कौशल और अटूट दृढ़ संकल्प ने उन्हें दुर्गम बाधाओं का सामना करते हुए भी लड़ना जारी रखने के लिए प्रेरित किया। उस युवा हिरणी की मां भी जानती थी कि वे प्रगति के खिलाफ इस लड़ाई को हमेशा के लिए नहीं जीत सकते, लेकिन उन्हें यह भी विश्वास था कि वे हर हाल में बदलाव ला सकते हैं। वह अपने उस हिरण बेटे पर गर्व से सिर ऊंचा कर के आसमान की तरफ देख रही थी जिसने शेर जैसा कलेजा दिखाया है। अस्तित्व की लड़ाई कमज़ोर से कमज़ोर लोगों को भी कितना बहादुर बना देती है। जब मन की शक्ति तन की शक्ति के साथ आ मिलती है तो ऐसा चमत्कार होना ही होता है। 

जंगलों पर कब्ज़ा जमाने को आतुर मानव समाज तरह तरह के धुएं और ज़हरों का भी इस्तेमाल करने लगा। मशीने भी नई नई मंगवा ली गईं। हरे भरे वृद्ध विशाल पेड़ों को काट कर उनकी जगहों पर कंक्रीट की बड़ी बड़ी इमारतें खड़ी करने का अभियान ज़ोरों पर था। जानवर हैरान थे कि जिस विकास के लिए मानव पागल हुआ जा रहा है उसके पूरा होने पर मानव भोजन में क्या खाएगा? प्यास लगने पर पानी कहां से पिएगा? इन सभी से बढ़ कर बड़ी समस्या यह भी कि जंगलों के पेड़ों को काट कर सांस कहां से लेगा? पर शायद उनकी सुनने वाला वहां कोई नहीं था। एक मात्र लड़ना ही उनके सामने बाकी था। और कोई चुनाव नहीं था। 

इसी बीच दो लोग कुछ गाते हुए उधर से गुज़र रहे था। क्या गए रहे थे समझ में नहीं आ रहा था। उन्होंने नीलवन्ती रन्थ जाने वाले एक बहुत ही समझदार वृद्ध सन्यासी से सम्पर्क किया। उसे सभी जानवरों और पशुपक्षियों की ज़ुबानें आती थी। वह सभी की बात समझ सकता था और सभी से बात कर सकता था। उसने दो राहगीरों का वो अदभुत गीत सुना और बताया अरे ज़ेह तो पंजाबी साहित्य की अनमोल है। यह पाश की काव्य रचना है--असीं लड़ागे  साथी--असीं लड़ागे  साथी! अर्थात हम लड़ेंगे साथी! हम लड़ेंगे साथी!

इस काव्य रचना को सुनते ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे जानवरों के हौंसले और बुलंद हो गए। उन्होंने आक्रमणकारियों के खिलाफ अपने शरीर को हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हुए सुरंगें खोदना और जीवित दीवारें बनाना जारी रखा।

जानवरों ने इस लड़ाई के साथ ही गीत गाते जा रहे उन दो राहगीरों को सलाम किया  और धन्यवाद भी कहा कि आप ने हमारे हक़ में आवाज़ बुलंद की। उन दो राहगीरों ने दोनों हाथ मुक्के की तरफ ऊपर उठाए और नारे लगाए हम आपके साथ हैं। उन्होंने वायड भी किया हम आपकी आवाज़ मेधा पाटकर तक भी पहुंचाएंगे और हिमांशु कुमार तक भी और मेनका गांधी तक भी। 

इसी बीच युद्ध जारी रहा। जैसे-जैसे निर्माण आगे बढ़ा, मनुष्य अप्रत्याशित असफलताओं से और अधिक निराश होते गए। वे इस पर काबू पाने की उम्मीद में बड़ी मशीनरी और अधिक श्रमिकों को भी लेकर आए लेकिन उनकी कोशिशे नाकाम होने लगीं। 

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