भाषा को सियासत की साज़िशों का शिकार न होने दें
लुधियाना: 10 जनवरी 2020: (कार्तिका सिंह//इर्द गिर्द डेस्क)::
भाषा को सम्मान देने की बजाये उसे हथियार बना लिया गया है। सियासत एक बार फिर अपनी नापाक चाल चल रही है। कभी पंजाबी के खिलाफ, कभी अंग्रेजी के खिलाफ और कभी हिंदी के खिलाफ। कुल मिला कर इन खतरनाक साज़िशों का खतरनाक प्रभाव मानवता पर ही पड़ता है। समाज के टुकड़े करने वाले इसका फायदा उठाते हैं। सियासत वाले लोग तो गुंडागर्दी भी कर सकते हैं। किसी न किसी भाषा पर कालख भी पोत सकते हैं, किसी भाषा प्रेमी की हत्या भी कर सकते हैं। लेकिन कलम वाले तो इनकी तरह नहीं सोच सकते। इसके बावजूद उन्हें और दृढ़ बनना होगा। कलम की साधना को और और मज़बूत बनाना होगा। भाषा को समाज के फायदे का ज़रिया बनाना होगा न कि विघटन का। भाषा समाज की एकता के काम आये न कि सियासत का हथियार बने। आज विश्व हिंदी दिवस पर हम इस बात संकल्प कर सकें तो सचमुच बहुत ही अच्छा होगा। इस विशेष दिवस पर प्रस्तुत है मेरी एक काव्य रचा जिसे शब्द भास्कर ने पुरस्कृत भी किया था।
हर ह्रदय में प्रेम का जिसने दीप जलाया; हिंदी है!
दिल को दिल से जोड़ के जिसने देश बनाया; हिंदी है।
कदम से कदम मिला के जिसने साथ निभाया; हिंदी है।
कई धर्म थे, कई वर्ग थे, रोज़ ये झगड़े आम हुए,
हर ह्रदय में प्रेम का जिसने दीप जलाया; हिंदी है।
उर्दू फारसी कठिन बहुत थे, इंग्लिश भी आसान न थी,
झट से आ कर इक जादू जिसने सिखलाया; हिंदी है।
पढ़ने लिखने की हर दिल में ललक उठे; आसान न था,
हर ह्रदय को जोड़ के जिसने जोश जगाया; हिंदी है।
हर इक हाथ में इक पुस्तक और लोग दीवाने पुस्तक के,
हर पुस्तक को हर इक तक जिसने पहुंचाया;हिंदी है।
दुनिया का उत्कृष्ठ साहित्य; पढ़ा है मैंने हिंदी में;
मुझको हर लेखक से जिसने आ मिलवाया; हिंदी है।
हिंदी देश की बिंदी है; यह सच है; इसको मान भी लो,
आज यहां भी हम सबको जिसने मिलवाया; हिंदी है।
---कार्तिका सिंह