शुक्रवार, सितंबर 11, 2020

ग्रामीण भारत में बदलाव

11-October, 2017 15:02 IST
 महात्मा गाँधी के सपनों का भारत हम सभी की ज़िम्मेदारी 
  विशेष लेख                                                                                                    *वी.श्रीनिवास  
यह तस्वीर Giving  Compass से साभार 
तीव्र गति से कृषि और ग्रामीण रोजगार विकास हमेशा से देश के नीति निर्माताओ के केंद्र में रहे हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत की परिकल्पना स्वायत्त आत्मनिर्भर गांवो के लोकतंत्र के रूप में की थी। भूमि, ग्रामीण अस्तित्व और कृषि ढांचा भारत के विकास के सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक हैं। जमीन का असमान वितरण खेती के पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार था। ग्रामीण भारत में जमीन के महत्वपूर्ण आय का साधन होने को देखते हुए ग्रामीण जनसंख्या की समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए खेती के अधिकार ढांचे में बदलाव आवश्यक था। 
लेखक
इसलिए देश की नीति, राज्य सरकार द्वारा भूमि सुधार कानूनो को बनाने और इनका क्रियान्यवन करने पर केंद्रित हुई। इनमें भूमि की अधिकतम सीमा, काश्तकारी और भूमि राजस्व अधिनियम और खेतीहर नीति में भूमि को विस्तृत रूप में सम्मिलित करना था। अधिक कृषि योग्य सरकारी भूमि निर्धनो और जरूरतमंद खेतीहरो को आजीविका के लिए वितरित की गई। इन नीतियो की परिकल्पना कृषि विकास को प्रोत्साहन देने और ग्रामीण निर्धनता को समाप्त करने के लिए की गई। 
जुलाई 1969 में बैंको के राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की गतिविधियो का बड़े स्तर पर विस्तार किया गया। सामाजिक बैंकिग नीति के रूप में ग्रामीण क्षेत्रो में बैंको की शाखाओ का तेजी से विस्तार, कृषि और इससे जुडे कार्यों के लिए लिए बैंक ऋण का विस्तार, प्राथमिक आधार पर ऋण देने और ब्याज दरो की शुरूआत की गई। ग्रामीण क्षेत्रो में बैंको की शाखाओ के विस्तार ने ग्रामीण निर्धनता में कमी लाने और गैर-कृषि वृद्धि के विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हालांकि समय बीतने के साथ राज्यो में विकास के स्तर में अतंर महसूस होने लगा। समृद्ध और तेजी से प्रगति कर रहे राज्य जहां ग्रामीण निर्धनता में कमी लाने में सफलता रहे, वहीं निर्धन राज्यो में विकास दर अस्थिर रही। तेजी से विकास कर रहे राज्यो ने जहां जमीन के पट्टो को निवेश,उत्पादन और वृद्धि के लिए प्रयोग करने हेतु एकीकरण कानून बनाए, वहीं निर्धन राज्यो में छोटे और मझौले किसानो की खेती से दूरी और इसके बाद उनके भूमिहीन कृषि मजदूर बनने ने उन्हें बाजार की अनिश्चितता पर पूरी तरह से निर्भर कर दिया। वर्षा पर आधारित खेती वाले क्षेत्रो में बड़े स्तर पर श्रमिको का पलायन देखा गया है। समृद्ध राज्यो ने निर्धन राज्यो के मुकाबले अधिक निवेश और आधारभूत ढांचे का विकास किया। जिससे परिणामस्वरूप इन राज्यो में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर्ज की गई।
राज्यों ने ग्रामीण क्षेत्रो के लिए कई कल्याणकारी कार्यक्रमो का क्रियान्वयन किया। इनमें रेगिस्तान विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त विकास क्षेत्र कार्यक्रम और कृषि विकास कार्यक्रम शामिल हैं। इन कार्यक्रमों को विकेंद्रीकृत भागीदारी विकास मॉडल पर लागू किया गया। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य विस्तृत कृषि क्षेत्र का विकास चैक डैम और चारागाहो का निर्माण कर और पशु पालन गतिविधियो का विकास करना था। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में दूसरी फसल से कृषि श्रमिकों के लिए अधिक आय और कम प्रवास के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया गया।
राज्यों ने कई प्रत्यक्ष लाभकारी कार्यक्रम प्रारम्भ किये जिनका उद्देश्य आय में वृद्धि,कौशल विकास, रहने के लिए घर और रोजगार सृजन था। ग्रामीण विकास विभाग ने प्रमुख योजनाओं राष्ट्रीय रूर्बन मिशन, प्रधामंत्री आवास योजना (पीएमएवाई), प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई),दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (डीडीयूजीकेवाई) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम(एमजीएनआरईजीए) कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया। मनरेगा के अखिल भारतीय स्तर पर क्रियान्वयन से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आय सृजन में महत्वपूर्ण परिणाम देखे गए। फरवरी, 2016 में प्रारम्भ किए गए राष्ट्रीय रूर्बन मिशन के अंर्तगत प्रत्येक गांववासी को शहरी जीवन का अनुभव दिलाने और उन्हें शहरी सुविधाओं का लाभ दिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। डीडीयूजीकेवाई के अंतर्गत 15 से 35 आयुवर्ग के निर्धन परिवारों के युवाओं पर ध्यान केद्रित कर उनकी आय के अन्य साधन का विकास कर युवाओं के रोजगार संबंधी आशा पूरी की गई।
भारतीय किसान हमेशा से ऋण की उचित दरों और समय पर मिलने के प्रति चितिंत रहे है। इस दिशा में उठाए गए प्रमुख कदमों का उद्देश्य वित्तीय रूप से सबको शामिल करना था। प्रधानमंत्री जनधन योजना वित्तीय सेवाओं तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने के राष्ट्रीय मिशन को दर्शाती है। जनधन योजना ने बैकों में वंचित जनसंख्या तक ऋण सुविधा पहुंचाने संबंधी आवश्यक आत्मविश्वास जगाया है। जिसके फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रो में दिए जाने वाले ऋण में महत्वपूर्ण वृद्धि प्रदर्शित हुई है।
भारत जैसे विशाल देश को खाद्य उत्पादन तीव्र गति से बढ़ाने की आवश्यकता है। वर्ष 2016-17 के दौरान अब तक का सबसे अधिक खाद्य उत्पादन हुआ और यह 273.38 मिलियन टन के रिकार्ड स्तर पर पहुंचा। यह पिछले पांच वर्षों के औसत उत्पादन से 6.37 प्रतिशत अधिक है और वर्ष 2015-16 के मुकाबले 8.6 प्रतिशत अधिक है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में मृदा के विश्लेषण के उद्देश्य से देश से सभी किसानों को द्ववार्षिक आधार पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी)जारी करने की योजना की शुरूआत की। इसके साथ ही देश भर की खुदरा 885 कृषि उत्पादन विपणन समितियों को समान ई-प्लेटफार्म के द्वारा जोड़ने के लिए राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-एनएम) की शुरूआत की। इस पोर्टल को कई भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया गया है जिससे किसानों को महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकेगी। राज्य सरकारें सभी प्रकार की फसलों में जोखिम को कवर करने वाले और उन्नत सिंचाई योजनाओं को प्रोत्साहन देने के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के क्रियान्वयन के लिए तेजी से प्रयास कर रही है।
केंद्र सरकार के किसानों को सशक्त करने और गांव स्तर पर आधारभूत ढांचे में सुधार संबंधी कार्यक्रमों ने गरीबी को कम करने और स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी सूचकांको में सुधार लाने में सफलता मिली है। कृषि आय में सुधार और सब्सिडी हस्तातरंण में पारदर्शिता से 21 वी सदी के भारत का निर्माण होगा। 
(PIB11-October, 2017 15:02 IST
***
*वी श्रीनिवास 1989 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है और वर्तमान में राजस्थान कर बोर्ड के अध्यक्ष पद और राजस्थान राजस्व बोर्ड के अध्यक्ष का अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे हैं। लेख में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत है।