शुक्रवार, दिसंबर 28, 2012

रब दा सहारा के ज़रिये गौरव सग्गी

फ़िल्मी दुनिया में फिर लुधियाना की मौजूदगी का अहसास
Photo Courtesy:Sara Tariq
पंजाबी फिल्मों की बात चले तो जो नाम और चेहरे एकदम जहन में आते है उनमें से एक चेहरा है सरदार भाग सिंह का। चंडीगढ़ के बस स्टैंड से बाहर निकलते ही सडक पार करके उनके घर में जाना किसी वक्त रोज़ की बात हुआ करती थी। वक्त की गर्दिश में फिर यह सिलसिला न चाहते हुए ही लगातार कम होता चला गया। यहाँ रोज़ी रोटी के फ़िक्र में ऐसे सिलसिले अक्सर कम हो जाते हैं। पर उनकी जो बातें अब तक जहन में हैं उनमें से एक है सोमवार। वह सोमवार को उपवास रखते थे। भगवान् शिव में उनकी गहरी आस्था थी। शिव का नटराज रूप उनके ड्राईंग रूम में भी सजा होता। कभी मूड होने पर वह भगवान् शिव और कला की विस्तृत चर्चा भी करते। 
इसी तरह गायन और अभिनय के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने वाली सुलक्षना पंडित भी बहुत अध्यात्मिक थी।सर्दी हो या ओले बरस रहे हों हर रोज़ सुबह पूरे केशों सहित स्नान करना और फिर पूजा पाठ में काफी समय गुज़ारना उनकी दिनचर्या में शामिल था। उनकी आवाज़ में भी जादू सा था और अभिनय में भी। बहुत सी लोकप्रिय फिल्मों में यादगारी भूमिका निभा पाना और फिर फिल्म फेयर एवार्ड भी हासिल कर लेना कोई आसान बात नहीं थी। हालाँकि उनके सामने चुनौती भी सख्त थी और प्रतियोगिता भी। 
दर्शकों के मन में हनुमान जी की छवि बनने के बाद दारा सिंह जी भी धर्म कर्म में बहुत रुचि लेने लगे। शायद यही कारण है कि दर्शक उनमें हनुमान जी को ही देखने लगे। पहले पहले मुझे लगता था की शायद इस तरह के सात्विक किस्म के लोग तामसिक प्रवृतियों से भरी फ़िल्मी दुनिया में सफल नहीं हो सकेंगे। पर इन सबकी सफलता देख कर दुनिया के साथ साथ मैं खुद भी हैरान रह गया। पंजाबी फ़िल्मी दुनिया के महारथी भाग सिंह ने किस तरह अपनी बेटी बरखा को पत्रकारिता की बारीकियों से अवगत करा कर एक कुआलिफाईड पत्रकार बनाया। अभिनय में नई जान डालने 
वाली अपनी धर्मपत्नी कमला भाग सिंह के साथ किस तरह कदम दर कदम मिला कर कठिन से कठिन रास्तों पर चल कर सफलता की ऊंचाइयों को छुआ यह किसी करामत से कम नहीं। मुझे उनके परिवार के साथ इतय एक एक पल बिना किसी कोशिश के अब तक याद है। भाग सिंह जी का गोरा   रंग और मेहंदी रंगी भूरी दाड़ी कुल मिलकर उनकी शख्सियत बहुत ही आकर्षक लगती रिटायर्मेंट के बाद इस तरह की  सहेज पान तभी संभव होता है जब दिल और दिमाग के ख्याल भी बहुत खूबसूरत हों। ज़िन्दगी के सभी रंगों को उन्हों ने मुस्करा कर समझा। हर मुश्किल को उन्होंने हर बार सुस्वागतम कहा। एक आम इंसान की तरह ज़िंदगी जीते जीते वह अचानक ही अपनी सहजता के कारण खास हो जाते। मुझे याद है एक बार एक फ़िल्मी मेले के आयोजन को लेकर कुछ पत्रकार दोस्तों ने काफी कुछ विरोध में लिखा पर जब वे भाग सिंह जी के सम्पर्क में आये तो उनका नजरिया पूरी तरह बदल गया। वे समझ गए कि मामले को देखना अपनी अपनी सोच पर भी निर्भर करता है। जादू केवल जादूगर की छड़ी में नहीं शब्दों में भी होता है। बाद में यह विरोध दोस्ती में बदल गया। वे पत्रकार दोस्त दिल्ली से उन्हें मिलने विशेष तौर पर चंडीगढ़ आते।
लुधियाना का गौरव सग्गी 
इसी तरह दारा सिंह जी ने भी धमकियों और चुनौतियों को बहुत ही सहजता से सवीकार करके ज़िन्दगी जीने के नए अदाज़ सिखाये। चंडीगढ़ में दारा स्टूडियो की स्थापना का काम आसान नहीं था। मुझे पता चला कि उन्हें उतनी जगह नहीं मिली जितनी वह चाहते थे। किसी सनसनीखेज़ खबर की चाह में मैंने दारा जी से इसी मुद्दे पर सवाल कर दिया। दारा जी मुझे देखकर मुस्कराए और बहुत ही सहजता से बोले अगर सरकार यह जगह भी न देती तो हम क्या कर लेते? दारा जी जैसे महान लोगों ने जिंदगी को जो सलीके और सबक सिखाये उनकी अहमियत वक्त के साथ साथ लगातार बढती रहेगी। उनके पास बैठ कर, उनसे बातें करके एक नई ऊर्जा का अहसास होता था।
आज अचानक यह सब कुछ मुझे याद आ रहा है एक नए युवा चेहरे को देख कर। लुधियाना का गौरव सग्गी भी फ़िल्मी दुनिया को समर्पित है लेकिन पूरी तरह सात्विक रहते हुए। तकरीबन तकरीबन हर रोज़ उपवास, हर रोज़ पूजा पाठ, हर रात्रि मेडिटेशन। सोने में चाहे आधी रात हो जाये लेकिनउठना वही रात को दो बजे और ठंडे पानी से नहा कर रम जाना पूजा पाठ में। मेडिटेशन, रियाज़ या फिर शूटिंग, रिकार्डिंग या कोई और परफोर्मेंस बस यही है गौरव की दिनचर्या। मैंने कभी गौरव को आम लडकों की तरह इधर उधर आलतू फालतू बातों में नहीं देखा। लुधियाना से मुम्बई और मुम्बई से विदेश तक यही है उसका लाइफ स्टाइल।
कहते हैं धरती गोल भी है बहुत छोटी भी। बस इसी सिद्धांत पर एक बार हमारी मुलाकात पठानकोट में हुई। सुबह मूंह अँधेरे से लेकर देर शाम तक हम एक साथ रहे। यह सब किसी प्रोजेक्ट को लेकर था और इसके बारे में वहां शायद किसी को खबर भी नहीं थी लेकिन हमें वहां बिना किसी पूर्व कार्यक्रम के जाना पड़ा एक ही आयोजन में। हम सब ने जलपान किया लेकिन गौरव का उपवास था। खाना तो दूर जल या चाये की एक बूँद भी नहीं। अचानक ही मेरे सामने किसी आयोजक ने मंच पर गौरव का नाम अनाऊंस करवा दिया और उसके बाद कमरे में आ कर कहा कि अब आप मंच पर आ जाइये अगली बारी आपकी है। सुन कर मुझे चिंता हुई। मुझे मालूम था कि गौरव ने सुबह से कुछ नहीं खाया। 
चाये या पानी का एक घूँट भी नहीं। मुझे लगा कि शायद यह लड़का कहीं मंच पर गिर न पड़े। इसके साथ ही न वहां गौरव की टीम थी न ह साज़ और संगीत का पर्याप्त प्रबंध। पर गौरव के चेहरे पर न चिंता, न डर, न ही घबराहट। आशंकित मन के साथ कुछ ही पलों के बाद मैं भी पीछे पीछे बाहर बने मंच पर चला गया।वहां मेरे देखते ही देखते गौरव ने भगवान् का नाम लेकर अपना गायन शुरू कर दिया। कुछ ही पलों में वहां मौजूद सभी लोग पहले तो मस्त हुए फिर उठ कर गौरव के साथ साथ झूमने लगे।मुझे वह दिन अब भी याद आता है तो मुझे फिर फिर हैरानी होने लगती है। सुबह से लेकर रात तक मैंने गौरव पर से आँख नहीं हटाई तां कि वह छुप कर कहीं कुछ खा तो नहीं रहा पर सचमुच उसने सारा दिन कुछ नहीं खाया-पीया। मुझे लगता है कि इस के बावजूद इतनी अच्छी परफारमेंस किसी दैवी शक्ति से ही संभव हो सकी। गौरतलब है की मेडिटेशन करने वालों की कार्यक्षमता अक्सर बढ़ जाती है। मन की शक्ति एकाग्र हो जाने से उनकी योग्यता विकसित होती है।यही कारण है गौरव एक्टिंग में भी काम कर रहा है और गीत संगीत में भी। इसके साथ ही कैमरे की बारीकियों  को भी वह बहुत ही अच्छी तरह से समझता है। अपनी लोकप्रिय एल्बम "रब दा सहारा" में उसने गायन और अभिनय दोनों में अपना जादू दिखाया है। आखिर में एक बात और इस सबके लिए वह अपने पिता अश्विनी सग्गी और माता के आशीर्वाद को ही एक वरदान मानता है।-रेक्टर कथूरिया 


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Mobile: (Mumbai) 0996 734 049
तेज़ी से बुलंदियां छू रहा गौरव सग्गी 

सोमवार, दिसंबर 24, 2012

मामला आपराधिक कानून में संशोधन के सुझाव देने का

24-दिसंबर-2012 13:33 ISTसरकार ने किया प्रख्‍यात न्‍यायविदों की समिति का गठन
सरकार ने आपराधिक कानून में संभावित संशोधनों के बारे में सुझाव देने के लिए प्रख्‍यात न्‍यायविदों की एक समिति बनाने का फैसला किया है, ताकि महिलाओं के खिलाफ संगीन यौन अपराध करने वाले अपराधियों के विरूद्ध तेजी से सुनवाई करने और उन्‍हें कड़ी सज़ा देने का प्रावधान किया जा सके। 

भारत के पूर्व न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति (सेवानिवृत्‍त) श्री जे. एस. वर्मा इस समिति के अध्‍यक्ष होंगे। हिमाचल प्रदेश की पूर्व मुख्य न्‍यायाधीश (सेवानिवृत्‍त) न्‍यायमूर्ति श्रीमती लीला सेठ और भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल श्री गोपाल सुब्रमण्‍यम इस समिति के अन्‍य सदस्‍य होंगे। यह समिति 30 दिन के अन्‍दर अपनी रिपोर्ट देगी। 

हाल की घटना को ध्‍यान में रखते हुए सरकार ने मौजूदा कानूनों की समीक्षा करने की आवश्‍यकता पर गंभीरता से विचार किया है, ताकि संगीन यौन अपराधों के मामलों में जल्‍दी इन्‍साफ मिले और अपराधियों को कड़ी सज़ा मिले। (PIB)

वि. कासोटिया/आनन्‍द/मधुप्रभा—6318

बुधवार, दिसंबर 19, 2012

केन्‍द्रीय पर्यटन मंत्री श्री चिरंजीवी ने की घोषणा

पर्यटन मंत्रालय द्वारा दक्षिणी क्षेत्र पर्यटन परिषद का गठन 
                                                                                                                                      साभार चित्र 
केन्‍द्रीय पर्यटन मंत्री श्री चिरंजीवी ने आज आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और संघ शासित राज्‍य पुडुचेरी को मिलाकर दक्षिणी क्षेत्र पर्यटन परिषद (एसजेडटीसी) का गठन करने की घोषणा की। मंत्रालय ने विश्‍व वर्ल्‍ड ट्रेवल एंड टूरिज्‍म कौंसिल- इंडिया इनिशिएटिव (डब्‍ल्‍यूटीटीसीआईआई) के पदाधिकारियों के साथ हुई अपनी बातचीत में इस कौंसिल की इस वर्ष सितम्‍बर में आयोजित बेकाल रिट्रीट के दौरान सामने आए विचार का स्‍वागत किया। इस परिषद के गठन से दक्षिण भारत में पर्यटन और पर्यटन उत्‍पादों के विकास में सहायता मिलेगी। पर्यटन उत्‍पादों के प्रतियोगी कराधान, अंतर्राज्‍यीय कराधान और राज्‍यों के प्रवेश और निकास बिंदुओं पर बिना किसी बाधा के पर्यटकों की आवाजाही जैसे मुद्दों की यह परिषद देखरेख करेगी। 

संबंधित राज्‍यों के मुख्‍य सचिव बारी-बारी से एसजेडटीसी के अध्‍यक्ष होंगे जबकि इन राज्‍यों के पर्यटन सचिव और वित्‍त सचिव इसके स्‍थाई आमंत्रित सदस्‍य होंगे। इस घोषणा का स्‍वागत करते हुए डब्‍ल्‍यूटीटीसीआईआई ने एक वक्‍तव्‍य में कहा कि दक्षिण भारत में पर्यटन का विकास करने की दिशा में यह एक श्रेष्‍ठ कदम है, जिससे इस क्षेत्र में पर्यटन के विकास के लिए आवश्‍यक अवसंरचना, नीति और अन्‍य हस्‍तक्षेपों को बढ़ाने में मदद मिलेगी। (PIB) 
19-दिसंबर-2012 17:30 IST

वि. कासोटिया/इन्‍द्रपाल/दयाशंकर — 6218

शनिवार, नवंबर 24, 2012

ग्रामीण पर्यटन

पंजाब में कृषि पर्यटन लोकप्रिय हो चुका है
विशेष लेख:पर्यटन                                                          सरिता बरारा*
                                                                                                                Courtesy Photo
   पिछले साल जब पुणे के विवेक शिरोड ने अपने बच्‍चों से कहा कि वे उन्‍हें घुमाने ले जा रहा है तो उनके बच्‍चे काफी खुश हुए। उन्‍होंने अनुमान लगाना शुरू किया कि 'क्‍या उनके पिता उन्‍हें मुम्‍बई ले कर जाएंगे या गोवा?' लेकिन विवेक ने इस बार कुछ और ही सोच कर रखा था। उसने ग्रामीण पर्यटन के बारे में सुना था और इस बार वे अपने बच्‍चों को गांव की सैर कराना चाहता था। जब बच्‍चों को इस बारे में पता चला तो वे यह सुनकर पहले तो काफी निराश हुए। लेकिन जैसे ही उन्‍होंने गांव में कदम रखा तो उन्‍हें बहुत अच्‍छा लगा। उन‍के लिए यह एक अलग अनुभव था। वहां बच्‍चे कभी चीकू तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ रहे थे या बैलगाड़ी या ट्रेक्‍टर की सवारी का आनंद ले रहे थे या कुएं पर पानी के साथ खेल रहे थे। विवेक ने कहा कि उसने अपने बच्‍चों को इतना खुश पहले कभी नहीं देखा था । उसने कहा कि रात में स्‍थानीय नृत्‍य और संगीत आयोजित हुआ जिसे उसके परिवार को शहर में पहले कभी देखने का मौका नहीं मिला था।
  बड़ी-बड़ी इमारतों और दौड़ –भाग भरी जिंदगी में लोग इस शोर से थोड़ा दूर आना चाहते हैं और चैन की सांस लेना चाहते हैं। ग्रामीण पर्यटन का विचार 2002 में राष्‍ट्रीय पर्यटन नीति में परिकल्पित किया गया था। इसे गांव की जिंदगी, कला, संस्‍कृति, विरासत प्रदर्शित के रूप में परिभाषित किया गया था, जिससे स्‍थानीय समुदाय को आर्थिक और सामाजिक  रूप से फायदा हो। साथ ही पर्यटकों और स्‍थानीय लोगों के बीच संवाद भी हो ।
ग्रामीण पर्यटन योजना
 ग्रामीण पर्यटन योजना विशेष रूप से गांवों में ढांचागत सुविधाएं उपलब्‍ध कराने के लिए बनाई गई थी जिससे ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा मिल सके। बाद में प्रायोगिक आधार पर संयुक्‍त राष्‍ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के साथ मिलकर इंडोजिनस टूरिज़म प्रोजेक्‍ट (ईटीपी) को इसके साथ जोड़ा गया। इस परियोजना का उद्देश्‍य भी टिकाऊ आजीविका, पुरूष और महिला में समानता, महिलाओं, युवा और समुदाय के अन्‍य वंचित वर्गों का सशक्तिकरण और सांस्‍कृतिक संवेदनशीलता तथा पर्यावरणीय स्थिरता पर कार्य करने जैसे मुद्दों पर ध्‍यान देना है।
पर्यटन मंत्रालय की क्षमता निर्माण योजना के तहत क्षमता निर्माण गतिविधियों के लिए 2006 से वित्‍तीय सहायता भी दी जा रही है।
 पंडुरंगा ग्रामीण पर्यटन का हिस्‍सा हैं। उन्‍होंने कहा कि महाराष्‍ट्र में ग्रामीण पर्यटन की 2004 में बारामती जिले में एक प्रायोगिक परियोजना के रूप में शुरूआत हुई थी। यहां 65 एकड़ के क्षेत्र में बागबानी होती है। उन्‍होंने कहा कि जब शहर से लोग घूमने आते हैं तो रेशम प्रसंस्‍करण इकाइयों, दूध की डेयरी और फलों के बाग भी देखते हैं। ग्रामीण पर्यटन को प्रोत्‍साहित करने का एक उद्देश्‍य यह भी था कि गांव के लोगों का शहरों में पलायन रोका जा सके। 2004 से महाराष्‍ट्र में ग्रामीण और कृषि पर्यटन के 200 से अधिक केंद्र विकसित हुए हैं और एक लाख से ज्‍यादा पर्यटक यहां घूमने आए हैं। इसके अतिरिक्‍त किसान, गांव के बेरोज़गार युवक भी ग्रामीण पर्यटन की गतिविधियों से जुड़ गए हैं।
राजस्थान एक अन्य राज्य है जहां ग्रामीण पर्यटन पिछले कुछ समय में तेजी से विकसित हुआ है। राजस्थान न केवल अपने ऐतिहासिक स्मारकों और धर्मस्थलों के लिए प्रसिद्ध है बल्कि अपने शिल्प, नृत्य और संगीत जैसी ललित कलाओं की समृद्धि संस्कृति के लिए भी मशहूर है। मुरारका फाउंडेशन के विजयदीप सिंह के अनुसार उन्होंने न केवल भारतीय पर्यटकों बल्कि अमरीका, फ्रांस, इंग्लैंड और यहां तक कि स्विट्जरलैंड के पर्यटकों के लिए अनेक पैकेज तैयार किए हैं। उन्होंने बताया कि कई पर्यटक स्थानीय जीवन, खानपान और संस्कृति का सीधे तौर पर आनंद लेने के लिए गांव वालों के साथ उनके घर पर ही रुकना चाहते हैं। इस तरह के पैकेज के अंतर्गत पर्यटकों से एक दिन के लिए 1200 रुपए लिए जाते हैं, जिसमें से 850 रुपए किसानों के परिवारों को दे दिए जाते हैं। पर्यटकों के लिए यह कोई महंगा शौक नहीं है और किसान को भी इससे अतिरिक्त आमदनी हो जाती है।
पंजाब में कृषि पर्यटन लोकप्रिय हो चुका है। कोई भी व्यक्ति पीली सरसों के खेतों में घूमफिर सकता है, ट्रैक्टर पर घूम सकता है, मवेशियों को चराने के लिए ले जा सकता है या उन्हें खाना खिला सकता है, हरे भरे खेतों में मक्के की रोटी और साग के साथ छांछ का लुत्फ उठा सकता है, लोकनृत्य भांगड़ा का मजा लेने के साथ स्थानीय शिल्प फुलकारी बनते हुए देखने के अलावा ग्रामीण समुदाय और पंचायत से मिल सकता है। पर्यटक कुश्ती, गिल्ली-डंडा, पतंगबाजी जैसे स्थानीय खेलों में भाग ले सकते हैं या उन्हें देख सकते हैं। बच्चे घास पर उछलकूद करने के साथ-साथ ट्यूबल में नहा सकते हैं।
अनेक अन्य राज्य भी ग्रामीण पर्यटन को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
12वीं योजना में ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने की रणनीति
12वीं योजना के लिए पर्यटन के बारे में कार्यदल का मानना है कि अनेक कारणों से ग्रामीण पर्यटन से जुड़ी परियोजनाओं के सीमित सफलता मिली है। इस कार्यदल ने एक योजना का सुझाव दिया है जिसके अंतर्गत ग्रामीण पर्यटन की पूरी संभावनाओं का पता लगाया जा सकता है।

ग्रामीण पर्यटन को विकसित करने की रणनीति एक गांव को विकसित करने की बजाय गांवों के समूहों को अलग-अलग चरणों में विकसित करने पर केंद्रित है।

इसमें कहा गया है कि भौगोलिक दृष्टि से आसपास मौजूद गांवों के समूहों में पर्यटन सुविधाओं या अवसरों पर विशेष ध्यान देने से पर्यटकों को बेहतर तरीके से आकर्षित किया जा सकता है।

शिल्प बाजार या हाट लगाकर स्थानीय उत्पादों की मार्केटिंग की जा सकती है। टूर ऑपरेटर ऐसे सस्ते और व्यावहारिक यात्रा पर बड़ी संख्या में पर्यटन के इलाकों में ले जा सकते हैं जहां उनके लिए जीवन शैली, स्थानीय कला और शिल्पियों/कलाकारों और ललित कला सहित विविधता से भरे शॉपिंग के अवसर उपलब्ध हों।  (PIB)  22-नवंबर-2012 12:34 IST                                     (पीआईबी फीचर)

*लेखिका स्‍वतंत्र पत्रकार हैं।

इस लेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के अपने हैं और यह जरूरी नहीं है कि पत्र सूचना कार्यालय उनसे सहमत हो।

मीणा/कविता/प्रियंका/अर्जुन- 287

पूरी सूची -22.11.2012

शुक्रवार, जून 01, 2012

स्‍नातकों एवं अध्‍यापकों के निर्वाचन क्षेत्रों से

 महाराष्‍ट्र विधान परिषद के द्विवार्षिक चुनाव
     महाराष्‍ट्र विधान परिषद के 02(दो) स्‍नातकों एवं 02(दो) अध्‍यापकों के निर्वाचन क्षेत्रों से 04(चार) सदस्‍यों के सेवा निवृत होने के कारण उनके कार्यालय की अवधि उनके नाम के सामने दी गई तारीख को पूरी हो जाएगी, इसका ब्‍यौरा नीचे दिया गया है:-

क्रम संख्‍या
सदस्‍यों के नाम
निर्वाचन क्षेत्र का नाम
सेवानिवृति की तारीख

1
2
3
1
डा. दीपक सावंत
मुंबई स्‍नातक निर्वाचन क्षेत्र
07-07-2012
2
श्री. संजय मुकुन्‍द केलकर
कोंकण डिविजन स्‍नातक निर्वाचन क्षेत्र
07-07-2012
3
श्री. दिलीपराव शंकरराव सोनवाणे
नासिक डिविजन अध्‍यापक निर्वाचन क्षेत्र
07-07-2012
4
श्री. कपिल पाटिल
मुंबई अध्‍यापक निर्वाचन क्षेत्र
07-07-2012
2.   आयोग ने यह निर्णय लिया है कि महाराष्‍ट्र विधान परिषद की उक्‍त उल्लिखित स्‍नातक एवं अध्‍यापक निर्वाचन क्षेत्रों से द्विवार्षिक चुनाव निम्निलिखित कार्यक्रम के अनुसार संचालित किया जाए:-
क्रम संख्‍या
इवेन्‍ट

अनुसूची
1
अधिसूचना जारी करना
:
08 जून, 2012 (शुक्रवार)
2
नामांकन करने की आखिरी तारीख
:
15 जून, 2012 (शुक्रवार)
3
नामांकनों की संवीक्षा
:
16 जून, 2012 (शनिवार)
4
नामांकन वापिस लेने की आखिरी तारीख
:
18 जून, 2012 (सोमवार)
5
मतदान की तारीख
:
02 जुलाई, 2012 (सोमवार)
6
मतदान की अवधि
:
सुबह 08 से सांय 04 बजे तक
7
वोटों की गणना
:
04 जुलाई, 2012 (बुधवार) सुबह 08 बजे से
8
सामने दी गई तारीख से पहले चुनाव पूरा कर लिया जाए
:
07 जुलाई, 2012 (शनिवार)

3.   उक्‍त उल्लिखित निर्वाचन क्षेत्रों से मतदाता सूचियों को 01 नवम्‍बर, 2011 को योग्‍यता की तारीख मानते हुए संशोधित कर लिया गया है तथा 28 दिसम्‍बर, 2011 एवं 20 जनवरी, 2012 को अंतिम रूप से प्रकाशित कर दिया गया है। तथापि, माननीय बम्‍बई हाई कोर्ट ने पीआईएल न: 48 ऑफ 2012 तथा डब्‍ल्‍यू.पी. न: 901 ऑफ 2012 में दिनांक 09 मई, 2012 के अपने आदेश में यह निर्देश दिया है कि अन्‍य बातों के साथ-साथ तीन नामी मुंबई के अंग्रेजी एवं मराठी अखबारों में सात दिनों यह विज्ञापन जारी किया जाए कि स्‍नातक निर्वाचन क्षेत्र में वोट देने वालों की सूची में जिसका नाम शामिल नहीं है, वोट देने वाले का नाम शामिल करने की आखिरी तारीख 15 जून, 2012 होगी। तदनुसार, कोर्ट के निर्देशों के अनुपालन में विज्ञापन लगातार सात दिनों तक प्रकाशित किए जाते रहे कि मतदाता सूची में नामांकन करने के लिए आवेदन प्राप्‍त करने की आखिरी तारीख 15 जून, 2012 रहेगी।

4.    माननीय बम्‍बई हाई कोर्ट द्वारा पारित किए गए उक्‍त आदेश को ध्‍यान में रखते हुए, नामांकन करने की आखिरी तारीख 15 जून, 2012 रखी गई है जिससे कि मतदाता सूची में पंजीकरण करने के लिए आवेदन संबंधित निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों द्वारा प्राप्‍त कर लिए जाए।

          
******

शुक्रवार, मई 25, 2012

डा. अश्वनी कुमार एक पत्रकार सम्मेलन में

योजना,  विज्ञान व तक्नौकिजी और भू विज्ञान मन्त्रालय के मंत्री डाक्टर अश्वनी कुमार 24 मई 2912 को नई दिल्ली में एक पत्रकार सम्मेलन को संबोधित  करते हुए। उनके साथ पत्र सूचना कार्यालय की प्रिंसिपल  निदेशक सुश्री नीलिमा कपूर भी नज्जार आ रही हैं.  (पीआईबी फोटो    24-May-2012 

मंगलवार, मई 22, 2012

जैव विविधता का महत्व

 विशेष सेवा एवं फीचर जैव विविधता                                             डॉ. बालाकृष्णा पिसुपति ⃰ 
चित्र साभार नैनीताल समाचार 
जीवन की विविधता (जैव विविधता) धरती पर मानव के अस्तित्व और स्थायित्व को मजबूती प्रदान करती है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (आईडीबी) घोषित किए जाने के बावजूद, यह जरूरी है कि प्रतिदिन जैव विविधता से सम्बद्ध मामलों की समझ और उनके लिए जागरूकता बढ़ाई जाए। समृद्ध जैव विविधता अच्छी सेहत, खाद्य सुरक्षा, आर्थिक विकास, आजीविका सुरक्षा और जलवायु की परिस्थितियों को सामान्य बनाए रखने का आधार है। विश्व में जैव विविधता का सालाना योगदान लगभग 330 खरब डॉलर है। हालांकि इस बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा का तेजी से ह्रास होता जा रहा है।
           वर्ष 2012 के अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस का मूल विषय समुद्रीय जैव विविधता है। तटीय और समुद्रीय जैव विविधता आज दुनिया भर के लाखों लोगों के अस्तित्व को बचाए रखने का आधार बनाती है। पृथ्वी की सतह के 71 प्रतिशत हिस्से पर महासागर है और यह 90 प्रतिशत से ज्यादा रहने योग्य जगह बनाता है। तटीय क्षेत्र नाजुक पारिस्थितिक तंत्र प्रणालियों-मैनग्रोव्स, प्रवाल-भित्तियों, समुद्री पादप और समुद्री शैवालों के लिए सहायक हैं। लेकिन इन क्षेत्रों में जीवन की विविधता को कम समझा गया है और उनकी अहमियत कम करके आंकी गई है जिसके परिणामस्वरूप उनका जरूरत से ज्यादा दोहन हुआ है। कुछ समुद्रीय प्रजातियां गायब हो रही हैं और कुछ का अस्तित्व संकट में है। समुद्रीय जैव विविधता की आर्थिक एवं बाजार सम्बंधी सम्भावनाओं को अभी तक भली-भांति समझा नहीं जा सका है, जबकि समुद्रीय विविधता की सम्भावनाएं कई गुणा बढ़ गई हैं। समुद्रीय जीवन से सम्बद्ध उत्पादों और प्रक्रियाओं पर लिए जाने वाले पेटेंट्स की संख्या हर साल तेजी से बढ़ती जा रही है।
           भारत में करीब 7,500 किलोमीटर तटीय क्षेत्र है, जिसमें से करीब 5,400 किलोमीटर प्रायद्वीपीय  क्षेत्र भारत से सम्बद्ध है और बाकि हिस्से में अंडमान, निकोबार और लक्षद्वीप द्वीपसमूह हैं। कम ऊंचाई वाले तटीय क्षेत्रों में रहने वाली कुल वैश्विक आबादी का करीब 11 प्रतिशत हिस्सा, दुनिया की 0.25 प्रतिशत से भी कम तटीय क्षेत्र वाले भारत में बसता है। तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लाखों समुदायों की आजीविका का प्रमुख साधन मछली पकड़ना है। भारत का तटीय क्षेत्र प्रवाल भित्तियों, मैनग्रोव्स, समुद्रीय पादप/समुद्री शैवालों, खारे पानी वाले निचले दलदली इलाकों, रेत के टीलों, नदियों के मुहानों और लगून्स से भरपूर है।
           भारत में तीनों प्रमुख रीफ या समुद्री चट्टानें (एटॉल, फ्रिंजिंग  और बेरियर) बेहद वैविध्यपूर्ण, विशाल और बहुत कम हलचल वाले समुद्री चट्टानों वाले इलाकों में मिलती हैं। भारत की तटीयरेखा के चारों तरफ चार प्रमुख समुद्री चट्टानों वाले रीफ क्षेत्र हैं। पश्चिमोत्तर में कच्छ की खाड़ी है, दक्षिण पूर्व में पॉक और मन्नार की खाड़ी हैं, पूर्व में अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह हैं तथा पश्चिम में लक्षद्वीप द्वीपसमूह है। मैनग्रोव्स 4827 वर्गकिलोमीटर के दायरे में फैले हैं इनमें से पूर्वी तट के साथ 57 प्रतिशत, पश्चिमी तट के साथ 23 प्रतिशत और बाकी के 20 प्रतिशत अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह के साथ हैं। भारतीय समुद्रों में छह श्रेणियों के साथ समुद्री पादपों की 14 प्रजातियां  होने की जानकारी है। उपरोक्त वर्णित सभी पारिस्थितिक तंत्र अनूठे समुद्रीय और जमीन पर रहने वाले वन्यजीवन को आश्रय देती हैं।
           प्रवाल भित्तियों की आर्थिक सामर्थ्‍य करीब 125 करोड़ डॉलर/हैक्टेयर/वर्ष है। ये आंकड़े अर्थशास्त्रियों के शोध के हैं। सोचिए हमें स्थानीय लोगों के लिए इस सामर्थ्य के महज 10 प्रतिशत हिस्से के बारे में ही मालूम है।
           मानव के बार-बार समुद्रीय और तटीय पारिस्थितिक तंत्र से लाभान्वित होते रहने के बावजूद, हमारी भूमि और महासागर पर आधारित गतिविधियों ने समुद्रीय पारिस्थितिक तंत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़ा है। तटवर्ती शहरों और उद्योगों द्वारा अंधाधुंध कचरा बहाने और मछली तथा अन्य समुद्रीय उत्पादों का सीमा से अधिक दोहन प्रमुख चुनौतियां हैं।
           लिहाजा तटीय और समुद्रीय पारिस्थितिक तंत्रों पर विपरीत असर डालने वाली जमीनी गतिविधियों को नियंत्रित किए जाने की जरूरत है। इतना ही नहीं, समुद्रीय संसाधन आमतौर पर स्वभाविक रूप से पुनः उत्पन्न हो जाने की क्षमता रखते हैं, इसके बावजूद उनका दोहन उनकी दोबारा उत्पत्ति की क्षमता के लिहाज से सीमित होना चाहिए। तटीय और समुद्रीय जैव विविधता के संरक्षण और प्रबंधन के लिए समुद्रीय संरक्षित क्षेत्रों/रिजर्व या आरक्षित क्षेत्रों को प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है। भारत में बहुत से समुद्रीय संरक्षण क्षेत्र/रिजर्व या आरक्षित क्षेत्र हैं और इनका विस्तार किए जाने की जरूरत है।
           दुनिया भर के पर्यावरण मंत्रियों द्वारा आगामी ‘कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज टू द कंवेशन ऑन बॉयोलॉजिकल डाइवर्सिटी‘(सीबीडी सीओपी 11) की 11वीं बैठक में समुद्रीय और तटीय जैव विविधता पर विशेष और प्रमुख ध्यान दिए जाने की सम्भावना है। इस दौरान सिर्फ समुद्रीय जीवन और तटीय जैव विविधता के संरक्षण के सम्मिलित प्रयासों की पहचान किए जाने की ही सम्भावना नहीं हैं बल्कि इस प्राकृतिक खजाने की आर्थिक सामर्थ्य पर भी गौर किया जाएगा, जो आजीविका मुहैया कराती है, हमें जलवायु परिवर्तन से बचाती है और यह सुनिश्चित करती हैं कि हमारे भोजन एवं पोषण की सुरक्षा यथावत् रहने के  साथ ही साथ उचित अंतरालों के साथ बढ़ती भी  रहे।

-22 मई 2012 को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस है।
⃰अध्यक्ष राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण
दावाअस्‍वीकरण- इस लेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के अपने हैं और यह जरूरी नहीं कि पीआईबी उनसे सहमत हो।                          (पीआईबी फ़ीचर21-मई-2012 17:45 IST

सोमवार, मई 21, 2012

आतंकवाद निरोधी दिवस:सरकारी कर्मचारियों ने ली शपथ

सभी प्रकार के आतंकवाद और हिंसा का किया विरोध
दिल्ली की वीर भूमि पर स्थित दिवंगत प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी की समाधि पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए नैशनल एडवाइज़री  काउन्सिल की चेयरपर्सन   सुश्री सोनिया गाँधी उनके साथ उनके बेटे राहुल गाँधी भी हैं
इसी दुखद घड़ी पर प्रधानमन्त्री डाक्टर मनमोहन सिंह ने भी अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये (पीआईबी फोटो)
कर्मचारियों को शपथ दिलाते केन्द्रित गृह मंत्री पी चिदम्बरम (पीआईबी) फोटो)
आज पूरे देश में आतंकवाद निरोधी दिवस मनाया जा रहा है। देश के सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों और अन्‍य जनसंस्‍थानों के कर्मचारियों ने सभी प्रकार के आतंकवाद और हिंसा के विरूद्ध शपथ ली। केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदम्‍बरम ने आज प्रात: नॉर्थ ब्‍लाक स्थित गृह मंत्रालय में अधिकारियों और कर्मचारियों को शपथ दिलाई।
देश के सभी वर्गों के लोगों में आतंकवाद, हिंसा और जनता, समाज और पूरे देश पर पड़ने वाले इसके खतरनाक प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है।
आतंकवाद निरोधी दिवस मनाये जाने के पीछे मुख्‍य उद्देश्‍य युवाओं को आम जनता की पीड़ा के बारे में जानकारी देते हुए और यह दर्शाते हुए कि आतंकवाद किस प्रकार राष्‍ट्रीय हितों के विरूद्ध है, आतंकवाद/हिंसा की पद्धति से दूर रखना है। स्‍कूलों, कॉलेजों और विश्‍वविद्यालयों में वाद-विवाद/विचार-विमर्श के आयोजन, आतंकवाद और हिंसा के खतरों के बारे में विचार गोष्‍ठियों/सेमिनारों/व्‍याख्‍यानों आदि के आयोजन द्वारा तथा आतंकवाद व हिंसा के विरूद्ध जागरूकता लाने के लिए समर्पित एवं स्‍थायी अभियान चलाकर इन उद्देश्‍यों को प्राप्‍त करने का लक्ष्‍य है।( पीआईबी)
21-मई-2012 13:48 IST 

मंगलवार, मई 15, 2012

बहुत ही उत्साह से देखा गया रेड रिबन एक्सप्रेस को

रेड रिबन एक्सप्रेस जब 15 मई 2012 को तमिलनाडू के ज़िला करूर में पहुंची तो वहां इसे बहुत ही उत्साह से देखा गया।  इस मौके पर जिला कुलेक्टर सुश्री वी शोभना ने भी इस रेलगाड़ी में लगी प्रदर्शनी को विशेष तौर पर देखने के लिए \वक्त  निकला।.(पीआईबी फोटो)   15-May-2012

सोमवार, मई 14, 2012

दूरियों को नजदीकियों में बदलने का एक और प्रयास


ब्रह्मपुत्र नदी पर देश का सबसे लंबा पुल
विशेष लेख


एच सी कुंवर *
            असम में बोगीबील में ब्रह्मपुत्र नदी पर रेल सह रोड़ पुल बनाए जाने की घोषणा 1996-97 के रेल बजट में एक राष्‍ट्रीय परियोजना के रूप में की गई थी। इसकी आधारशिला 1997 में तत्‍कालीन भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा रखी गई और निर्माण कार्य वर्ष 2002 में शुरू किया गया। देश के इस सबसे लंबे पुल को 2007 में एक राष्‍ट्रीय परियोजना घोषित किया गया। इसका निर्माण पूर्वोत्‍तर फ्रंटियर रेलवे करवा रहा है और काम चल रहा है। इसकी अनुमानित लागत रूपये 3232.01 करोड़ है और इसके अंतर्गत छोटे-बड़े पुलों, स्‍टेशनों और तटबंधों को मजबूत करने का काम भी शामिल है जो इस पुल के उत्‍तरी तट और दक्षिणी तट पर पूरा किया जा चुका है।

लक्ष्‍य मार्च 16                              करोड़ रूपये में
स्‍वीकृति का वर्ष
अनुमानित लागत
अनुमानित संपूर्णता मार्च-12
   2012-13
प्रगति ( %)
1997-98
3230.01
2382.61
 परिव्‍यय    
व्‍यय (अप्रैल     12 तक)
75 %
230
-

      इस पुल की लंबाई 4.940 किलोमीटर होगी और इसे बनाने के लिए 42 खंभे खड़े किये जायेंगे। इनमें से 32 खंभे बनाने का काम पूरा किया जा चुका है और इस सेतु के 2013 तक बनकर पूरा हो जाने की संभावना है। इस परियोजना को पूरी करने की सबसे बड़ी बाधा मौसम है क्‍योंकि निर्माण कार्य सूखे मौसम में ही चलता है। ऐसा कार्य सिर्फ चार महीनों के दौरान 15 नवम्‍बर से 15 मार्च तक हो पाता है। वर्ष के बाकी महीनों के दौरान यहां बारिश होती रहती है जिससे नदी में खंभे गलाने का काम मुश्किल हो जाता हे। वर्ष 2015-16 तक इसे बना कर चालू कर देने का लक्ष्‍य तय किया गया है1
      बोगीबील रेल सड़क सेतु पर बड़ी लाइन की दोहरी लाइनें बिछाई जायेंगी और इसपर तीन लेन वाली सड़क होगी जिससे ब्रह्मपुत्र नदी के उत्‍तरी और दक्षिणी तट को जोड़ा जा सकेगा और इसपर यातायात सुगम हो सकेगा। अरूणाचल प्रदेश और असम के पूर्वी भाग के लोगों को इसके कारण बहुत लाभ होगा। इस सेतु के बन जाने पर असम के सोनितपुर, लखीमपुर, ढेमाजी जिलों और अरुणाचल प्रदेश के लोगों के लिए असम आना-जाना आसान हो जायेगा। अभी तक इन लोगों को ब्रह्मपुत्र नदी नाव से पार करनी पड़ती है।
      अरुणाचल प्रदेश के लोगों को इसके रास्‍ते ईटानगर जाने पर चौबीस घंटे से ज्यादा का समय बचेगा। यही नहीं इस सेतु के बन जाने पर रंगिया से मुकोंगसेलेक बड़ी लाइन के बीच संपर्क जुड़ जायेगा और देश के अन्‍य भागों से लोग सीधे वहां पहुंच सकेंगे। इसके चलते ऊपरी असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच संपर्क भी सुधरेगा। इस बड़ी परियोजना के पूरी हो जाने पर पूरे इलाके का सामाजिक-आर्थिक विकास तेज ही नहीं होगा बल्कि पूर्वी क्षेत्र में देश की सुरक्षा व्‍यवस्‍था भी मजबूत होगी। (पीआईबी)
*उपनिदेशक (मीडिया एवं संचार), रेल मंत्रालय

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रविवार, अप्रैल 22, 2012

कामरेड अनिल रजिमवाले ने लुधियाना में कहीं खरी खरी बातें

इन्कलाब न बटन दबाने से आयेगा और न ही थाने पर हमला करने से
लुधियाना में भी बहुत उत्साह से मनाया गया लेनिन का जन्म दिन
मानव समाज को दरपेश समस्याएं किसी दैवी शकित की तरफ से नहीं बल्कि मानव के हाथों मानव की लूट खसूट के कारन ही पैदा हो रही हैं. यह विचार आज लुधियाना में आयोजित एक विचार गोष्ठी में मुक्य वक्ता व  मार्क्सवादी दार्शनिक कामरेड अनिल र्जिम्वाले ने रखा.  इस गोष्ठी का आयोजन भारतीय कमियूनिस्ट  पार्टी की लुधियाना इकाई ने सोवियत संघ के संस्थापक व्लादिमीर लेनिन के जन्म दिवस के अवसर पर किया गया था. इसके साथ ही पार्टी विश्व भूमि दिवस को मनाना भी नहीं भूली.न्याय व  बराबरी पर आधारित भारत के विकास मार्ग की चर्चा करते हुए विचार गोष्ठी में इस बात पर चिंता  व्यक्त की गयी न-न्राब्री और बेरोज़गारी जैसी समस्याएं बहुत ही तेज़ी से लगता विकराल हो रही है. इस हकीकत को स्वीकार करने के साथ ही मार्क्सवादी दार्शनिक कमरे अनिल र्जिम्वाले ने चेताया कि न तो कोई बटन द्बनेसे इन्कलाब आयेगा और न ही कीई थाने टी. पर हमला करने से. इन्कलाब अगर आयेगा तो उए आप और हम जैसे आम आदमी ही लायेंगे. उन्होंने इसके लिए बार बार कार्ल मार्क्स के हवाले दिए और याद कराया कि ,आर्क्स के रस्ते पर चल कर ही इन्कलाब आएगा.
इस बेहद गंभीर मुद्दे पर बहुत ही सहजता से लगातार बोलते हुए कामरेड अनिल ने बीच बीच में शायरी का पुट देते हुए समझाया कि सुबह होती है शाम होती है तो यह किसी दैवी शक्ति के कारन नहीं बल्कि प्रकृति और  विज्ञानं के कारण. साम्यवाद के सिद्धांतों कि विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा हर विज्ञानं ने मार्क्सवाद को और मजबूत किया, बार बार सही साबित किया. इन्कलाब में हो रही देरी की तरफ संकेत करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया की न तो बटन दबाने से इन्कलाब आने वाला है और न ही थाने पर हमला करने इन्कलाब आएगा. ढांडस बंधाते हुए उन्होंने कहा की सरमायेदारी से समाजवाद की तरफ जाता रास्ता लम्बा भी है और कठिन भी. उन्होंने स्पष्ट किया की हमारे लड़ने के कई तरीके हैं और जन संघर्षों का तरीका भी हमारा है. उन्होंने कहा की इन्कलाब आयेगा और इस के लिए इन्कलाब के मार्क्सवादी सिद्धांत जन जन तक पहुँचाने होंगें.  उन्होंने अपने लम्बे भाषण के बावजूद श्रोतायों को बांधे रखा. इक्क्लाबी सिद्धांतों के साथ साथ उन्होंने इतिहास की चर्चा भी की.  उन्होंने अख़बार निकलने के काम को भी इकलाब के लिए सहायक बताया और तकनीकी विकास के सदुपयोग की तरफ इशारा करते हुए कहा की मोबाईल और इंटरनेट का उपयोग भी इस कार्य के लिएये किया जाना चाहिए. इस सेमिनार में डाक्टर अरुण मित्र भी थे, डी पी मौड़ भी और कामरेड विजय कुमार भी और कई अन्य कामरेड भी. संगोष्ठी में महिलाएं भी बढ़ चढ़ कर शामिल थीं. -रेक्टर कथूरिया  

शनिवार, अप्रैल 21, 2012

जगदीश बजाज: जिसे मांगने पर गर्व है...!

शुरुआत: बूँद से सागर बन जाने के सफ़र की
Gyan Sathal mandir
रेल गाडी तेज़ी से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रही थी. रात गहराने लगी तो थके टूटे मुसाफिर भी सोने की तैयारी करने लगे.  उस डिब्बे में एक जोड़ी भी थी जिसमें पुरुष को बहुत ही जल्द गहरी नींद आ गयी थी. उसके साथ सफ़र कर रही महिला यात्री की आँखों में भी नींद अपना रंग दिखाने लगी. इतने में ही एक टिकट चैकर आया और उसने उस महिला से टिकट माँगा. महिला यात्री पुरुष के कंधे को झंक्झौरते हुए जोर से बोली जीजा जी जीजा जी. पुरुष हडबडा कर उठा और बोला क्या बात है. महिला ने चैकर की तरफ इशारा किया और कहा टिकट..! पुरुष कोई रेलवे मुलाजिम था, उसने झट से अपनी जेब में से एक पास निकाला और चैकर के हवाले कर दिया. पास देख कर चैकर बोला श्रीमान इस पास पर आप अपनी पत्नी के साथ तो सफ़र कर सकते हैं लेकिन साली के साथ नहीं. पुरुष यात्री ने टिकट चैकर की ने सारी बात समझ कर उसे पूरे विस्तार से समझाया कि जब उसकी पहली पत्नी का देहांत हुआ तो परिवार वालों ने मेरी दूसरी  शादी  उसीकी बहन के साथ कर साथ कर दी जो रिश्ते में मेरी साली ही लगती थी. इस तरह मेरी यह प्यारी सी साली मेरी पत्नी बन गयी पर मुझे जीजा जी कहने की आदत इसे अब तक पड़ी हुयी है सो यह अब भी मुझे जीजा जी ही कहती है. यह कहानी सुनाते हुए उस बुज़ुर्ग के चेहरे पर एक नयी चमक, होठों पर कुछ  रूमानी सी मुस्कान और आँखों में हल्की सी शरारत आ गयी. कहने लगे मुझे भी बस आदत सी पड़ी हुयी है....छूटती ही नहीं...मैंने पूछा कैसी आदत...तो कहने लगे...यही...मांगने की आदत....बस मुझे पता चल जाये कि इसकी जेब में पैसे हैं...फिर मैं उन्हें निकलवा ही लेता हूँ.... कई बार इस आदत को छोड़ना चाहा छोड़ना चाहा पर यह आदत जाती ही नहीं. साथ ही वह ये भी बताते हैं कि मांगना आसान नहीं होता. सब कि औरत बन के रहना पड़ता है. हजारों झमेले सामने आते हैं. कई बार ऐसा होता है कि लोग सब के सामने रसीद बुक से पर्ची तो कटवा लेते हैं पर पैसे दिए बिना चले जाते हैं. उस हिसाब को सम्भालना, फिर उनके चक्कर लगाना और उनसे पैसे निकलवाना...सब बहुत मुश्किल है पर मैं करता हूँ.गौर तलब है कि अब तो इस आदत के कारण ही उनके बहुत से किस्से कहानियां भी अख़बारों में भी छप चुके. टीवी चैनलों पर उनके प्रोग्राम भी दिखाए जा चुके लेकिन यह आदत कभी कम नहीं हुयी. वह इस वृद्ध अवस्था में भी सक्रिय हैं.
एक बार यह बुज़ुर्ग एक विशेष आग्रह पर महाराष्ट्र में रोटरी क्लब के एक कार्यक्रम में गए. बहुत जोर देने पर जब बोलने लगे तो वहां भी कहने लगे देखिये मुझे सब अनपढ़ समझते हैं लेकिन मैंने पीएचडी की हुयी है. वास्तव में यह एक ऐसा कार्यक्रम थ जिसमें सवाल जवाब भी साथ साथ हो रहे थे. सो इस वृद्ध व्यक्ति से भी सम्मान सहित सवाल किया गया कि आपने किस विषय में पीएचडी की है. वहां भी जनाब बिना किसी झिझक के जवाब देते हुए बोले जी मांगने में. मैं मांगने में एक्सपर्ट हूँ.  इसके बाद जैसे ही उन्होंने मांगने का कारण और लम्बे समय से चल रहा अपना  मिशन बताया तो वहां नोटों की बरसात होने लागिओ और देखते ही देखते  इस वृद्ध की झोली भर गयी. 
मेरी मुराद है लुधियाना के जानेमाने धार्मिक व्यक्ति जनाब जगदीश बजाज से जो गरीब बच्चों को पढाने के साथ साथ गरीब विधवा महिलायों को हर महीने राशन भी वितरित करते हैं.  गरीब लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कम्प्यूटर, सिलाई, कढाई और ब्यूटी पार्लर चलाने जैसे कई और प्रोजेक्ट भी चलाते हैं. यह सब होता है लुधियाना के सुभानी बिल्डिंग चोंक में स्थित ज्ञान स्थल मन्दिर में. इस चौंक  की कई इमारतों में फैले इस मन्दिर को इस तरह की मजबूती देने में जगदीश बजाज ने अपनी उम्र का एक बहुत सा हिस्सा इस तरफ लगा दिया.
मैंने एक बार पूछा बजाज साहिब लोग इस उम्र में आराम करते हैं और आप सारा सारा दिन काम. सुबह 9 नजे से लेकर मन्दिर के कार्यालय में बैठना दुखी लोगों के दुःख सुननाऔर फिर उनके कष्ट हरने के लिए मांगने के लिए निकल पड़ना. इस मिशन को लेकर फेसबुक जैसे मंच का इस्तेमाल भी बाखूबी करना...आखिर यह लगन आपको कहाँ से लगी. बजाज साहिब का चेहरा कुछ गंम्भीर हो गया.उनकी आँखें कहीं दूर अतीत में झाँकने लगीं. बस कुछ ही पलों का अंतराल और फिर बोले बात बहुत पुरानी है. हमने एक जागरण रखा था. मैं पंजाब केसरी पत्र समूह के मुख्य सम्पादक विजय चोपड़ा जी के पास गया और उन्हें निवेदन किया कि आप इस जागरण में मुख्य मेहमान बन कर आने की कृपा करें. उनके पास वक्त नहीं था और मैं उन्हें बार बार वक्त निकलने  के लिए विनती कर रहा था. इतने में ही दो महिलाएं वहां आयीं और विजय जी ने अपने किसी कर्मचारी को इशारा किया की इन्हें आटे की दो थैलियाँ  दे दो. इसके साथ ही विजय जी मुझे मुखातिब हो कर बोले अगर आप इस तरह का कोई काम करें तो मैं सुरक्षा का खतरा उठा कर भी वक्त ज़रूर निकालूँगा. मैंने उन औरतों का दर्द सुना तो मुझे अहसास हुआ कि यह काम कितना आवश्यक है.  मैंने तुरंत हाँ कर दी. इस तरह सितम्बर 1991 से केवल 51  विधवा महिलायों को राशन की राहत देने से शुरू हुआ यह सिलसिला आज भी जारी है. आज  यहाँ से राहत पाने वाली महिलायों की संख्या 51 से बढ़ कर 900 के आंकड़े को भी पार कर चुकी है.बहुत से नाम अभी प्रतीक्षा सूची में हैं.सन 2000 में यहाँ लडकियों को कम्प्यूटर सिखाने, सिलाई-कढाई सिखाने और ब्यूटी पार्लर चलाने जैसे काम भी सिखाये जा रहे हैं तांकि वे आत्म निर्भर हो सकें. 
अपने इस मिशन के लिए कई बार उन्हें इम्तिहान की घड़ियाँ  भी देखनी पड़ी. सन 2006 की 26  अप्रैल को उनकी धर्म पत्नी शांति देवी का हार्ट अटैक के कारण देहांत हो गया. रस्म क्रिया की तारीख भी आठ मई की निकली और विधवा महिलायों को राशन वितरित करने की तारीख भी पहले से ही आठ मई घोषित थी.दुःख और संकट की इस घड़ी में भी जगदीश बजाज ने कर्तव्य को नहीं भुलाया. क्रिया आठ की जगह छह मई को ही करली गई पर राहत के इस कार्यक्रम में कोई तबदीली नहीं की गयी. फिर सन 2010 में 30 दिसम्बर के दिन उनकी एक बहू का देहांत हो गया. उस समय भी रस्म क्रिया  ८ जनवरी को आती थी लेकिन इस रस्म को भी दो दिन पूर्व अर्थात 6 जनवरी को ही पोर कर लिया गया ता कि आठ जनवरी को होने वाले र्स्शन वितरण कार्यक्रम में कोई भी तबदीली न हो.  मैंने कहा आप कैसे इंसान हैं...अपने परिवारिक सदस्य को अंतिम विदा कहने के लिए एक आध कार्यक्रम भी इध उधर नहीं कर सकते....मेरी बात सुन कर उन्होंने एक लम्बा सांस लिया और बोले मैं नहीं चाहता था कि जो इंसान इस दुनिय से चला गया उसका दिन मनाते समय कोई बद दुया दे या फिर यह कहे कि इस मौत ने तो हमारा काम चौपट कर दिया.
दुनियादारी  का इतना लिहाज़  और दुखी लोगों से इतनी गहरी सम्वेदना रखने वाले जगदीश बजाज का जन्म हुआ था १० अक्टूबर १९३५ को कामरेड राम किशन के पडोस में पड़ते एक मकान में. यह मकान कोट ईसे शाह में था. झंग का यह इलाका अब पाकिस्तान में है. सं 1947 में जब हालात बिगड़े तो इस परिवार को भी पाकिस्तान छोड़ना पड़ा. कभी अमृतसर, कभी जालंधर और कभी कहीं. गर्दिश के दिन थे. आखिर 1950 में लुधियाना में आ गये. तब से लेकर यहीं पर कर्म योग की साधना  में लगे हुए हैं. सरकारी नौकरी से अपना काम और फिर अपने काम से जन सेवा का यज्ञ. आज इस यज्ञ में योगदान देने वालों की संख्या भी बहुत बड़ी है और इससे राहत लेने वालों की संख्या भी. ज्ञान स्थल मन्दिर अब मानव सेवा संस्थान के तौर पर स्थापित हो चूका है. यहाँ सभी धर्मों के लोग बिना किसी भेद भाव के आते हैं.  अगर आप भी यहाँ आना चाहें तो आपका स्वागत है. आप कभी यहाँ आ सकते हैं.  --रेक्टर कथूरिया