बुधवार, अक्टूबर 13, 2021

महात्मा गांधी नरेगा योजना के लिए CRISP-M उपकरण लॉन्च

प्रविष्टि तिथि: 13 OCT 2021 6:10PM by PIB Delhi

जलवायु लचीलापन सूचना प्रणाली और योजना में मिलेगी सहायता 

*श्री गिरिराज सिंह ने कहा कि पहले से ही मनरेगा का उपयोग विभिन्न परियोजनाओं में जलवायु लचीलापन प्रदान करने के लिए एक प्रणाली के रूप में किया जा रहा है

*सीआरआईएसपी-एम के क्रियान्वयन से ग्रामीण समुदायों के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने की नई संभावनाएं खुल जाएंगी

*क्लाइमेट रेजिलिएंट प्रोग्राम के लिए पायलट प्रोजेक्ट 7 जिलों - बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, एमपी, यूपी और झारखंड में शुरू हुआ

नई दिल्ली: 13 अक्टूबर 2021: (पीआईबी//इर्दगिर्द डेस्क)::

केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री श्री गिरिराज सिंह ने आज एक वर्चुअल कार्यक्रम के माध्यम से ब्रिटेन के विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय में दक्षिण एशिया व राष्ट्रमंडल राज्य मंत्री लॉर्ड तारिक अहमद के साथ संयुक्त रूप से महात्मा गांधी नरेगा के तहत भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) आधारित वाटरशेड योजना में जलवायु सूचना के एकीकरण के लिए जलवायु लचीलापन सूचना प्रणाली और योजना (सीआरआईएसपी-एम) उपकरण का लोकार्पण किया।


इस लोकार्पण समारोह में श्री गिरिराज सिंह ने कहा कि सीआरआईएसपी-एम टूल महात्मा गांधी नरेगा की जीआईएस आधारित योजना और कार्यान्वयन में जलवायु जानकारी को जोड़ने में सहायता करेगा। उन्होंने आगे ब्रिटिश सरकार और उन सभी हितधारकों के प्रयासों की सराहना की, जिन्होंने उपकरण विकसित करने में ग्रामीण विकास मंत्रालय की सहायता की थी। साथ ही, उन्होंने उम्मीद व्यक्त की कि सीआरआईएसपी-एम के कार्यान्वयन के माध्यम से हमारे ग्रामीण समुदायों के लिए जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने के लिए नई संभावनाएं खुल जाएंगी। इस उपकरण का उपयोग उन सात राज्यों में किया जाएगा, जहां विदेशी राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय (एफसीडीओ), ब्रिटिश सरकार और भारत सरकार का ग्रामीण विकास मंत्रालय संयुक्त रूप से जलवायु लचीलापन की दिशा में काम कर रहे हैं। इन राज्यों में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान हैं।

सीआरआईएसपी-एम उपकरण के संयुक्त लोकार्पण के दौरान ब्रिटेन के विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय में दक्षिण एशिया व राष्ट्रमंडल राज्य मंत्री लॉर्ड तारिक अहमद ने महात्मा गांधी नरेगा कार्यक्रम के माध्यम से जलवायु पहल को आगे बढ़ाने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की सराहना की। अपने संबोधन में लॉर्ड तारिक ने कहा, “पूरे भारत में इस योजना के लागू होने से इसका सकारात्मक और जीवन बदलने वाला प्रभाव पड़ रहा है। यह गरीब और कमजोर लोगों को जलवायु परिवर्तन से निपटने और उन्हें मौसम संबंधी आपदाओं से बचाने में सहायता कर रही है। आज हम जिस प्रभावशाली नए उपकरण- सीआरआईएसपी-एम का उत्सव मना रहे हैं, इस महान कार्य का नवीनतम उदाहरण है।”


भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय में सचिव श्री एन एन सिन्हा ने कहा कि पूरे भारत में महात्मा गांधी नरेगा के कई प्रभाव अध्ययनों में जमीनी स्तर की योजना, कार्यान्वयन और उपयोग का असर भूजल पुनर्भरण, वन कवरेज और भूमि उत्पादकता की बढ़ोतरी के रूप में दिखाई देता है।

इस अवसर पर एक पैनल चर्चा भी हुई, जिसमें पोर्टल और इसकी प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा की गई। इस पैनल में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसायटी (आईएफआरसी) के रिस्क इन्फॉर्म्ड अर्ली एक्शन पार्टनरशिप के लिए सचिवालय के प्रमुख श्री बेन वेबस्टर, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एन्वॉयरमेंट एंड डेवलपमेंट (आईआईईडी) में क्लाइमेट चेंज रिसर्च ग्रूप की निदेशिक श्रीमती क्लेयर शाक्य, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य श्री कमल किशोर, विदेशी राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय (एफसीडीओ)- भारत में अवसंरचना और शहरी विकास के प्रमुख श्री शांतनु मित्रा और मध्य प्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद (एमपीसीएसटी) के जीआईएसएंडआईपी विभाग के प्रमुख और वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आलोक चौधरी शामिल थे।     

संयुक्त सचिव (आरई) श्री रोहित कुमार ने अपनी समापन टिप्पणी में कहा कि  ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भारत की कुल 2.69 लाख ग्राम पंचायतों में से 1.82 लाख ग्राम पंचायतों के लिए पहले ही जीआईएस आधारित योजनाएं तैयार कर ली हैं, जो रिज टू वैली परिकल्पना (इसमें पानी के बहाव को ध्यान में रखकर उसे संरक्षित करने की तैयारी की जाती है) पर आधारित रिमोट सेंसिंग तकनीक की सहायता से लगभग 68 फीसदी है। अब, इस सीआरआईएसपी-एम उपकरण के लोकार्पण के साथ, जीआईएस आधारित वाटरशेड योजना में जलवायु सूचना का एकीकरण संभव होगा और इससे महात्मा गांधी नरेगा के तहत जलवायु लचकदार कार्यों की योजना को और अधिक मजबूत किया जाएगा।

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एमजी/एएम/एचकेपी/डीए

मंगलवार, सितंबर 21, 2021

दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना हुई लोकप्रिय

 Saturday: 19th September 2021 at 02:50 pm

   इस योजना ने युवाओं के लिए खोले रोजगार के नए नए द्वार 

प्रतीकत्मक तस्वीर Pexels Photo By Kelly Lacy 

शिमला: 19 सितम्बर, 2021: (इर्द गिर्द ब्यूरो)::

शिक्षा, प्रशिक्षण, कौशल और रोज़गार की मज़बूत कड़ी ही ज़िंदगी को पूरी तरह से सफल और क्षमतापूर्ण बनाती है। इस बात का ध्यान रख कर बनाई गई है दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना जो सफल भी हुई है और लोकप्रिय भी हो रही है। 

प्रदेश के युवाओं को दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना के अन्तर्गत हुनरमंद बनाने के साथ-साथ काम और रोज़गार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। इस योजना में प्रदेश की युवाशक्ति का समुचित दोहन कर उन्हें प्रशिक्षण भी प्रदान किया जा रहा है जिससे उनके कौशल का विकास होता है। 

उल्लेखनीय है कि ज़िंदगी से जुडी इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण गरीब युवाओं को कौशल प्रदान कर उन्हें न्यूनतम मजदूरी या उससे अधिक नियमित मासिक वेतन पर रोजगार प्रदान करना है। इस से युवा वर्ग को अपने पैरों पर खड़ा होने में बहुत ही सहायता मिलेगी। उनकी शक्ति में बढ़ोतरी होगी। 

आपको बता दें कि दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (डीडीयू-जीकेवाई) के अन्तर्गत वर्ष 2023 तक 22000 युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस योजना के अन्तर्गत अभी तक 5320 युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है, जिनमें से 3021 युवाओं को विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार प्रदान किया गया हैं। इस योजना के अन्तर्गत प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके लाभार्थी प्रदेश सहित पड़ोसी राज्यों में कार्यरत है। हाॅस्पिटैलिटी ट्रेड के अन्तर्गत कार्यरत युवाओं को भोजन के साथ छात्रावास की सुविधा प्रदान की जा रही है।

इसमें फोकस किया गया है गरीब वर्ग को। गरीब ग्रामीण युवाओं के लिए आयु सीमा 15-35 वर्ष तथा दिव्यांग, महिलाओं तथा अन्य कमजोर वर्गों के लिए आयु सीमा 45 वर्ष निर्धारित की गई है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवार, मनरेगा के तहत वित्त वर्ष में कम से कम 15 दिन का कार्य करने वाले श्रमिक के परिवार सदस्य, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना कार्ड धारक परिवार, अन्त्योदय अन्न योजना/बीपीएल/पीडीएस कार्ड परिवार तथा स्वयं सहायता समूह के सदस्य इस योजना के पात्र होंगे।

इस योजना के तहत 70 प्रतिशत प्रशिक्षित लाभार्थियों को विभिन्न क्षेत्रों में निश्चित रोजगार का आश्वासन प्रदान किया जाता है। योजना के तहत प्रशिक्षुओं को निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ-साथ निःशुल्क छात्रावास की सुविधा प्रदान की जाती है। इस योजना के अन्तर्गत कोर्स की अवधि 3 से 12 महीने की होती है। योजना के लाभार्थियों को एक वर्ष का पोस्ट प्लेसमेंट प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है।

 वर्तमान में इस योजना के तहत परिधान (अपैरल), हाॅस्पिटैलिटी, ग्रीन जाॅब्स, ब्यूटिशियन, सिलाई मशीन आॅपरेटर, बेकिंग, स्टोरेज आॅपरेटर, स्पा, अनआम्र्ड सिक्योरिटी गार्ड, इलेक्ट्रीशियन डोमेस्टिक, सेल्स एसोसिएट, अकाॅउंटिंग, बैंकिंग सेल्स रिप्रेजेन्टेटिव, कंप्यूटर हार्डवेयर असिस्टेंट, टेली एक्सेक्यूटिव-लाइफ साइंसेज आदि टेªड्स डीडीयू-जीकेवाई के अन्तर्गत संचालित किए जा रहे हैं।

इन ट्रेडस के अन्तर्गत युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान कर उनके कौशल में विकास किया जाता है। वर्तमान समय में डिजिटल स्किल, सोशल मीडिया, इलैक्ट्राॅनिक, विजुअलाइजेशन, टेलिविजन और मोबाइल रिपेयर जैसे क्षेत्रों में रोजगार, स्वरोजगार और रोजगार सृजन के अपार अवसर उत्पन्न हुए हैं। इन ट्रेडस के माध्यम से अर्धकुशल युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें आत्मनिर्भरता की राह पर अग्रसर किया जाता है।

आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना के अन्तर्गत प्रशिक्षण प्राप्त कर कई युवाओं ने भविष्य के लिए सजाए सुनहरे सपनों को साकार किया है। जिला कांगड़ा के गांव कछियारी के अक्षय कुमार के लिए यह योजना वरदान सिद्ध हुई है। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं थी। उनके पिता दिहाड़ीदार मजदूर है और पूरे परिवार का बोझ उन्हीं के कंधों पर था। घर में आर्थिक तंगी होने के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी लेकिन अक्षय कुमार आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन कर अपने परिवार का सहारा बनना चाहते थे। यह योजना उनके लिए आशा की किरण बनकर आई। जब उन्हें योजना के बारे में पता चला तो इसका लाभ उठाने के लिए उन्होंने बैंकिंग एण्ड अकाउंटिंग पाठ्यक्रम के अन्तर्गत प्रशिक्षण लेना शुरू किया।

इसके अतिरिक्त उन्होंने आई.टी. और स्पोकन इंग्लिश की मुफ्त कक्षाएं भी ली, जिससे उनके संचार कौशल में काफी सुधार हुआ है। योजना के अन्तर्गत उन्हें अध्ययन सामग्री के साथ-साथ यात्रा भत्ता भी मिला और प्रशिक्षण के दौरान उन्हें संबंधित क्षेत्र से काफी नई चीजें सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। वर्तमान में वह पी.डब्ल्यू.डी. गेस्ट हाउस चंडीगढ़ में बतौर सहायक लेखाकार के रूप में कार्यरत है। उन्हें 12 हजार रुपये मासिक वेतन मिल रहा है। उनका कहना है कि यह योजना उनके सपने को साकार करने में सहायक सिद्ध हुई है और आज वह आर्थिक रूप से सक्षम होने के साथ-साथ अपने परिवार का सहारा भी बन रहे हैं।

विवरण बताता है कि ऐसा ही कुछ सुखद अनुभव ज़िला शिमला की तहसील रामपुर के गांव काशापाट के कमलेश को भी हुआ, जब उन्होंने डीडीयू-जीकेवाई के अन्तर्गत प्रशिक्षण प्राप्त किया। कृषक परिवार से संबंध रखने वाले कमलेश की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं थी। इस कारण उन्हें 12वीं के पश्चात अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। परिवार की आर्थिक सहायता करने के लिए उन्होंने शिक्षित होने के बावजूद मजदूरी करना शुरू कर दिया था, जिसमें उन्हें प्रतिमाह केवल तीन हजार रुपये मिलते थे। इतनी कम आय में उनके लिए गुजारा करना बहुत मुश्किल हो गया था, लेकिन जब उन्हें इस योजना के बारे में पता चला, तो उन्होंने हाऊसकिपिंग मैनुअल अटेंडेंट कोर्स में दाखिला लिया। तीन माह के इस कोर्स में उन्हें हाऊसकिपिंग से संबंधित सभी प्रकार का प्रशिक्षण प्रदान किया गया। प्रशिक्षण प्राप्त होने के पश्चात वह एक निजी होटल में हाऊसकिपिंग मैनुअल अटेंडेंट के रूप में चयनित हुए। वर्तमान में उन्हें अच्छा वेतन मिल रहा है। इसके साथ उन्हें समय-समय पर इंसेंटिव भी मिल रहे हैं। उनका कहना है कि सभी बेरोजगार युवाओं को इस योजना का लाभ उठाकर आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ना चाहिए।

ऐसे में कमलेश और अक्षय कुमार जैसे कई युवा इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि सरकार द्वारा क्रियान्वित की जा रही दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना युवाओं को रोजगार और स्वरोजगार के अवसर प्रदान कर रही है।

जारीकर्ताः निदेशालय, सूचना एवं जन सम्पर्क

हिमाचल प्रदेश, शिमला-171002

सोमवार, सितंबर 20, 2021

ओल्ड गोवा में नवीनीकृत हेलीपैड का उद्घाटन

 प्रविष्टि तिथि: 20 SEP 2021 5:17PM by PIB Delhi

उद्घाटन किया मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी और गोवा के मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत ने 

उद्घाटन कार्यक्रम में केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री श्री श्रीपद नाइक और गोवा के उप मुख्यमंत्री श्री मनोहर अजगांवकर, विधायक और गोवा व भारत सरकार के कई वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहे


नई दिल्ली
: 20 सितंबर 2021: (पीआईबी//इर्द गिर्द)::

इस अवसर पर अपने संबोधन में केंद्रीय मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी ने कहा कि गोवा को न सिर्फ एक राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। केंद्रीय मंत्री ने इजरायल की सेना के साथ अपने अनुभवों का उल्लेख किया, कि कैसे अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण के बाद इजरायली सेना के जवानों ने गोवा के प्राकृतिक सौंदर्य और किफायती होने के कारण इसे अपने पसंदीदा स्थल के रूप में चुना। केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि पर्यटन क्षेत्र रोजगार सृजित करने वाला एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और केन्द्र सरकार गोवा में पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए हर संभव समर्थन दे रही है, जिससे ज्यादा संख्या में रोजगार सृजित किए जा सकें। केंद्रीय मंत्री ने यह पुष्टि भी की कि गोवा की आजादी के 60वें साल में, पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय गोवा को पर्याप्त वित्तपोषण करेंगे और गोवा को अंतरराष्ट्रीय मानचित्र में शीर्ष पर्यटन स्थल बनाएंगे। केंद्रीय मंत्री ने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का संदेश भी दिया कि केन्द्र सरकार हमेशा ही गोवा के नागरिकों के साथ है। गोवा के मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत ने कहा कि 5 करोड़ रुपये के व्यय के साथ हेलीपैड का नवीनीकरण किया गया है और सरकारी व निजी क्षेत्र के लिए इसका अच्छा उपयोग किया जाएगा। इसका मुख्य जोर राज्य में पर्यटन को बढ़ाना है।

हेलीपैड को स्वदेश दर्शन कोस्टल सर्किट थीम के तहत विकसित किया गया है। स्वदेश दर्शन स्कीम थीम-बेस्ड टूरिस्ट सर्किट्स के एकीकृत विकास के लिए पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा शुरू की गई केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। इस योजना में पर्यटन क्षेत्र को रोजगार सृजन के लिए एक प्रमुख इंजन के रूप में स्थापित करने, आर्थिक विकास के लिए मुख्य बल बनाने, पर्यटन क्षेत्र को अपनी क्षमताओं का अहसास कराने में सक्षम बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के साथ तालमेल बनाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया आदि जैसी भारत सरकार की अन्य योजनाओं के साथ सामंजस्य कायम करने की कल्पना की गई है।

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रविवार, अगस्त 01, 2021

क्या मिशनरियां साम्राज्यवादी अवशेष हैं?

 1st August 2021 at 8:55 AM

मिशनरियों के विरूद्ध आरोपों पर श्री राम पुनियानी का विशेष लेख 

Courtesy Photo 

आरएसएस चिंतक और राज्यसभा सदस्य राकेश सिन्हा ने 'दैनिक जागरण' को
दिए एक साक्षात्कार (जुलाई 2021) में कहा कि अब समय आ गया है कि हम 'ईसाई मिशनरी भारत छोड़ो' अभियान शुरू करें। उनके अनुसार, ईसाई मिशनरियां आदिवासी संस्कृति को नष्ट कर रही हैं और भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का दुरूपयोग करते हुए आदिवासियों का धर्मपरिवर्तन करवा रही हैं। 

इसके पहले (22 मई 2018) उन्होंने एक ट्वीट कर कहा था कि क्या हमें मिशनरियों की जरूरत है? वे हमारे "आध्यात्मिक प्रजातंत्र के लिए खतरा हैं।  नियोगी आयोग की रपट (1956) ने उनकी पोल खोल दी थी परंतु नेहरूवादियों ने उन्हें साम्राज्यवाद के एक आवश्यक अवशेष के रूप में संरक्षण दिया. या तो भारत छोड़ो या भारतीय चर्च गठित करो और यह घोषणा करो कि धर्मपरिवर्तन नहीं करवाओगे।‘‘

मिशनरियों के विरूद्ध जो आरोप लगाए जाते हैं वे न केवल आधारहीन हैं बल्कि ईसाई धर्म के बारे में मूलभूत जानकारी के अभाव को भी प्रतिबिंबित करते हैं. सिन्हा के दावे के विपरीत, मिशनरियां साम्राज्यवाद का अवशेष नहीं हैं. भारत में ईसाई धर्म का इतिहास बहुत पुराना है. भारत में पहली ईसाई मिशनरी 52 ईस्वी में आई थी जब सेंट थॉमस मलाबार तट पर उतरे थे और उन्होंने उस क्षेत्र, जो अब केरल है, में चर्च की स्थापना की थी। विभिन्न भारतीय शासकों ने मिशनरियों के आध्यात्मिक पक्ष को देखते हुए उनका स्वागत किया और अपने-अपने राज्य क्षेत्रों में उन्हें उपासना स्थल स्थापित करने की इजाजत दी। महाराष्ट्र के लोकप्रिय शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी सेना को यह निर्देश दिया था कि यह सुनिश्चित किया जाए कि हमले में फॉदर अम्बरोज के आश्रम को क्षति न पहुंचे। इसी तरह अकबर ने अपने दरबार में ईसाई प्रतिनिधियों का सम्मानपूर्वक स्वागत किया था। 

महात्मा गांधी, हिन्दू धर्म, इस्लाम और अन्य धर्मों की तरह ईसाई धर्म को भी भारतीय धर्म मानते थे. उन्होंने लिखा था "हर देश यह मानता है कि उसका धर्म किसी भी अन्य धर्म जितना ही अच्छा है। निश्चय ही भारत के महान धर्म उसके लोगों के लिए पर्याप्त हैं और उन्हें एक धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपनाने की जरूरत नहीं है।" इसके बाद वे भारतीय धर्मों की सूची देते हैं। "ईसाई धर्म, यहूदी धर्म, हिन्दू धर्म और उसकी विभिन्न शाखाएं, इस्लाम और पारसी धर्म भारत के जीवित धर्म हैं (गांधी कलेक्टिड वर्क्स खंड 47, पृष्ठ 27-28). वैसे भी सभी धर्म वैश्विक होते हैं और उन्हें राष्ट्रों की सीमा में नहीं बांधा जा सकता।

लेखक डा. राम पुनियानी 
सिन्हा के अनुसार, मिशनरियां आध्यात्मिक प्रजातंत्र के लिए खतरा हैं। आईए हम देखें कि आध्यात्मिक प्रजातंत्र से क्या आशय है. मेरे विचार से आध्यात्मिक प्रजातंत्र का अर्थ है कि भारतीय संविधान की निगाह में सभी धर्म बराबर हैं और सार्वभौमिक नैतिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। कई लेखकों का यह मानना है कि दरअसल भारत के आध्यात्मिक प्रजातंत्र को सबसे बड़ा खतरा जाति और वर्ण व्यवस्था से है। जो लोग भारत में जाति और वर्ण व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं वे भारत के आध्यात्मिक प्रजातंत्र के सबसे बड़े शत्रु हैं। यह बात सिन्हा को अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और अरूण जेटली से सीखनी चाहिए थी। ये दोनों ईसाई मिशनरी स्कूलों में पढ़े हैं। सिन्हा अगर कोशिश करेंगे तो उन्हें अपनी विचारधारा के ऐसे बहुत से दूसरे नेता भी मिल जाएंगे जिन्होंने मिशनरी स्कूलों में अध्ययन किया होगा। 

भारत में ईसाई मिशनरियां क्या करती हैं? यह सही है कि 1960 के दशक के पहले तक भारत में दूसरे देशों, विशेषकर पश्चिमी देशों, से मिशनरी आया करते थे। परंतु अब भारत के अधिकांश चर्च हर अर्थ में भारतीय हैं। वे भारतीय संविधान की हदों के भीतर काम करते हैं। वे मुख्यतः आदिवासी क्षेत्रों और निर्धन दलितों की बस्तियों में शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े काम करते हैं। इसके अलावा वे शहरों में स्कूल भी चलाते हैं जिनमें आडवाणी, जेटली और उनके जैसे अन्य महानुभाव पढ़ चुके हैं।

मिशनरियां आदिवासियों की संस्कृति को भला कैसे नष्ट कर रही हैं? मूलभूत आवश्यकताओं की कमी से जूझ रहे इन लोगों को स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध करवाना उनकी संस्कृति को नष्ट करना कैसे है? वैसे भी संस्कृति कोई स्थिर चीज नहीं होती। वह एक सामाजिक अवधारणा है जो संबंधित समाज के लोगों के अन्य लोगों के संपर्क में आने से परिवर्तित होती रहती है। इस सिलसिले में संयुक्त राष्ट्र संघ की बेहतरीन रपट 'सभ्यताओं का गठजोड़' का अध्ययन करना चाहिए जिसमें मानवता के इतिहास का अत्यंत सारगर्भित वर्णन करते हुए कहा गया है कि दुनिया का इतिहास दरअसल संस्कृतियों, धर्मों, खानपान की आदतों, भाषाओं और ज्ञान के गठजोड़ का इतिहास है और इसी गठजोड़ के चलते मानव सभ्यता की उन्नति हुई है। 

सच तो यह है कि अगर आदिवासियों के आचरण में कोई परिवर्तन कर रहा है तो वे हैं विहिप और वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन। पिछले चार दशकों में आदिवासी क्षेत्रों में शबरी कुंभ का आयोजन कर और हनुमान की मूर्तियां लगाकर इन संगठनों ने आदिवासियों के आराध्यों को बदलने का प्रयास किया है। आदिवासी मूलतः प्रकृति पूजक हैं। उन्हें मूर्ति पूजक बनाना क्या उनकी संस्कृति को परिवर्तित करने का प्रयास नहीं है?

जहां तक धर्मपरिवर्तन का प्रश्न है, सन् 1956 में प्रस्तुत की गई नियोगी आयोग की रपट में निःसंदेह यह कहा गया था कि मिशनरियां धर्मपरिवर्तन करवा रही हैं। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि कुछ मिशनरियां धर्मपरिवर्तन करवा रही होंगीं। वैसे भी हमारा संविधान सभी धर्मों के लोगों को अपने धर्म का आचरण करने और उसका प्रचार करने का अबाध अधिकार देता है। सिक्के का दूसरा पहलू भी है। पॉस्टर स्टेन्स और उनके दो नाबालिग बच्चों की हत्या उन्हें जिंदा जलाकर कर दी गई थी। इसके आरोप में बजरंग दल का राजेन्द्र सिंह पाल उर्फ दारासिंह जेल की सजा काट रहा है।  उस समय यह प्रचार किया गया था कि पॉस्टर स्टेन्स आदिवासियों को ईसाई बना रहे हैं जो कि हिन्दू धर्म के लिए खतरा है। 

एनडीए सरकार द्वारा नियुक्त वाधवा आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि पॉस्टर स्टेन्स द्वारा धर्मपरिवर्तन नहीं करवाया जा रहा था और उड़ीसा के जिस इलाके (क्यांझार-मनोहरपुर) में वे काम कर रहे थे वहां ईसाईयों की आबादी में कोई वृद्धि नहीं हुई थी। धर्मपरिवर्तन के आरोप के संदर्भ में जनगणना संबंधी आंकड़े दिलचस्प जानकारी देते हैं। भारत में ईसाई धर्म 52 ईस्वी में आया था। सन् 2011 में ईसाई, भारत की कुल आबादी का 2.30 प्रतिशत थे। सन् 1971 में भारत की आबादी में ईसाईयों का प्रतिशत 2.60 था। सन 1981 में यह आंकड़ा 2.44, 1991 में 2.34 और 2001 में 2.30 था। इस प्रकार भारत में ईसाईयों की जनसंख्या या तो स्थिर है या उसमें गिरावट आई है। ईसाई धर्म में परिवर्तन से हिन्दू धर्म को खतरा होने की बात बकवास है। परंतु यह डर जानबूझकर फैलाया जा रहा है। आरएसएस ने हाल (जुलाई 2021) में चित्रकूट में आयोजित अपनी एक बैठक में 'चादर मुक्त, फॉदर मुक्त' भारत की बात कही। 

भारत में जबरदस्ती या लोभ-लालच से धर्मपरिवर्तन रोकने के लिए पर्याप्त कानून हैं। 'ईसाई मिशनरियों भारत छोड़ो'‘ और 'चादर और फॉदर मुक्त भारत' जैसे नारे देश पर हिन्दू राष्ट्रवादी एजेंडे को थोपने का प्रयास हैं। अगर मिशनरियां आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवा रही हैं तो इससे आदिवासी संस्कृति को खतरा होने की बात कहना बचकाना है। और अगर कुछ मिशनरियां धर्मपरिवर्तन के काम में लगी हैं तो भी यह उनका अधिकार है। हां, अगर वे जोर-जबरदस्ती या लालच देकर किसी को ईसाई बना रही हैं तो उनके खिलाफ उपयुक्त कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए। परंतु उन्हें भारत छोड़ने का आदेश देना अनौचित्यपूर्ण और असंवैधानिक है। 

एक बात और. सिन्हा यह मानकर चल रहे हैं कि आदिवासी हिन्दू धर्म का हिस्सा हैं. तथ्य यह है कि हिन्दू एक बहुदेववादी धर्म है जिसके अपने धर्मग्रंथ और तीर्थस्थल हैं। इसके विपरीत, आदिवासी प्रकृति पूजक हैं, उनके कोई धर्मग्रंथ नहीं हैं और ना ही मंदिर और तीर्थस्थान हैं।        (28 जुलाई 2021)

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) (लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन्  2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

शनिवार, मई 01, 2021

कोरोना महामारी: मुसलमानों पर निशाना//राम पुनियानी

1st May 2021 at 9:11 AM

'नमस्ते ट्रंप' और कनिका कपूर की यात्रा को कोरोना से नहीं जोड़ा

28 अप्रैल, 2021

इस समय भारत कोरोना महामारी के सबसे विकट दौर से गुजर रहा है। संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है और मौतें भी।  हर चीज की कमी है-अस्पतालों में बिस्तरों की, दवाईयों की, आक्सीजन की, जांच सुविधाओं की और वैक्सीनों की।  इस रोग से ग्रस्त लोगों और उनके परिवारों के लिए यह एक बहुत बड़ी आपदा है। देश देख रहा है कि योजनाएं बनाने में दूरदृष्टि के अभाव और संसाधनों के कुप्रबंधन के कितने त्रासद परिणाम हो सकते हैं। ज्योंही सरकार की निंदा शुरू होती है, सारा दोष 'व्यवस्था' पर लाद दिया जाता है। दोष श्री मोदी का नहीं है, समस्याओं के लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं-सारा दोष 'व्यवस्था' का है। 

हमारे शासकों में वैज्ञानिक सोच और समझ की भारी कमी है। यही कारण है कि हमारे शीर्ष नेता ने यह दावा किया था कि हम 21 दिन में महामारी पर विजय प्राप्त कर लेंगे। कुछ नेताओं ने श्रद्धालुओं से अपील की  वे बड़ी संख्या में कुंभ में आकर पुण्य लूटें। कुछ अन्य ने मास्क जेब में रखकर बड़ी-बड़ी चुनावी सभाओं को संबोधित किया। इन सभाओं में श्रोताओं के बीच दो गज तो क्या दो इंच की दूरी भी नहीं रहती थी। कम से कम दो उच्च न्यायालयों ने देश में कोविड के फैलाव के लिए चुनाव आयोग को दोषी ठहराया है। 

इसके साथ ही हमारे सामने कोरोना योद्धाओं की कड़ी मेहनत और समर्पण के उदाहरण भी हैं। इस संकटकाल में हिन्दू और मुसलमान जिस तरह एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं उससे हमारे देश के मूलभूत मूल्य सामने आए हैं। 

जिन मुसलमानों को इस रोग को फैलाने का जिम्मेदार ठहराया गया था वे ही अब आगे बढ़कर परेशान हाल लोगों की मदद कर रहे हैं और उनके दर्द में साझेदार बन रहे हैं। हमारे शासक चाहे अपनी पीठ कितनी ही क्यों न थपथपा लें इतिहास में उनकी भूलें दर्ज हो चुकी हैं। हमारे देश की बुरी हालत को पूरी दुनिया अवाक होकर देख रही है। 

हमारे देश में आक्सीजन तक नहीं है। हां, हम अरबों रूपये गगनचुंबी मूर्तियों, सेन्ट्रल विस्टा, बुलैट ट्रेन और राम मंदिर पर खर्च कर रहे हैं। हमारे देश के शासकों को केरल से सबक लेना चाहिए जिसने व्यर्थ की परियोजनाओं में पैसा फूंकने की बजाए आक्सीजन संयत्रों में निवेश किया और नतीजे में आज न केवल राज्य में आक्सीजन की कोई कमी नहीं है वरन् वह पड़ोसी राज्यों को भी यह जीवनदायिनी गैस उपलब्ध करा रहा है। 

मार्च 2020 में मरकज निजामुद्दीन में आयोजित तबलीगी जमात की अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस के बहाने मुसलमानों का जमकर दानवीकरण किया गया था। भारत की साम्प्रदायिक ताकतों को मुसलमानों के खिलाफ नफरत पैदा करने के लिए मौके की तलाश रहती है। उन्हें सैकड़ों साल पहले के मुस्लिम बादशाहों के कर्मों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकी गिरोहों से उनके संबंध जोड़े जाते हैं। उन्हें ढ़ेर सारे बच्चे पैदा कर देश की आबादी को बढ़ाने का दोषी ठहराया जाता है। उन्हें लव जिहाद और गौमांस खाने के लिए कठघरे में खड़ा किया जाता है। जाहिर है कि इस माहौल में तबलीगी जमात का आयोजन, साम्प्रदायिक संगठनों और पूर्वाग्रह ग्रस्त मीडिया के लिए एक सुनहरा मौका था। 

इस रोग के फैलने के अन्य सभी कारणों को नजरअंदाज करते हुए उसके लिए सिर्फ तबलीगी जमात के आयोजन को दोषी ठहराया गया। ऐसा बताया गया कि मरकज का आयोजन ही इसलिए किया गया था ताकि भारत में कोरोना फैलाया जा सके। 'नमस्ते ट्रंप' और कनिका कपूर की यात्रा को कोरोना से नहीं जोड़ा गया। यह हमारा दुर्भाग्य है कि मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सरकार का भोंपू बन गया है।

कुछ 'प्रतिभाशाली' पत्रकारों ने कोरोना जिहाद और कोरोना बम जैसे शब्द ईजाद किए। जल्दी ही कई अन्य प्रकार के जिहाद भी सामने आए. ऐसा लगने लगा मानो इस देश के मुसलमानों के पास जिहाद करने के अलावा और कोई काम है ही नहीं। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ सोसायटी एंड सेक्युलरिज्म ने मुसलमानों को बलि का बकरा बनाए जाने पर एक रिपोर्ट जारी की। इसका शीर्षक था 'द कोविड पेन्डेमिक: ए रिपोर्ट आन द स्केप गोटिंग ऑफ़ मुस्लिम्स इन इंडिया'  

इस रपट में उन विभिन्न प्रकार के जिहादों की चर्चा की गई है जिनके नाम पर मुसलमानों को कठघरे में खड़ा किया जाता है। इनमें शामिल हैं 1. आर्थिक जिहाद, अर्थात व्यापार और व्यवसाय के जरिए धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ाना, 2. इतिहास जिहाद, अर्थात इतिहास को इस प्रकार तोड़ना-मरोड़ना जिससे इस्लाम का महिमामंडन हो, 3. फिल्म और गीत जिहाद, अर्थात फिल्मों के जरिए मुगलों और माफिया का महिमामंडन करना व फिल्मी गीतों के जरिए इस्लामिक संस्कृति को बढ़ावा देना, 4. धर्मनिरपेक्षता जिहाद, अर्थात वामपंथियों, साम्यवादियों और उदारवादियों को मुसलमानों के पाले में लाना, 5. आबादी जिहाद, अर्थात चार महिलाओं से शादी करना और अनगिनत बच्चे पैदा करना, 6. भूमि जिहाद, अर्थात जमीन पर कब्जा कर बड़ी-बड़ी मस्जिदें, मदरसे और कब्रिस्तान बनाना, 7. शिक्षा जिहाद, अर्थात मदरसे स्थापित करना और अरबी भाषा को प्रोत्साहन देना, 8. बेचारगी जिहाद, अर्थात अपने आप को बेचारा बताकर आरक्षण और अन्य सुविधाएं मांगना एवं 9. प्रत्यक्ष जिहाद, अर्थात गैर-मुसलमानों पर हथियारबंद हमले। 

रपट में फेक न्यूज के अनेक उदाहरण दिए गए हैं। इनमें शामिल हैं ये खबरें कि मुसलमान जगह-जगह थूककर और खाने के बर्तन चाटकर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि कोरोना का वायरस ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे।  मीडिया के दोहरे मानदंड मुसलमानों और हिन्दू/सिक्खों के लिए प्रयुक्त अलग-अलग भाषा से ही जाहिर हैं।  उदाहरण के लिए जी न्यूज की एक खबर का शीर्षक था, 'आठ मस्जिदों में 113 लोग छिपे हुए हैं'  हिन्दुस्तान टाईम्स की एक खबर का शीर्षक था 'कोविड-19: दिल्ली में छुपे 600 विदेशी तबलीगी जमात कार्यकर्ता पकड़े गए।'  इसके विपरीत, दो सौ सिक्ख दिल्ली के मजनूं का टीला गुरूद्वारे में 'फंसे' हुए थे। इसी तरह अचानक लॉकडाउन लगा दिए जाने से 400 तीर्थयात्री वैष्णोदेवी में फंस‘ गए थे। अर्थात, जहां हिन्दू और सिक्ख 'फंसे' थे वहीं मुसलमान 'छिपे' थे भाजपा के आईटी सेल के अमित मालवीय ने 'कट्टरपंथी तबलीगी जमात' की मरकज में गैरकानूनी बैठक की बात कही। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी भी तबलीगी जमात को कोविड के फैलाव के लिए जिम्मेदार बताते हैं। 

अल्पसंख्यकों के बारे में ये झूठी बातें मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए इतनी बार दुहराई जाती हैं कि लोगों को वो सच लगने लगती हैं। 

हमें कोरोना से मुक्त होना है। साथ ही हमें धार्मिक पूर्वाग्रह के वायरस से भी मुक्त होना होगा। सोशल मीडिया और मीडिया में अल्पसंख्यकों के विरूद्ध दुष्प्रचार को हमें रोकना ही होगा। कोरोना के मामले में जिस तरह के झूठ बोले गए और जिस तरह एक समुदाय को दोषी ठहराया गया। उससे हमारी आंखे खुल जानी चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि कुंभ, चुनाव रैलियां और हमारी सरकारों का निकम्मापन कोरोना संकट के लिए जिम्मेदार हैं। 

(अग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) (लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

शनिवार, मार्च 20, 2021

भारत-उज्बेकिस्तान प्रशिक्षण युद्धाभ्यास 'डस्टलिक' का समापन

 19th March 2021 at 16:50 IST

 रानीखेत (उत्तराखंड) में चला प्रशिक्षण युद्धाभ्यास 


युद्धाभ्यास क्षेत्र से
: 19 मार्च 2021: (पीआईबी//इर्दगिर्द)::

शांति की रक्षा के लिए युद्ध की भी तैयारी रखनी पड़ती है। केवल तैयार ही नहीं रहना पड़ता बल्कि इस क्षेत्र में हर तरह की नई तकनीक भी अपनानी पड़ती है। इस मकसद के लिए युद्धभ्यास भी किये जाते हैं। इसी तरह का युद्धभ्यास रानीखेत उत्तराखंड में हुआ। यह भारत और उज़्बेकिस्तान के साथ ही था। इसका मुख्य मकसद था प्रशिक्षण। 

1. परस्पर 10 दिन चले आपसी अभ्यास के बाद भारत-उज्बेकिस्तान संयुक्त क्षेत्र प्रशिक्षण युद्धाभ्यास डस्टलिक के दूसरे संस्करण काशुक्रवार, 19 मार्च 2021 को समापन हुआ ।

2. 10 मार्च, 2021 को शुरू हुए संयुक्त अभ्यास में ज़ोर शहरीपरिदृश्य में उग्रवाद/आतंकवाद विरोधी अभियानों पर होने के साथ-साथ हथियारोंके कौशल पर विशेषज्ञता साझा करने पर केंद्रित था । इस अभ्यास ने दोनोंसेनाओं के सैनिकों को स्थायी पेशेवर और सामाजिक संबंधों को बढ़ावा देने काअवसर भी प्रदान किया ।

3. गहन सैन्य प्रशिक्षण के बाद दोनों सेनाओं के संयुक्तअभ्यास का समापन हुआ, दोनों देशों की सेना इस अभ्यास के दौरान आतंकवादीसमूहों पर अपनी युद्ध शक्ति और प्रभुत्व का प्रदर्शन कर रही थी । समापनसमारोह में दोनों देशों के अनूठे पारंपरिक संपर्क के साथ अपार प्रतिभा काप्रदर्शन किया गया । वरिष्ठ अधिकारियों ने अभ्यास के व्यावसायिक संचालन केप्रति संतोष और आभार व्यक्त किया ।

4. अभ्यास के दौरान पैदा हुई मिलनसारिता, दल भावना एवंसद्भावना से भविष्य में दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच संबंधों कोमजबूत करने में और बढ़ावा मिलेगा ।

एमजी /एएम/ एबी

शनिवार, फ़रवरी 06, 2021

रबीन्द्रनाथ टैगोर: मानवतावाद और राष्ट्रवाद//राम पुनियानी

 Feb 6, 2021, 2:15 PM

BJP ऐसा जताना चाहती है मानो गुरूदेव कट्टर हिन्दू राष्ट्रवादी थे

यह तस्वीरअंग्रेजी दैनिक नेशनल हेरल्ड से साभार 

भोपाल
:03 फरवरी, 2021: (राम पुनियानी//इर्दगिर्द)::

तस्वीर हिंदी जीवन परिचय से साभार 
पश्चिम बंगाल में चुनाव नजदीक हैं. भाजपा ने बंगाल के नायकों को अपना बताने की कवायद शुरू कर दी है. जहां तक भाजपा की विचारधारा का प्रश्न है, बंगाल के केवल एक नेता, श्यामाप्रसाद मुकर्जी, इस पार्टी के अपने हैं। वे भाजपा के पूर्व अवतार जनसंघ के संस्थापक थे। बंगाल के जिन अन्य नेताओं ने भारत के राष्ट्रीय मूल्यों को गढ़ा और हमारी सोच को प्रभावित किया, उनमें स्वामी विवेकानंद, रबीन्द्रनाथ टैगोर और सुभाषचन्द्र बोस शामिल हैं। स्वामी विवेकानंद जातिप्रथा के कड़े विरोधी थे और हमारे देश से गरीबी का उन्मूलन करने के मजबूत पक्षधर थे। वे दरिद्र को ही नारायण (ईश्वर) मानते थे। उनके लिए निर्धनों की सेवा, ईश्वर की आराधना के समतुल्य थी।

नेताजी प्रतिबद्ध समाजवादी थे और हिन्दू राष्ट्रवाद उनको कतई रास नहीं आता था। इसके बावजूद भाजपा उन्हें अपना सिद्ध करने में लगी है। गुरूदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर महान मानवतावादी थे और भयमुक्त समाज के निर्माण के पक्षधर थे। इसके बाद भी भाजपा जैसी साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद की पैरोकार पार्टी उन्हें अपनी विचारधारा का समर्थक बताने पर तुली हुई है। पार्टी ऐसा जताना चाहती है मानो गुरूदेव कट्टर हिन्दू राष्ट्रवादी थे।

नरेन्द्र मोदी ने कहा कि टैगोर स्वराज के हामी थे। आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत का दावा है कि टैगोर ने हिन्दुत्व की परिकल्पना का विकास किया था। यह विडंबना ही है कि जिस राजनैतिक संगठन ने स्वाधीनता संग्राम में हिस्सेदारी ही नहीं की और ना ही भारत के एक राष्ट्र के रूप में विकास की प्रक्रिया में कोई योगदान दिया, वह स्वराज की बात कर रही है। टैगोर प्रतिबद्ध मानवतावादी थे। उनकी सोच मे सम्प्रदायवाद के लिए कोई जगह नहीं थी। मानवता उनके विचारों का केन्द्रीय तत्व थी। उन्होंने लिखा है कि भारत के मूल निवासियों ने पहले आर्यों और उसके बाद मुसलमानों के साथ मिलजुलकर रहना सीखा। इसके विपरीत, हिन्दू राष्ट्रवादी दावा करते आए हैं कि आर्य इस देश के मूलनिवासी थे। और वह इसलिए ताकि इस देश को एक धर्म विशेष की भूमि बताया जा सके। वे मुसलमानों को विदेशी और आक्रांता बताते हैं।

अपने उपन्यास 'गोरा' में गुरूदेव ने परोक्ष रूप से कट्टर हिन्दू धर्म की कड़ी आलोचना की है. उपन्यास के केन्द्रीय चरित्र गोरा का हिन्दू धर्म, आज के हिन्दुत्व से काफी मिलता-जुलता है. उपन्यास के अंत में उसे पता चलता है कि वह युद्ध में मारे गए एक अंग्रेज दंपत्ति का पुत्र है और उसका लालन-पालन एक हिन्दू स्त्री आनंदमोई ने किया है।  वह अवाक रह जाता है।

लेखक डा. राम पुनियानि 
आज हमारे देश की राजनीति में जो कुछ हम देख रहे हैं वह टैगोर की प्रसिद्ध और दिल को छू लेने वाली कविता "जहां मन है निर्भय और मस्तक है ऊँचा, जहां ज्ञान है मुक्त" से बिल्कुल ही मेल नहीं खाता. इस सरकार के पिछले छःह सालों के राज में सच बोलने वाला भयातुर रहने को मजबूर है. जो लोग आदिवासियों के अधिकारों की बात करते हैं उन्हें शहरी नक्सल कहा जाता है। जो लोग किसी धर्म विशेष के अनुयायियों पर अत्याचारों का विरोध करते हैं उन्हें टुकड़े-टुकड़े गैंग बताया जाता है। अपनी इस कविता में टैगोर 'विवेक की निर्मल सरिता' की बात करते हैं।  कहां है वह सरिता? आज की सरकार ने तो अपने सभी आलोचकों को राष्ट्रद्रोही बताने का व्रत ले लिया है। 

हमारे वर्तमान शासक आक्रामक राष्ट्रवाद के हामी हैं. वे 'घर में घुसकर मारने' की बात करते हैं। इसके विपरीत, टैगोर युद्ध की निरर्थकता के बारे में आश्वस्त थे। ऐसे राष्ट्रवाद में उनकी कोई श्रद्धा नहीं थी जो कमजोर देशों को शक्तिशाली देशों का उपनिवेश बनाता है और जिससे प्रेरित हो शक्तिशाली राष्ट्र अपनी सैन्य शक्ति का प्रयोग अपने देश की सीमाओं का विस्तार करने के लिए करते हैं। जिस समय पूरी दुनिया प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ने की आशंका से भयभीत थी उस समय टैगोर की 'गीतांजलि' ने ब्रिटिश कवियों पर गहरा प्रभाव डाला था। विलफ्रेड ओन व कई अन्य ब्रिटिश कवि, 'गीतांजलि' मे निहित आध्यात्मिक मानवतावाद से बहुत प्रभावित थे। टैगोर का आध्यात्मिक मानवतावाद, राष्ट्र की बजाए समाज की भलाई और स्वतंत्रता की बात करता है।

मोदी और शाह टैगोर की शान में जो कसीदे काढ़ रहे हैं उसका एकमात्र लक्ष्य बंगाल में होने वाले चुनावों में वोट हासिल करना है। वैचारिक स्तर पर वे टैगोर के घोर विरोधी हैं। आरएसएस से संबद्ध शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, जिसके अध्यक्ष दीनानाथ बत्रा थे, ने यह सिफारिश की थी कि एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में से टैगोर से संबंधित सामग्री हटा दी जाए।

टैगोर द्वारा लिखित हमारे राष्ट्रगान 'जन गण मन' को भी संघ पसंद नहीं करता। उसकी पसंद बंकिमचन्द्र चटर्जी लिखित 'वंदे मातरम' है। संघ के नेता समय-समय पर यह कहते रहे हैं कि टैगोर ने 'जन गण मन' ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम की शान में उस समय लिखा था जब वे भारत की यात्रा पर आए थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह ने यह आरोप लगाया था कि जन गण मन में 'अधिनायक' शब्द का प्रयोग जार्ज पंचम के लिए किया गया था। यह इस तथ्य के बावजूद कि टैगोर ने अपने जीवनकाल में ही यह स्पष्ट कर दिया था कि अधिनायक शब्द से उनका आशय उस शक्ति से है जो सदियों से भारत भूमि की नियति को आकार देती रही है। नोबेल पुरस्कार विजेता महान कवि के स्पष्ट खंडन के बाद भी संघ और उसके संगी-साथी यह कहने से बाज नहीं आते कि टैगोर ने ब्रिटिश सम्राट की चाटुकारिता करने के लिए यह गीत लिखा था। और इसलिए वे जन गण मन की बात नहीं करते।  'इस देश में रहना है तो वंदे मातरम कहना होगा' उनका नारा है।

हमारा राष्ट्रगान देश की विविधता और समावेशिता का अति सुंदर वर्णन करता है। परंतु हमारे वर्तमान शासकों के विचारधारात्मक पितामहों को विविधता और बहुवाद पसंद नहीं हैं। वे तो देश को एकसार बनाना चाहते हैं। संघ परिवार यह भी कहता रहा है कि नेहरू ने मुसलमानों को खुश करने के लिए जन गण मन को राष्ट्रगान के रूप में चुना। जिस समिति ने इस गीत को राष्ट्रगान का दर्जा देने का निर्णय लिया था वह इसमें वर्णित देश के बहुवादी चरित्र से प्रभावित थी। यह गीत भारतीय इतिहास की टैगोर और अन्य नेताओं की इस समझ से भी मेल खाता है कि भारत के निर्माण में देश के मूल निवासियों, आर्यों और मुसलमानों-तीनों का योगदान रहा है।

भाजपा और उसके साथी वंदे मातरम को प्राथमिकता इसलिए देना चाहते हैं क्योंकि वह हमारे मन में एक हिन्दू देवी की छवि उकेरता है। मुसलमानों का कहना है कि वे अल्लाह के अलावा किसी के सामने अपना सिर नहीं झुका सकते। इस बात को भी ध्यान रखते हुए जन गण मन को राष्ट्रगान के रूप में चुना गया और वंदेमातरम् के पहले अंतरे को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया।

गुरूदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर साधु प्रवृत्ति के व्यक्ति थे जिनका आध्यात्म, मानवतावाद से जुड़ा हुआ था ना कि किसी संकीर्ण साम्प्रदायिक सोच से। उनका राष्ट्रवाद ब्रिटिश अधिनायकवाद का विरोधी था और स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय के मूल्यों में आस्था रखता था। 

(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) 

(लेखक IIT मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

(प्रेषक:एल. एस. हरदेनिया)