छतीसगढ़ के बस्तर संभाग की सच्ची कहानी
जब आप बस्तर के महाराजा प्रवीणचंद्र भंजदेव की कहानी पढ़ेंगे तब आप को खुद लगेगा कि हे प्रभु यह कैसा अनर्थ कर दिया अपने! जब हम लोग छोटे थे तो अक्सर यह कहा करते थे एक था राजा और एक थी रानी दोनो मर गए ख़त्म हो गई कहानी ,,,,, लेकिन यह कहानी ख़त्म नही होनी चाहिए लोगोको जानना चाहिए इस राजा की कहानी जिसका बदला आज भी इनके वफ़ादार जनता ले रही हैं! जिसको आप लोग नक्सली हिंसा कहते हैं छतीसगढ़ के बस्तर संभाग की सच्ची कहानी ।महाराजा प्रवीण ने अपने पूरे आदिवासी एरिया में कभी किसी मिशनरी को आने नहीं दिया था यह आदिवासियों के सबसे बड़े हितेषी थे
जब महाराजा प्रवीण चंद्र भंजदेव का विवाह हुआ था तब पूरे भारत से करीब चार लाख से ज्यादा आदिवासी उनके विवाह में शामिल हुए थे
महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी तथा प्रफुल्ल चंद्र भंजदेव की दूसरी संतान “प्रवीरचंद्र भंजदेव” जो बस्तर रियासत काल के आखरी शासक हुए, इनका जन्म 25 जून 1929 को हुआ।
इनकी माता महारानी प्रफुल्ल कुमारी जो कि बस्तर की महिला शासिका थी, उनकी असमय और रहस्यमय निधन के पश्चात लंदन में ही ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधियों द्वारा 6 वर्षीय प्रवीरचंद्र भंजदेव का औपचारिक राजतिलक कर दिया गया। बारह साल बाद जब प्रवीर 18 साल के हो गए तब उन्हें पूर्ण रूप से राज्याधिकार दे दिए गये। इसी साल सरदार वल्लभ भाई पटेल ने छत्तीसगढ़ के सभी चौदह रियासतों से बातचीत कर भारतीय संघ में विलयन के लिए दस्तखत करवा लिए। 15 अगस्त को भारत स्वतन्त्र हुआ और 1 जनवरी 1948 को बस्तर रियासत आधिकारिक रूप से भारतीय संघ के अंतर्गत मध्य प्रान्त का हिस्सा हो गया। राजशाही सत्ता के समर्पण के बाद जेहन में जो दर्द था वो दोगुना हो गया जब 13 जून 1953 को उनकी सम्पत्ति कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अंतर्गत ले ली गयी।
वाटसप के प्रतीक ग्रुप से साभार |
जनता का आशीर्वाद मिलता रहा और कांग्रेस के जिला अध्यक्ष बनने के साथ-साथ प्रवीर चंद्र 1957 के आम चुनाव में भारी मतों से जीतकर विधानसभा पहुँचे। अभी प्रवीर चंद्र को विधानसभा सदस्य के तौर पर दो साल ही हुए थे कि उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया।
इस्तीफा देते ही मानो कांग्रेस सरकार प्रवीरचंद्र की जानी दुश्मन हो गई
11 और 12 फरवरी 1961 को पहले उन्हें राज्य विरोधी होने के नाम पर गिरफ्तार किया गया फिर प्रवीर की बस्तर के भूतपूर्व शासक होने की मान्यता भी समाप्त कर दी गयी इसके साथ ही प्रवीर के ही छोटे भाई विजयचन्द्र भंजदेव को भूतपूर्व शासक होने के अधिकार दे दिये गये।
प्रवीर के आंदोलनों के ऊपर हिंसक होने के साथ साथ लोकतंत्र के प्रति असहिष्णु होने के भी आरोप लगते रहे। इन सब अव्यवस्था और अशांति के बावजूद जनता प्रवीर के ही साथ थी। भूतपूर्व शासक होने की मान्यता समाप्त करने के विरोध में जब आदिवासियों द्वारा लौहंडीगुड़ा और सिरिसगुड़ा में प्रदर्शन किया तब शासन ने बड़े ही निर्मम तरीके से बीस हज़ार के भीड़ पर गोली बरसाई थी। लौहण्डीगुड़ा का यह गोली कांड अब भी अपने साथ दर्द से भरे अनगिनत कहानी समेटे हुए है।
जब संवैधानिक तरीके से प्रवीरचंद्र ने दिया जवाब
फरवरी 1962 को जब विधानसभा चुनावों का परिणाम आया तब कांकेर तथा बीजापुर को छोड कर पूरे बस्तर में महाराजा प्रवीर चंद्र को समर्थित पार्टी के प्रत्याशी विजयी रहे। 30 जुलाई 1963 को प्रवीर की सम्पत्ति कोर्ट ऑफ वार्ड्स से मुक्त कर दी गयी। सन् 1963 से लेकर 1966 तक प्रवीर चंद्र ने बस्तर की जनता के लिए खूब आवाज़ उठाए, कई आंदोलन कई अनशन किया गया। अब जनता आश्वस्त थी कि उनको सुनने वाला कोई है।
जब राजमहल पर गोलिया चलाई गई
25 मार्च 1966 की सुबह जब सैकड़ो लोग अलग अलग गांव से जैसे कोंटा, उसूर, सुकमा, छिंदगढ, कटे कल्याण, बीजापुर, भोपालपटनम, कुँआकोंडा, भैरमगढ, गीदम, दंतेवाडा, बास्तानार, दरभा, बकावण्ड, तोकापाल लौहण्डीगुडा, बस्तर, जगदलपुर, कोण्डागाँव, माकडी, फरसगाँव, नारायनपुर से महाराजा के महल पहुँचे थे। इतनी बड़ी संख्या का एक कारण सालों की रही एक परंपरा भी थी। अनेकों गाँवों के माझी ‘आखेट की स्वीकृति’ अपने राजा से लेने आये थे और चैत्र के नवरात्र में आदिवासी कुछ बीज राजा को देते है फिर वही बीज वो खेत मे बुआई के दौरान उपयोग करते है। चैत्र और वैशाख के दिनों में में एक मान्यता ऐसी भी है जिसमे आदिवासी शिकार से पहले राजा से आज्ञा लेने आते हैं इसीलिए उस दिन वहां मौजूद शिकारियों ने अपने साथ धनुष – बाण भी रखा था। जिनमे से ज्यादातर धनुष – बाण तो चिड़िया मारने के लिए काम आने वाले थे।
भीड़ को देखते ही आनन फानन में पुलिस द्वारा राजमहल परिसर को घेर लिया गया और आत्मसमर्पण के लिए कहा गया। लोग कुछ समझ पाते उससे पहले आँसू गैस छोड़ी गई और थोड़ी देर में पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। तभी भगदड़ शुरू हो गयी और सभी लोग महल के अंदर चले गए। पुलिस ने फायरिंग नहीं रोकी तब आदिवासियों ने भी आत्म रक्षा के लिए धनुष-बाण थाम लिए। दोपहर होते होते सब शांत होने लगा था फिर भी इक्का दुक्का फायरिंग अभी भी जारी थी। बीच बीच मे धमाकों की भी आवाज़ सुनाई दे रही थी। लाउडस्पीकर में लगातार आत्मसमर्पण के लिए कहा जा रहा था। कहा गया कि निहत्थे लोगों पर गोली नहीं चलाई जाएगी। महाराजा प्रवीर के कहने पर करीब डेढ़ सौ महिलाएं बच्चों के साथ आत्मसर्पण के लिए महल से बाहर जाने के लिए तैयार हुए। उनके महल से बाहर आते ही उनको घेर लिया गया और उनपर लाठियां बरसाई जाने लगी। अब महल के अंदर जितने लोग थे उनका आत्मसर्पण से विश्वास उठ गया था।
अभी भी माहौल शान्त नहीं हुआ था तभी एक गाड़ी महल की तरफ आती दिखी और एक बार फिर से प्रवीर और महल के अंदर आश्रितों को आत्मसर्पण के लिए कहा गया। प्रवीर महल के अंदर से निकल कर अब बरामदे में आ गए थे। तभी अचानक से फायरिंग शुरू हो गयी और एक गोली सीधे आकर प्रवीर को लगी। गोली प्रवीर चंद्र के जांघ में आ धसी थी। अब पुलिस महल के अंदर घुस चुकी थी और अब फायरिंग महल के अंदर भी सुनाई देने लगी थी।
आदिवासियों ने बड़े संघर्ष के साथ पुलिस को अपने महाराजा के शयनकक्ष में जाने से रोक रखा था लेकिन धनुष – बाण बंन्दूक के सामने कब तक टिकती। पुलिस अब प्रवीर चंद्र के कक्ष के अंदर दाखिल हो गयी। बस्तर के महाराजा प्रवीर चंद्र मार डाले गए। अब महल के अंदर मौजूद आदिवासी उग्र हो चुके थे और महल रणभूमि में बदल चुकी थी।
रात से सुबह हो चुकी थी पर संघर्ष रुकने का नाम नहीं ले रही थी। गोलियों की आवाज़ सुबह चार बजे तक सुनाई दे रही थी।
26 मार्च को करीब ग्यारह बजे जिलाधीश और पुलिस के बड़े अधिकारी महल महल के अंदर गए। पार्थिव शरीर को कक्ष से निकाला गया और उसी शाम प्रवीर चंद्र का अंतिम संस्कार किया गया।
आज तक आप लोग एक तरफा कहानी सुनते थे जो अखबार में निकला या सरकार ने बताया परन्तु आज हमने उस सिक्के के दूसरे पहलू को दर्शाने का प्रयास किया है । इस दावे के साथ कि जो लिखा है सत्य लिखा है कैसे एक राजा को मारा गया और उसकी जनता को नक्सली बनाया गया । कौन असली दोसी हैं निर्णय आप खुद ले। वन्देमातरम
आपका अपना आदिवासियों का संघर्ष
मनोज श्रीवास्तव
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारतीय केसरिया वाहिनी
+91 9389577220
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें