रविवार, मई 03, 2020

इस बार कैसे दें मज़दूर दिवस की बधाई-पूछा है अनीता शर्मा ने

Sunday: 3rd May 2020 at 2:31 PM  
मज़दूर तो कोरोना महामारी के कारण घरों में भूखे बैठे है-अनीता शर्मा 
लुधियाना: 1 मई 2020: (कार्तिका सिंह//इर्द गिर्द डेस्क):: 
कामरेड कुलदीप बिन्द्र ने इस तस्वीर को सीपीआई के
वाटसप ग्रुप में मज़दूर दिवस के मौके पर पोस्ट किया
अनीता शर्मा फाईल फोटो 
मज़दूर की मेहनत और उसके बनते हक पर बहुत पहले जनाब फ़ैज़ अहमद फैज़ साहिब ने एक गीत लिखा था जो उसकी लूट की चर्चा भी करता था और उसके मज़बूत इरादों को भी दर्शाता था। गीत के शुरूआती बोल हैं:
हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे;
इक बाग़ नहीं, इक खेत नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे!
मज़दूरों ने अपने अपने झंडे तले इस गीत को बार बार गाया और दोहराया। हर वर्ष पहली मई को मज़दूर दिवस के मौके पर लगने वाली स्टेजों पर इस गीत का गायन बहुत ही जोशो खरोश से हुआ करता। सन 1983 में जब "मज़दूर" फिल्म आई तो इस गीत को उसमें भी शामिल किया गया। दलीप कुमार, राज बब्बर और अन्य कलाकारों पर इस गीत के बोलों को बहुत ही खूबसूरती से पिक्चराईज़ किया गया। गीत के बोलों और कलाकारों के इशारों का समन्वय बेहद अर्थपूर्ण रहा। उस फिल्म से यह गीत उन तक भी  पहुंचा जिन्होंने इसे पेहे न कभी सुना था न ही कभी पढ़ा था। इस तरह यह गीत समाजवाद की फिलासफी ले कर घर घर तक पहुंचा। लेकिन पूंजीवाद अपनी चाल चलता रहा। बड़ी बड़ी मशीनें बनी, मोटर कारें बनी, कम्प्यूटर बने और कामकाज बेहद आसान भी हो गया। इसके बावजूद मज़दूर को इसका फायदा न हुआ। फायदा सिर्फ मालिकों को ही पहुंचा। अमीर और ज़्यादा अमीर होता चला गया और गरीब और ज़्यादा गरीब होता गया।  मशीनीकरण के बावजूद मज़दूर के काम के घंटे आठ से कम न हुए। बहुत जगहों पर तो उससे आठ से भी कहीं ज़्यादा काम लिया जाता रहा। ट्रेड यूनियनों ने जो जो कुछ किया उसकी झलक भी कई बार फिल्मों में नज़र आती रही। एक सवाल बहुत लोकप्रिय हुआ कि गरीबों के लिए उनकी लड़ाई लड़ने वाले खुद कैसे अमीर हो जाते हैं और गरीब रास्ते की धुल बन कर कहां खो जाते हैं? रास्ते की धुल बन कर खो गए मज़दूर की बात की है बेलन ब्रिगेड की राष्ट्रिय प्रमुख अनीता शर्मा ने। 
उन्होंने याद दिलाया है इस बार 2020 का मज़दूर दिवस उस वक्त आया है जब सारी दुनिया में कोरोना का आतंक और शोर है। कारोबार बंद हैं। फ़ैक्ट्रियन बंद हैं। बहुत बड़ी संख्या में रेलें और बसें भी बंद हैं। मज़दूर कोरोना महामारी के कारण घरों में बैठे हैं। करीब 40 दिन हो गए हैं उन्हें घर बैठे हुए। उनके सामने यही रास्ता बचा कि या तो भूख से तेदेपा तेदेपा कर दम तोड़ दें और या फिर पैदल ही अपने अपने गांव की तरफ चल पड़ें। मज़दूरों ने पैदल चलने को पहल दी। सैंकड़ों किलोमीटर की दूरी पर स्थित अपने गांवों में उन्हें अपना भविष्य सुरक्षित नज़र आया। बरखा दत्त, आरिफा खानुम और बहुत ऐसे अन्य पत्रकारों ने उनके इंटरव्यू सड़कों पर खुद हज़ारों किलोमीटर की यात्रा करके लिए हैं। मुख्य धरा का मीडिया जिन हकीकतों को छुपा रहा था इन जांबाज़ पत्रकारों ने उन हकीकतों को जनता के सामने रखा। आने वाले वक़्त में इन छोटी छोटी वीडियो खबरों को बहुत बड़ी अहमियत मिलेगी। किसी डॉक्यूमेंट्री से कम नहीं हैं यह कवरेज। 
बेलन ब्रिगेड की राष्ट्रीय अध्यक्ष आर्किटेक्ट अनीता शर्मा ने बताया कि कोरोना वायरस के कारण हर गली- मोहल्ले और शहर में इस कड़वी हकीकत को देखा जा सकता है। देश भर के इलाकों में जो मज़दूर लोग  फैक्ट्रियों में बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन में दिन रात काम करके अपना और अपने परिवार का पेट पालते थे आज घरों में बैठने को मजबूर हो गए हैं। जो मज़दूरहर रोज़  400-500 रुपये की मज़दूरी  करता था आज लंगर की लाईन में लगने को मजबूर है। ऐसे मज़दूरों के हालात हमारे देश में बहुत दयनीय हो चुके हैं।  
मज़दूरों की हालत बताते हुए मैडम अनीता शर्मा ने कहा कि इन मज़दूरों के पास बीमार होने पर दूध दवाई के लिए पैसे तो क्या घर में खाने के लिए राशन तक नहीं है। बहुत सारे मज़दूरों के पास  नीले पीले राशन कार्ड  नहीं है। कोई बैंक अकाउंट भी नहीं है। लेबर डिपार्टमेंट में उनकी कोई रजिस्ट्रेशन भी नहीं है और सरकार की तरफ से गरीब लोगो के लिए जो राशन आ रहा है वह भी इन तक नहीं पहुंचता। उस राशन को सरकारी अफसर, इलाके के नेता पार्षद विधायक मजदूरों व गरीबो में बांटने की जगह अपने अपने चहेतो सपोर्टरो में ही बांट रहे हैं।  
अनीता शर्मा ने आगे कहा कि जो लोग कॉरपोरेट फैक्ट्रियों के मालिक हैं और जिन मज़दूरों की बदौलत आज वे आलिशान कोठियों में बैठे है उन मज़दूरों को कम से कम पेट भरने के लिए राशन तो उनके घरो तक पहुंचाने का बंदोवस्त करें ताकि कोरोना महामारी के बाद जब ये लोग काम पर लौटेगे तो आपकी इस मदद का दोगुना ज्यादा लाभ देंगे।  आज लेबर डे पर इंसानियत के नाते हर  नागरिक का फर्ज बनता है कि इस कोरोना महामारी के हालात में अपने आस पड़ोस में रहने वाले गरीब मजदूरों को दो वक्त की रोटी खिला कर उनकी मदद करे। मज़दूरों के बेहतर भविष्य के लिए एक विशेष स्थायी फंड भी कायम किया जाना चाहिए। 

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