आंवला कैंडी से ले कर सोलर कूकर तक सफलता की गौरवगाथा
लुधियाना: 24 मार्च 2018: (कार्तिका सिंह//इर्द गिर्द)::
हालात कुछ भी हो सकते हैं। अच्छे भी बुरे भी। हम सभी की ज़िंदगी हमें बहुत से कड़वे अनुभव भी करवाती है जो हमें हर बार कोई न कोई नई सीख दे कर जाते हैं। यह कडुवाहट उस कड़वी दवा की तरह होती है जो हमारी बीमारी को ठीक कर के एक नयी ज़िंदगी देती है। संघर्ष की इस बेचैनी के बाद जो स्कून मिलता है उसके आनंद की बराबरी जल्दी किये सम्भव ही नहीं होती।
गुरवंत सिंह ने भी ऐसे दिन देखे। राजनीतिक सोच वामपंथी रही। सीपीआई से जुड़े हुए भी हैं। इस सब के बावजूद विचारों में कभी कटड़ता नहीं आने दी। अन्ना हज़ारे के ग्रुप से संदेश आये तो उन को भी सहयोग दिया और अगर मेधा पाटेकर के साथियों ने कुछ कहा तो उनका भी साथ दिया। मकसद था बदलाव-किसी भी बहाने--किसी भी तरह।
बदलाव का यह प्रयास केवल सियासत के मामले में नहीं था। उन्होंने व्यक्तिगत ज़िंदगी में भी हर पल स्वस्थ बदलाव के लिए निरंतर साधना की। खुद फैक्ट्री का मालिक होते हुए भी ज़रूरत पड़ने पर मज़दूरों की तरह काम किया। खेती विरासत मिशन की तरफ झुकाव हुआ तो उनका भी सक्रिय हो कर साथ दिया।
समाज सेवा की तरफ लगातार बढ़ते रहे इस झुकाव ने काम-काज चौपट कर दिया। भाई की मौत ने उन्हें बहुत गहरा सदमा दिया। निराशा के इस गहन अँधेरे में एक बार फिर हिम्मत का हाथ पकड़ा। हिम्मत ने रास्ता दिखाया। इस मामले में एक बार फिर पत्नी से भी साथ मिला और बेटियों से भी। पीएयू की ट्रेनिंग ने नया उत्साह और नई ऊर्जा दी।
सोलर ऊर्जा की तरफ भी प्रयास किये जो कामयाब रहे। ज़िंदगी जो जो रंग दिखाती रही--गुरवंत सिंह उन्हें ध्यान से देखते भी रहे स्वीकार भी करते रहे। फिर धीरे धीरे उभरने लगा एक नया रंग। रात्रि के गहन अँधेरे के बाद उषा की लालिमा दस्तक देने लगी।
गुरवंत सिंह की ज़िंदगी में एक नई ज़िंदगी की सुबह आने लगी। धोखे-फरेब और की विश्वासघात की चोटों के बाद मिली संघर्ष से मिली सफलता की चमत्कारी मरहम। इस मरहम ने अपनों से मिली चोटों से लगे ज़ख्मों का दर्द दूर किया। एक नई राहत दी। नया हौंसला दिया। जिंदगी ने एक बार फिर सफलता की रफ्तार पकड़ ली। आज फिर गुरवंत सिंह सफलता की नई शिखरें छूने के लिए तैयार हैं। किसान मेले में उनसे और उनके परिवार से हुई भेंट यादगारी रही। उनके स्टाल पर आंवला कैंडी से ले कर आंवला शर्बत और सोलर कुकर तक बहुत कुछ था जो किसान मेले में आये लोगों को आकर्षित कर रहा था। गर्मी की धुप और किसान मेले के रास्तों से उड़ती धूल ने सारे परिवार के चेहरों का रंग कुछ सांवला कर दिया था लेकिन इस के बावजूद संघर्ष से मिली सफलता की चमक अपना रंग दिखा रही थी। जिम्मेदारियों का बोझ वरिष्ठता की गंभीरता भी दिखा रहा था। अपने पांवों की मजबूत होती स्वतन्त्रता की ख़ुशी भी सभी के चेहरों पर नजर आ रही थी। उनसे हुई बातचीत आप देख सकते इस पोस्ट के साथ दी गई वीडियो में। उन्हें देख कर याद आ रही हैं स्वर्गीय दुष्यंत कुमार जी की पंक्तियाँ:
कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
किसान मेले लगते रहें। खुदकुशियों के मौसम में भी ज़िंदगी के गीत गूंजते रहें। निराशा के गहरे अंधेरों में भी संघर्ष का सूर्य चमकता रहे। ऐसी बहुत सी उमीदें हैं जो गुरवंत सिंह जैसे परिवारों को देख कर पूरी होने का विश्वास होने लगता है। सपनों को साकार करने का यह काफिला बढ़ता रहे। इसी कामना के साथ।
-कार्तिका सिंह
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