चीन हस्तशिल्प के मामले में देता रहा भारत को कड़ी प्रतिस्पर्धा*राकेश कुमार
भारतीय हस्तशिल्प अब चीन और लैटिन अमरीका जैसे नये बाजारों में पहुंच गया है। इसे पहले भारतीय हस्तशिल्प यूरोपीय क्षेत्र और उत्तरी अमरीकी महादीप जैसे पारंपरिक बाजारों तक ही सीमित था और लैटिन अमरीकी देशों पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा था।
चीन हस्तशिल्प उत्पादक क्षेत्र के रूप में दुनियाभर में जाना जाता है और अपने स्वदेशी डिजाइन, उत्कृष्ट कच्चे माल के लिए मशहूर है। चीन उत्कृष्ट दस्तकारी के मामले में भी मशहूर है। चीन हस्तशिल्प के मामले में भारत को कड़ी प्रतिस्पर्धा देता रहा है और दुनिया में हस्तशिल्प के कारोबार में चीन का हिस्सा करीब 30 प्रतिशत है।
हालांकि यह सब जानते हैं कि सभी प्रकार के हस्तशिल्प की अत्यधिक मांग के कारण व्यापक रूप से हस्तशिल्प के उत्पादन में चीन में शानदार यंत्रिकरण हुआ है। चीन में ज्यादातर हस्तशिल्प मशीनों से बनाया जाता है और हाथ से शिल्पकारी सिर्फ अंतिम रूप देने के लिए ही की जाती है।
भारतीय हस्तशिल्प को दुनियाभर में स्वदेशी डिजाइन, पारंपरिक विरासत, संस्कृति और धार्मिक उदगम तथा डिजाइन की विविधता, उत्पादों और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों के कच्चे माल के आधार पर जाना जाता है। वनस्पति रंगों के इस्तेमाल से उत्कृष्ट डिजाइन हस्तशिल्प भारत की विशेषता रही है। उत्कृष्ट हस्तशिल्प के मामले में चीन से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद भारत विभिन्न बाजारों में उच्च स्तर के हस्तशिल्प की मांग पूरी कर रहा है।
एशिया के सबसे बड़े भारतीय हस्तशिल्प और उपहार मेले (आईएचजीएफ) के 33वें संस्करण का शुभारंभ हो रहा है। आईएचजीएफ-स्प्रिंग 2012 में भारत के 28 राज्यों के लगभग 2300 प्रदर्शक हिस्सा लेंगे जो लगभग 950 उत्पाद श्रृंखलाओं स्टाइल कच्चे माल और अवधारणाओं आदि को प्रदर्शित करेंगे। 30 से भी अधिक देशों से खरीदारों के इस मेले में शिरकत करने की संभावना है।
हालांकि इस मेले में प्रमुख तौर पर घर के सामान, साज-सज्जा की वस्तुएं और उपहार फैशन, आभूषण, बैग, बांस और पर्यावरण अनुकूल उत्पाद, मोमबत्तियों, फर्नीचर आदि को प्रदर्शित किया जाएगा लेकिन पुनर्चक्रित और पर्यावरण अनुकूल वस्तुओं पर अधिक ज़ोर रहेगा।
मेले का अन्य आकर्षण जम्मू-कश्मीर राज्य द्वारा प्रस्तुत प्रदर्शनी होगी। जम्मू-कश्मीर क्षेत्र अपने परंपरागत हस्तशिल्प और कच्चे माल के लिए जाना जाता है किंतु हाल के समय में नवीन डिजाइनों, नवीन उत्पाद श्रृंखलाओं और नवीन स्टाइलों का भी विकास हुआ है जो न केवल परंपरागत हैं बल्कि अंतर-राष्ट्रीय ज़रुरतों के मुताबिक आधुनिक और समसामयिक भी हैं।
पिछले कुछ दशकों में एक बड़ा दिलचस्प घटनाक्रम सामने आया है, पर वह भारत से चीन में होने वाले हस्तशिल्प के निर्यात में वृद्धि है।
वर्ष 2008-09 में भारत में चीन को 4 अरब 18 करोड़ 33 लाख रूपये का हस्तशिल्प निर्यात किया था। उसके बाद हस्तशिल्प निर्यात में स्थिर रूप से वृद्धि हुई और 2010-11 के दौरान 9 अरब 45 करोड़ 72 लाख रूपये के हस्तशिल्प का निर्यात हुआ। पिछले तीन वर्षों के दौरान ही हस्तशिलप निर्यात में 94.07 प्रतिशत वृद्धि हुई, जो न सिर्फ बहुत महत्वपूर्ण है, बल्कि इस बात का संकेत भी है कि भारतीय हस्तशिल्प चीन में स्थाई पहुंच बनाने में सफल रहा है।
वर्ष 2009-10 के दौरान भारत में चीन में जो हस्तशिल्प उत्पाद निर्यात किए, उनमें मेटलक्राफ्ट, वुड क्राफ्ट, हाथ से कढ़ाई किए गए वस्त्र और स्कार्फ, फैशन, आभूषण और एसेसरीज, शॉल के साथ-साथ कसीदाकारी और क्रोसिए से बनी वस्तुएं शामिल हैं। जरी और जरी के सामान तथा हाथ की कढ़ाई किए गए वस्त्र और स्कार्फ के निर्यात में 2009-10 की तुलना में 2010-11 के मामूली गिरावट आई, लेकिन मेटल क्राफ्ट उत्पादों में अभुतपूर्व 991 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। वुड क्राफ्ट के निर्यात में 116 प्रतिशत वृद्धि देखी गई। उन्होंने कहा कि जरी और जरी के सामान में गिरावट के कारणों का अध्ययन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हालांकि चीन में भारत के हस्तशिल्प के निर्यात में कुल मिलाकर हुई वृद्धि से यह स्पष्ट रूप से स्थापित होता है कि चीन अब भारतीय हस्तशिल्प उत्पादों का बड़ा खरीदार बनकर उभरा है।
भारत को नये बाजार और नये क्षेत्र विकसित करने चाहिए तथा लैटिन अमरीकी क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया है। सरकार ने इन क्षेत्रों में निर्यात गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए एमएआई कार्यक्रम के तहत विशेष योजना शुरू की है तथा ईपीसीएच ने इस योजना का पूरा फायदा उठाया है और लैटिन अमरीकी क्षेत्र के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भारतीय हस्तशिल्प का प्रचार-प्रसार और बढ़ावा देने के लिए आक्रामक कार्यक्रम शुरू किया है। कुछ वर्ष पहले शुरू हुए परिषद के प्रयासों के अच्छे परिणाम मिलने शुरू हो गए हैं।
लैटिन अमरीकी क्षेत्र के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अर्जेन्टीना, ब्राजील, चिल्ली, कोलम्बिया, मैक्सिको, पनामा, पेरू, उरूग्वे और वेनेजुएला है। ईपीसीएच का पहला प्रयास वेनेजुएला में कारकस में लोक शिल्प महोत्सव का आयोजन था, जो आम के दैनिक इस्तेमाल में आने वाले भारतीय हस्तशिल्प उत्पादों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए आयोजित किया गया। इस महोत्सव में बिजनेस प्रतिनिधियों और अन्य पड़ौसी देशों ने भी शिरकत की।
वर्ष 2010-11 के लिए निर्यात के विशलेषण से लैटिन अमरीकी क्षेत्र में हस्तशिल्प के कुल निर्यात में 31 प्रतिशत वृद्धि देखी गई। कोलम्बिया में 63.75, मैक्सिको में 54.20, अर्जेन्टीना में 50, वेनेजुएला में 43.50 और चिल्ली में 28 प्रतिशत वृद्धि देखी गई।
2008-09 में तीन अरब 56 करोड़ 52 लाख रूपये के हस्तशिल्प का निर्यात किया गया, जो 2009-10 में तीन अरब 70 करोड़ 15 लाख रूपये तक पहुंच गया। 2010-11 में चार अरब 84 करोड़ 48 लाख रूपये के हस्तशिल्प का निर्यात हुआ। [पीआईबी] 17-फरवरी-2012 19:17 IST
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* लेखक हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद के कार्यकारी निदेशक है।
भारतीय हस्तशिल्प अब चीन और लैटिन अमरीका जैसे नये बाजारों में पहुंच गया है। इसे पहले भारतीय हस्तशिल्प यूरोपीय क्षेत्र और उत्तरी अमरीकी महादीप जैसे पारंपरिक बाजारों तक ही सीमित था और लैटिन अमरीकी देशों पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा था।
चीन हस्तशिल्प उत्पादक क्षेत्र के रूप में दुनियाभर में जाना जाता है और अपने स्वदेशी डिजाइन, उत्कृष्ट कच्चे माल के लिए मशहूर है। चीन उत्कृष्ट दस्तकारी के मामले में भी मशहूर है। चीन हस्तशिल्प के मामले में भारत को कड़ी प्रतिस्पर्धा देता रहा है और दुनिया में हस्तशिल्प के कारोबार में चीन का हिस्सा करीब 30 प्रतिशत है।
हालांकि यह सब जानते हैं कि सभी प्रकार के हस्तशिल्प की अत्यधिक मांग के कारण व्यापक रूप से हस्तशिल्प के उत्पादन में चीन में शानदार यंत्रिकरण हुआ है। चीन में ज्यादातर हस्तशिल्प मशीनों से बनाया जाता है और हाथ से शिल्पकारी सिर्फ अंतिम रूप देने के लिए ही की जाती है।
भारतीय हस्तशिल्प को दुनियाभर में स्वदेशी डिजाइन, पारंपरिक विरासत, संस्कृति और धार्मिक उदगम तथा डिजाइन की विविधता, उत्पादों और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों के कच्चे माल के आधार पर जाना जाता है। वनस्पति रंगों के इस्तेमाल से उत्कृष्ट डिजाइन हस्तशिल्प भारत की विशेषता रही है। उत्कृष्ट हस्तशिल्प के मामले में चीन से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद भारत विभिन्न बाजारों में उच्च स्तर के हस्तशिल्प की मांग पूरी कर रहा है।
एशिया के सबसे बड़े भारतीय हस्तशिल्प और उपहार मेले (आईएचजीएफ) के 33वें संस्करण का शुभारंभ हो रहा है। आईएचजीएफ-स्प्रिंग 2012 में भारत के 28 राज्यों के लगभग 2300 प्रदर्शक हिस्सा लेंगे जो लगभग 950 उत्पाद श्रृंखलाओं स्टाइल कच्चे माल और अवधारणाओं आदि को प्रदर्शित करेंगे। 30 से भी अधिक देशों से खरीदारों के इस मेले में शिरकत करने की संभावना है।
हालांकि इस मेले में प्रमुख तौर पर घर के सामान, साज-सज्जा की वस्तुएं और उपहार फैशन, आभूषण, बैग, बांस और पर्यावरण अनुकूल उत्पाद, मोमबत्तियों, फर्नीचर आदि को प्रदर्शित किया जाएगा लेकिन पुनर्चक्रित और पर्यावरण अनुकूल वस्तुओं पर अधिक ज़ोर रहेगा।
मेले का अन्य आकर्षण जम्मू-कश्मीर राज्य द्वारा प्रस्तुत प्रदर्शनी होगी। जम्मू-कश्मीर क्षेत्र अपने परंपरागत हस्तशिल्प और कच्चे माल के लिए जाना जाता है किंतु हाल के समय में नवीन डिजाइनों, नवीन उत्पाद श्रृंखलाओं और नवीन स्टाइलों का भी विकास हुआ है जो न केवल परंपरागत हैं बल्कि अंतर-राष्ट्रीय ज़रुरतों के मुताबिक आधुनिक और समसामयिक भी हैं।
पिछले कुछ दशकों में एक बड़ा दिलचस्प घटनाक्रम सामने आया है, पर वह भारत से चीन में होने वाले हस्तशिल्प के निर्यात में वृद्धि है।
वर्ष 2008-09 में भारत में चीन को 4 अरब 18 करोड़ 33 लाख रूपये का हस्तशिल्प निर्यात किया था। उसके बाद हस्तशिल्प निर्यात में स्थिर रूप से वृद्धि हुई और 2010-11 के दौरान 9 अरब 45 करोड़ 72 लाख रूपये के हस्तशिल्प का निर्यात हुआ। पिछले तीन वर्षों के दौरान ही हस्तशिलप निर्यात में 94.07 प्रतिशत वृद्धि हुई, जो न सिर्फ बहुत महत्वपूर्ण है, बल्कि इस बात का संकेत भी है कि भारतीय हस्तशिल्प चीन में स्थाई पहुंच बनाने में सफल रहा है।
वर्ष 2009-10 के दौरान भारत में चीन में जो हस्तशिल्प उत्पाद निर्यात किए, उनमें मेटलक्राफ्ट, वुड क्राफ्ट, हाथ से कढ़ाई किए गए वस्त्र और स्कार्फ, फैशन, आभूषण और एसेसरीज, शॉल के साथ-साथ कसीदाकारी और क्रोसिए से बनी वस्तुएं शामिल हैं। जरी और जरी के सामान तथा हाथ की कढ़ाई किए गए वस्त्र और स्कार्फ के निर्यात में 2009-10 की तुलना में 2010-11 के मामूली गिरावट आई, लेकिन मेटल क्राफ्ट उत्पादों में अभुतपूर्व 991 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। वुड क्राफ्ट के निर्यात में 116 प्रतिशत वृद्धि देखी गई। उन्होंने कहा कि जरी और जरी के सामान में गिरावट के कारणों का अध्ययन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हालांकि चीन में भारत के हस्तशिल्प के निर्यात में कुल मिलाकर हुई वृद्धि से यह स्पष्ट रूप से स्थापित होता है कि चीन अब भारतीय हस्तशिल्प उत्पादों का बड़ा खरीदार बनकर उभरा है।
भारत को नये बाजार और नये क्षेत्र विकसित करने चाहिए तथा लैटिन अमरीकी क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया है। सरकार ने इन क्षेत्रों में निर्यात गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए एमएआई कार्यक्रम के तहत विशेष योजना शुरू की है तथा ईपीसीएच ने इस योजना का पूरा फायदा उठाया है और लैटिन अमरीकी क्षेत्र के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भारतीय हस्तशिल्प का प्रचार-प्रसार और बढ़ावा देने के लिए आक्रामक कार्यक्रम शुरू किया है। कुछ वर्ष पहले शुरू हुए परिषद के प्रयासों के अच्छे परिणाम मिलने शुरू हो गए हैं।
लैटिन अमरीकी क्षेत्र के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अर्जेन्टीना, ब्राजील, चिल्ली, कोलम्बिया, मैक्सिको, पनामा, पेरू, उरूग्वे और वेनेजुएला है। ईपीसीएच का पहला प्रयास वेनेजुएला में कारकस में लोक शिल्प महोत्सव का आयोजन था, जो आम के दैनिक इस्तेमाल में आने वाले भारतीय हस्तशिल्प उत्पादों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए आयोजित किया गया। इस महोत्सव में बिजनेस प्रतिनिधियों और अन्य पड़ौसी देशों ने भी शिरकत की।
वर्ष 2010-11 के लिए निर्यात के विशलेषण से लैटिन अमरीकी क्षेत्र में हस्तशिल्प के कुल निर्यात में 31 प्रतिशत वृद्धि देखी गई। कोलम्बिया में 63.75, मैक्सिको में 54.20, अर्जेन्टीना में 50, वेनेजुएला में 43.50 और चिल्ली में 28 प्रतिशत वृद्धि देखी गई।
2008-09 में तीन अरब 56 करोड़ 52 लाख रूपये के हस्तशिल्प का निर्यात किया गया, जो 2009-10 में तीन अरब 70 करोड़ 15 लाख रूपये तक पहुंच गया। 2010-11 में चार अरब 84 करोड़ 48 लाख रूपये के हस्तशिल्प का निर्यात हुआ। [पीआईबी] 17-फरवरी-2012 19:17 IST
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* लेखक हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद के कार्यकारी निदेशक है।
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