28-जून-2011 19:20 IST
अंतरराष्ट्रीय मादक द्रव्य दुरूपयोग दिवस
रोकथाम नीति से नशीले पदार्थों की मांग में कमी
नई दिल्ली: 28 जून 2020: (पीआईबी)::
पिछले कुछ वर्षों में मादक पदार्थों की लत चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि परम्परागत बंधन, प्रभावकारी सामाजिक रोक, आत्मसंयम के महत्व पर जोर और व्यापक नियंत्रण तथा संयुक्त परिवार और समुदाय का अनुशासन खत्म हो रहा है।
औद्योगीकरण, शहरीकरण और पलायन के कारण सामाजिक नियंत्रण के परम्परागत तरीके कमजोर पड़ रहे हैं जिससे आधुनिक जीवन शैली के दबाव में अकेला व्यक्ति आसानी से तनाव का शिकार हो रहा है। अन्य बातों के अलावा तेजी से बदलते सामाजिक माहौल के कारण मादक पदार्थों का प्रसार बढ़ रहा है।
सिंथेटिक मादक पदार्थों और इंजेक्शन के जरिये लिए जाने वाले मादक पदार्थों के इस्तेमाल के कारण एचआईवी/एडस जैसी बीमारियां हो रही हैं जिससे समस्या एक नया रूप ले रही है।
भारत का परिदृश्य
शराब को छोड़कर हमारी कुल आबादी के करीब 0.3 प्रतिशत लोग विभिन्न प्रकार के मादक पदार्थों के इस्तेमाल का शिकार है। ऐसी आबादी विभिन्न आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषायी पृष्ठभूमि से आती है। भारत में शराब, अफीम और भांग का दुरूपयोग किसी से छिपा नहीं है।
दवाओं के लिए जरूरी अफीम की विधिसम्मत मांग को पूरा करने के लिए भारत सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। इसके अलावा भारत दुनिया के पोस्त उगाने वाले प्रमुख इलाकों के नजदीक स्थित है। इनमें पश्चिमोत्तर पर ‘गोल्डन क्रेसेंट और पूर्वोत्तर में ‘गोल्डन ट्रायंगल है। इनकी वजह से भारत मादक पदार्थों के इस्तेमाल खासतौर से पोस्त उत्पादन के इलाकों और तस्करी के मार्गों पर असुरक्षित हो गया है।
कल्याणकारी प्रस्ताव
हाल के वर्षों में मादक पदार्थों के इस्तेमाल को मनोवैज्ञानिक-सामाजिक चिकित्सा समस्या के रूप में स्वीकार कर लिया गया है। समुदाय आधारित हस्तक्षेप के जरिये इस समस्या से सर्वश्रेष्ठ तरीके से निपटा जा सकता है। मांग में कमी मादक पदार्थों के नियंत्रण की रणनीति के स्तंभ के रूप में उभरी है।
उपर्युक्त प्रस्ताव को ध्यान में रखते हुए, मांग कम करने के लिए सरकार के पास त्रिस्तरीय रणनीति है:
* मादक पदार्थों से होने वाले नुकसान के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना और उन्हें शिक्षित करना
* जिन लोगों को इसकी लत पड़ गई है उनकी प्रेरणादायक काउंसलिंग कराना, इलाज और ठीक हो चुके लोगों की जांच करना और उनका सामाजिक पुर्नएकीकरण।
* मादक पदार्थों की रोकथाम/पुनर्वास के बारे में स्वयंसेवियों को प्रशिक्षण देना, ताकि सेवा प्रदाताओं का एक शिक्षित कैडर तैयार किया जा सके।
इस पूरी रणनीति का उददेश्य मादक पदार्थों की समस्या से लड़ने के लिए समाज और समुदाय को शक्तिशाली बनाना है।
मादक पदार्थों की लत के शिकार लोगों का इलाज और पुनर्वास
देश में मादक पदार्थों की मांग में कमी के कार्यक्रम का केन्द्र बिन्दु, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने वर्ष 1985-86 से मादक पदार्थों की रोकथाम के लिए योजना को लागू कर रखा है। चूंकि मादक पदार्थों की लत छुड़ाने और उनके पुनर्वास के लिए ऐसे स्थायी और प्रतिबद्ध प्रयासों की जरूरत है जिनमें लचीलापन और नवीनता हो। इस समस्या के उपचार के लिए सरकार-समुदाय (स्वयंसेवी) की सहभागिता एक मजबूत व्यवस्था दिखाई पड़ती है। इसी के अनुसार इस योजना में, उपचार में अधिकतर खर्च सरकार उठाती है, स्वयंसेवी संगठन काउंसलिंग और जागरूकता केन्द्रों:- लत छुड़ाने वाले और पुनर्वास केन्द्र, लत छुड़ाने वाले शिविर और जागरूकता कार्यक्रमों के जरिये सेवा प्रदान करते हैं।
इस योजना के अंतर्गत मंत्रालय देशभर में मादक पदार्थों की लत छुड़ाने वाले 376 पुनर्वास केन्द्रों के रखरखाव के लिए 361 स्वयंसेवी संगठनों और 68 काउंसलिंग और जागरूकता केन्द्रों को सहायता दे रहा है। सभी केन्द्रों में चिकित्सक, काउंसलर(परामर्शदाता), समुदाय कर्मचारी, सामाजिक कार्यकर्ता जैसे विशेषज्ञ मौजूद हैं। अलग-अलग लोगों की जरूरत के हिसाब से इनका इस्तेमाल किया जाता है।
जिन लोगों में मादक पदार्थों की बहुत बुरी लत है और जिन्हें लम्बे इलाज की जरूरत है, उनके इलाज के लिए, 100 लत छुड़ाने वाले केन्द्र सरकारी अस्पतालों/प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में चलाए जा रहे हैं।
जागरूकता और इलाज संबंधी शिक्षा
काउंसलिंग और जागरूकता केन्द्र ग्राम पंचायतों और स्कूलों में जागरूकता पैदा करने वाले विभिन्न कार्यक्रमों से जुड़े हुए हैं। इन केन्द्रों के अलावा मंत्रालय प्रिंट मीडिया, रेडियो और टेलीविजन के जरिये लोगों को मादक पदार्थों के दुष्प्रभावों और इसके उपचार के बारे में जानकारी दे रहा है।
प्रशिक्षण और मानव शक्ति का विकास
सरकार ने राष्ट्रीय सामाजिक रक्षा संस्थान, नई दिल्ली के तत्वावधान में मादक पदार्थों की रोकथाम के लिए एक राष्ट्रीय केन्द्र स्थापित किया है। प्रशिक्षण, अनुसंधान और लिखित प्रमाण के लिए यह केन्द्र सर्वोच्च संस्थान के रूप में काम करेगा।
पुनर्वास करने वाले पेशेवरों की देश में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, केन्द्र नशे की लत छुड़ाने, काउंसलिंग और पुनर्वास के लिए देश भर में तीन महीने का प्रमाणपत्र पाठयक्रम चला रहा है। राज्य सरकार के संस्थानों और गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से केन्द्र सरकार संवेदीकरण,जागरूकता पैदा करने और प्रशिक्षण के लिए देश भर में सेमिनार, सम्मेलन और प्रशिक्ष्ाण पाठयक्रम आयोजित कर रही है।
विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग
शराब और नशे की समस्या एक सामाजिक रूग्णता है और इसे सभी मानवीय क्रियाकलापों पर ध्यान देकर समग्र रूप से निपटा जा सकता है। सरकार ने सभी सम्बद्ध मंत्रालयों और विभागों को शामिल करके समेकित रवैया अपनाया है। सरकार ने जो पहल की है, उनमें मादक पदार्थों के बारे में शिक्षा और स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव के जरिये युवकों को जानकारी देना शामिल है। गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी के जरिये अध्यापकों, माता-पिता और स्कूल के माहौल में सहपाठियों को संवेदनशील बनाने के लिए कार्यक्रम विकसित किया गया है। शराब/मादक पदार्थों के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी देने के लिए मीडिया और विभिन्न युवा संगठनों का सहयोग भी मांगा गया है।
सरकार के पास उपलब्ध बुनियादी ढांचे और सेवाओं को एनजीओ क्षेत्र द्वारा दी जाने वाली सेवाओं से जोड़ दिया गया है, ताकि इससे जुड़ी स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों जैसे टीबी, एचआईवी/एड्स, हेपिटाइटस आदि से निपटा जा सके। शराब और नशा करने वालों के पुनर्वास और देखभाल के बारे में जानकारी के साथ चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों की व्यवस्था करने के प्रयास किए गए हैं। इसके साथ ही चिकित्सा के क्षेत्र मे सहयोग के लिए एनजीओ पेशेवरों को भी प्रशिक्षण देने की पहल की गई है। विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की दिशा में एक सफल पहल में एचआर्इवी/एडस रोकथाम कार्यक्रम को 100 एनजीओ के नशामुक्ति केन्द्रों में चल रहे कार्यक्रम से जोड़ना शामिल है, जिसे सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सहयोग से चलाया जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और यूएनओडीसी के सहयोग से ‘सामुदायिक मादक पदार्थ पुनर्वास और कार्यस्थल रोकथाम विकास योजना’ लागू की है। यह देखा गया कि किसी भी व्यक्ति के कार्य स्थल का माहौल निवारक का काम कर सकता है बशर्ते उसे आर्थिक सुरक्षा मिलती रहे। नौकरी चले जाने से नशे की लत बढ़ जाती है। वर्तमान कार्यक्रम में इस पहलू पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया गया। योजना के अंतर्गत किये गए गंभीर प्रयासों के साथ अनेक कॉर्पोरेट संस्थानों ने इस परियोजना में शामिल होने की इच्छा प्रकट की।
इसके बाद यूएनओडीसी और आईएलओ के सहयोग से दो समुदाय आधारित हस्तक्षेप किये गए:
1 भारत में समुदाय के बीच मांग में कमी
2 भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के समुदाय के बीच मांग में कमी
पूर्वोत्तर की परियोजना को स्थानीय रीति-रिवाजों, सांस्कृतिक परम्पराओं, सामुदायिक जुड़ाव और ढांचागत कमी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। योजना ने इन राज्यों के समुदाय के विकास के लिए व्यापक रवैया अपनाया है।
इस प्रकार, मादक पदार्थों की मांग में कमी रोकथाम नीति के रूप में गुणवत्ता और न्यूनतम मानकों, पेशेवर मानव शक्ति के विकास, सेवा प्रदाताओं की नेटवर्किंग, विभिन्न क्षेत्रों के एक तरफ झुकाव आदि के संबंध में सफल रही है। जिन अन्य क्षेत्रों को मजबूत किये जाने की जरूरत है वे हैं
* सूचना जोड़ने के साधन
* बेहतर और व्यक्तिगत आधार वाली सामग्री प्रबंधन
* देसी दवाओं और उपचारात्मक तरीकों के इस्तेमाल के बारे में अनुसंधान
*त्वरित जागरूकता अभियान
हांलाकि हमारे समाज में मादक पदार्थों की रोकथाम के लिए चौतरफा उपाय किये गए हैं, लेकिन संतोष करने के लिए अभी लंबा सफर बाकी है। मादक पदार्थों की तस्करी और नशे पर रोक लगाने के लिए इस काम में लगी एजेंसियों को सहयोग देने के लिए संवेदनशीलता और जागरूकता ही समाज को मजबूत बनाने का एकमात्र समाधान है। (पसूका--पत्र सूचना कार्यालय)
** सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से प्राप्त जानकारी
विनोद/कविता-76
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