सात दिवसीय देश व्यापी उपवास जगह-जगह विरोध
कूड़ंकुलम में सक्रिय परमाणु विरोधी अभियान गरमाया मार्च २६, नयी दिल्ली : कूड़ंकुलम परमाणु बिजलीघर के विरोध में इडिंठकरई, तमिल नाडु में चल रहे उपवास के समर्थन में, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, परमाणु निशस्त्रीकरण और शांति के लिए गठबंधन, लोक राजनीति मंच और दिल्ली समर्थक समूह ने संयुक्त रूप से जंतर मंतर, दिल्ली, पर 26 मार्च से 1 अप्रैल 2012 तक सात दिवसीय उपवास का आह्वान दिया है। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय समन्वयक और प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय ने आज से जंतर मंतर पर सात दिन का उपवास सुरु किया है | इन सात दिनों में अन्य कई लोग क्रमिक अनशन भी करेंगे |
कूड़ंकुलम परमाणु बिजलीघर के विरोध में चेन्नई में भी लोग उपवास पर हैं और मुंबई में प्रख्यात फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन दादर रेलवे स्टेशन के सामने विरोध का नेतृत्व करेंगे। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय आन्ध्र प्रदेश ने २७ मार्च को शाम ६ बजे से ८ बजे तक एक प्रदर्शन और मोमबती जुलूस निकलने का भी कार्यक्रम आंबेडकर मूर्ती, टैंक बंद, हैदराबाद में किया है |कूड़ंकुलम परमाणु बिजली घर के विरोध में, 27 मार्च 2012 को एक दिवसीय उपवास का आयोजन देश में जगह जगह होगा।
यह विडम्बना ही तो है कि एक तरफ भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में, श्री लंका में तमिल लोगों के ऊपर हुए अत्याचार का मुद्दा उठाया है, परंतु देश के भीतर तमिल नाडु में परमाणु बिजली घर बनाने की जिद्द पर भारत अड़ा हुआ है जिसकी वजह से तमिल नाडु में रह रहे लोग खतरनाक परमाणु दुष्परिणामों को आने वाले सालों में भुगत सकते हैं।
हम भारत सरकार के गैर लोकतान्त्रिक ढंग से परमाणु ऊर्जा थोपने के प्रयास का विरोध करते हैं। अमरीका और यूरोप में जब भारी संख्या में आम लोग सड़क पर उतार आए तब उनकी सरकारों को परमाणु ऊर्जा त्यागनी पड़ी परंतु भारत में जब आम लोग परमाणु ऊर्जा पर सवाल उठा रहे हैं तो उनकी आवाज़ दबाने का प्रयास किया जा रहा है। कुडनकुलम, तमिल नाडु के डॉ उदयकुमार के नेतृत्व में परमाणु ऊर्जा के विरोध में जन अभियान को भारत सरकार ने भ्रामक आरोपों आदि द्वारा दबाने का पूरा प्रयास किया है। जब कि डॉ उदयकुमार ने अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक किया है और उनके पास ‘एफ.सी.आर.ए.’ ही नहीं है जिससे ‘विदेशी पैसा’ लिया जा सके। यह भी साफ ज़ाहिर है कि भारत सरकार स्वयं ‘विदेशी’ ताकतों (जैसे कि अमरीका, रूस, आदि) के साथ मिलजुल कर सैन्यीकरण और परमाणु कार्यक्रम बढ़ा रही है।
भारत सरकार ने एक जर्मन नागरिक को जिसने शांतिपूर्वक कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा विरोधी अभियान में भाग लिया था, उसको पकड़ कर वापिस जर्मनी भेज दिया। 8 मार्च 2012 को भारत सरकार ने एक जापानी नागरिक का वीसा भी रद्द कर दिया। ‘ग्रीनपीस’ के निमंत्रण पर फुकुशिमा,जापान में 11 मार्च 2011 को हुई परमाणु दुर्घटना झेले हुए माया कोबायाशी को भारत सरकार ने 15 फरवरी 2012 को ‘बिजनेस’ वीसा दिया था जिससे कि वो भारत में एक सप्ताह आ कर जगह-जगह आयोजित कार्यक्रमों में परमाणु विकिरण आदि खतरों के बारे में बता सकें। परंतु 8 मार्च 2012 को भारत ने उनका वीसा ही रद्द कर दिया।
हाल हे में तमिल नाडु मुख्य मंत्री द्वारा डॉ एस.पी. उदयकुमार को नक्सलवादी करार करने का प्रयास यह ज़ाहिर करता है कि सरकार परमाणु कार्यक्रम को लागू करने के लिए कितनी मजबूर है। हम सरकार के आम लोगों को गुमराह करने का और परमाणु कार्यक्रम में पारदर्शिता नहीं रखने का भरसक विरोध करते हैं।
अब विकसित दुनिया यह मानने लगी है कि निम्न चार कारणों से नाभिकीय ऊर्जा का कोई भविष्य नहीं हैः (1) इसका अत्याधिक खर्चीला होना, (2) मनुष्य स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए खतरनाक, (3) नाभिकीय शस्त्र के प्रसार में इसकी भूमिका से जुड़े खतरे, व (4) रेडियोधर्मी कचरे के दीर्घकालिक निपटारे की चुनौती।
भारत को नाभिकीय ऊर्जा का विकल्प ढूँढना चाहिए जो इतने खर्चीले व खतरनाक न हों। पुनर्प्राप्य ऊर्जा के संसाधन, जैसे सौर, पवन, बायोमास, बायोगैस, आदि, ही समाधान प्रदान कर सकते हैं यह मान कर यूरोप व जापान तो इस क्षेत्र में गम्भीर शोध कर रहे हैं। भारत को भी चाहिए कि इन विकसित देशों के अनुभव से सीखते हुए नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में अमरीका व यूरोप की कम्पनियों का बाजार बनने के बजाए हम भी पुनर्प्राप्य ऊर्जा संसाधनों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करें। भारत को ऐसी ऊर्जा नीति अपनानी चाहिए जिसमें कार्बन उत्सर्जन न हो और परमाणु विकिरण के खतरे भी न हो।
हम भारत सरकार से अपील करते हैं कि परमाणु ऊर्जा के मुद्दे पर लोकतान्त्रिक तरीके से खुली बहस करवाए और जब तक यह सर्व सम्मति से निर्णय नहीं होता कि भारत को परमाणु कार्यक्रम चलना चाहिए या नहीं, परमाणु कार्यक्रम को स्थगित करे।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, परमाणु निशस्त्रीकरण और शांति के लिए गठबंधन, और लोक राजनीति मंच
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: पी.के. सुंदरम 9810556134, रमेश शर्मा 9818111562, मधुरेश कुमार ९८१८९०५३१६, विजयन एम् जे 9582862682
कूड़ंकुलम परमाणु बिजलीघर के विरोध में चेन्नई में भी लोग उपवास पर हैं और मुंबई में प्रख्यात फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन दादर रेलवे स्टेशन के सामने विरोध का नेतृत्व करेंगे। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय आन्ध्र प्रदेश ने २७ मार्च को शाम ६ बजे से ८ बजे तक एक प्रदर्शन और मोमबती जुलूस निकलने का भी कार्यक्रम आंबेडकर मूर्ती, टैंक बंद, हैदराबाद में किया है |
यह विडम्बना ही तो है कि एक तरफ भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में, श्री लंका में तमिल लोगों के ऊपर हुए अत्याचार का मुद्दा उठाया है, परंतु देश के भीतर तमिल नाडु में परमाणु बिजली घर बनाने की जिद्द पर भारत अड़ा हुआ है जिसकी वजह से तमिल नाडु में रह रहे लोग खतरनाक परमाणु दुष्परिणामों को आने वाले सालों में भुगत सकते हैं।
हम भारत सरकार के गैर लोकतान्त्रिक ढंग से परमाणु ऊर्जा थोपने के प्रयास का विरोध करते हैं। अमरीका और यूरोप में जब भारी संख्या में आम लोग सड़क पर उतार आए तब उनकी सरकारों को परमाणु ऊर्जा त्यागनी पड़ी परंतु भारत में जब आम लोग परमाणु ऊर्जा पर सवाल उठा रहे हैं तो उनकी आवाज़ दबाने का प्रयास किया जा रहा है। कुडनकुलम, तमिल नाडु के डॉ उदयकुमार के नेतृत्व में परमाणु ऊर्जा के विरोध में जन अभियान को भारत सरकार ने भ्रामक आरोपों आदि द्वारा दबाने का पूरा प्रयास किया है। जब कि डॉ उदयकुमार ने अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक किया है और उनके पास ‘एफ.सी.आर.ए.’ ही नहीं है जिससे ‘विदेशी पैसा’ लिया जा सके। यह भी साफ ज़ाहिर है कि भारत सरकार स्वयं ‘विदेशी’ ताकतों (जैसे कि अमरीका, रूस, आदि) के साथ मिलजुल कर सैन्यीकरण और परमाणु कार्यक्रम बढ़ा रही है।
भारत सरकार ने एक जर्मन नागरिक को जिसने शांतिपूर्वक कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा विरोधी अभियान में भाग लिया था, उसको पकड़ कर वापिस जर्मनी भेज दिया। 8 मार्च 2012 को भारत सरकार ने एक जापानी नागरिक का वीसा भी रद्द कर दिया। ‘ग्रीनपीस’ के निमंत्रण पर फुकुशिमा,जापान में 11 मार्च 2011 को हुई परमाणु दुर्घटना झेले हुए माया कोबायाशी को भारत सरकार ने 15 फरवरी 2012 को ‘बिजनेस’ वीसा दिया था जिससे कि वो भारत में एक सप्ताह आ कर जगह-जगह आयोजित कार्यक्रमों में परमाणु विकिरण आदि खतरों के बारे में बता सकें। परंतु 8 मार्च 2012 को भारत ने उनका वीसा ही रद्द कर दिया।
हाल हे में तमिल नाडु मुख्य मंत्री द्वारा डॉ एस.पी. उदयकुमार को नक्सलवादी करार करने का प्रयास यह ज़ाहिर करता है कि सरकार परमाणु कार्यक्रम को लागू करने के लिए कितनी मजबूर है। हम सरकार के आम लोगों को गुमराह करने का और परमाणु कार्यक्रम में पारदर्शिता नहीं रखने का भरसक विरोध करते हैं।
अब विकसित दुनिया यह मानने लगी है कि निम्न चार कारणों से नाभिकीय ऊर्जा का कोई भविष्य नहीं हैः (1) इसका अत्याधिक खर्चीला होना, (2) मनुष्य स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए खतरनाक, (3) नाभिकीय शस्त्र के प्रसार में इसकी भूमिका से जुड़े खतरे, व (4) रेडियोधर्मी कचरे के दीर्घकालिक निपटारे की चुनौती।
भारत को नाभिकीय ऊर्जा का विकल्प ढूँढना चाहिए जो इतने खर्चीले व खतरनाक न हों। पुनर्प्राप्य ऊर्जा के संसाधन, जैसे सौर, पवन, बायोमास, बायोगैस, आदि, ही समाधान प्रदान कर सकते हैं यह मान कर यूरोप व जापान तो इस क्षेत्र में गम्भीर शोध कर रहे हैं। भारत को भी चाहिए कि इन विकसित देशों के अनुभव से सीखते हुए नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में अमरीका व यूरोप की कम्पनियों का बाजार बनने के बजाए हम भी पुनर्प्राप्य ऊर्जा संसाधनों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करें। भारत को ऐसी ऊर्जा नीति अपनानी चाहिए जिसमें कार्बन उत्सर्जन न हो और परमाणु विकिरण के खतरे भी न हो।
हम भारत सरकार से अपील करते हैं कि परमाणु ऊर्जा के मुद्दे पर लोकतान्त्रिक तरीके से खुली बहस करवाए और जब तक यह सर्व सम्मति से निर्णय नहीं होता कि भारत को परमाणु कार्यक्रम चलना चाहिए या नहीं, परमाणु कार्यक्रम को स्थगित करे।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, परमाणु निशस्त्रीकरण और शांति के लिए गठबंधन, और लोक राजनीति मंच
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: पी.के. सुंदरम 9810556134, रमेश शर्मा 9818111562, मधुरेश कुमार ९८१८९०५३१६, विजयन एम् जे 9582862682
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