बुधवार, अगस्त 27, 2025

राष्ट्रपति अलेक्जेंडर स्टब ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टेलीफोन कॉल की

 Posted On: 27 August 2025 at 8:32 PM by PIB Delhi

फिनलैंड के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर स्टब

*दोनों नेताओं ने यूक्रेन में संघर्ष के समाधान के लिए हाल के प्रयासों पर विचार विमर्श किया

*प्रधानमंत्री मोदी ने शांति और स्थिरता की शीघ्र बहाली के लिए भारत के निरंतर समर्थन को दोहराया

*दोनों नेताओं ने व्यापार, प्रौद्योगिकी और स्थिरता सहित प्रमुख क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के तरीकों पर भी चर्चा की

नई दिल्ली: 27 अगस्त 2025: (PIB Delhi//इर्द गिर्द)::

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी को आज फिनलैंड गणराज्य के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर स्टब ने टेलीफोन कॉल की।

राष्ट्रपति स्टब ने यूक्रेन में संघर्ष के समाधान पर वाशिंगटन में यूरोप, संयुक्त राज्य अमरीका और यूक्रेन के नेताओं के बीच हुई हालिया बैठकों पर अपना आकलन साझा किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान और शांति एवं स्थिरता की शीघ्र बहाली के लिए भारत के निरंतर समर्थन को दोहराया।

दोनों नेताओं ने भारत-फ़िनलैंड द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति की भी समीक्षा की और क्वांटम प्रौद्योगिकी, 6G, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर सुरक्षा और स्थिरता सहित उभरते क्षेत्रों में साझेदारी बढ़ाने की प्रतिबद्धता दोहराई।

राष्ट्रपति स्टब ने पारस्परिक रूप से लाभकारी भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते को शीघ्र संपन्न करने के लिए फ़िनलैंड के समर्थन को दोहराया। उन्होंने 2026 में भारत द्वारा आयोजित होने वाले एआई इम्पैक्ट शिखर सम्मेलन की सफलता के लिए भी समर्थन व्यक्त किया।

प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति स्टब को शीघ्र भारत आने का निमंत्रण दिया। नेताओं ने संपर्क में बने रहने पर सहमति व्यक्त की।

******//पीके/केसी/पीके/एसएस//(Release ID: 2161397)

शुक्रवार, जुलाई 04, 2025

पेड़ों की अलमारी: किताबें, भरोसा और प्रकृति की अनूठी साझेदारी

पेड़ों की अलमारी: किताबें, भरोसा और प्रकृति की अनूठी साझेदारी

✍लेखक:ChatGPT (OpenAI) ने जुटाई है ऐसी जानकारी जो नई आशाएं जगाती है।

(इनपुट-मीडिया लिंक रविंदर)


किताबों की दुनिया से विशेष और दिलचसप बातें: 3 जुलाई 2025:(ChatGPT//OpenAI)::

अब जब की काफी समय से जंग का माहौल है। परमाणु बम के खतरे भी सामने आ रहे हैं। गाज़ा पट्टी,  ईरान,  इज़राइल, यूक्रेन इत्यादि इन सभी जगहों ने भयानक तबाही देखी है। दूधमुंहें बच्चों की मौत देखी है। इसके बाद भी इन स्थानों से चिंताजनक खबरें ही आ रही हैं।यह सिलसिला स्थाई तौर पर बंद हुआ नहीं लग रहा।शांति अभी भी खतरों में है। 

बारूद,नफरत, खून खराबा और जंग की बोझिल खबरों के दरम्यान AI ने दी है प्रेम, शांति और सद्भावना की नई  आशाएं। नई उम्मीदें--क्यूंकि जब पुस्तकों से प्रेम जागता है तो दुनिया के बेहतर बनने की संभावनाएं तेज़ी से बढ़ने लगती हैं। शायद इसीलिए जन विरोधी तानाशाह और अन्य लोग पुस्तकों पर पाबंदियां भी लगाते रहे हैं। पुस्तकों को जलाते भी रहे हैं। लेखकों ,  शायरों और विचारकों की हत्याएं भी करते रहे हैं। इस साब के बावजूद विचार ज़िंदा हैं, पुस्तकें फिर फिर लोगों के दिल और दिमाग में अपना स्थान बना लेती हैं। 

जहां हमलोग अच्छे भले फलदार और छायादार पेड़ों को काटने से भी पीछे नहीं हट रहे वहीं दुनिया में समझदार लोग गिर चुके पेड़ों का दोबारा इस्तेमाल भी एक नई ज़िन्दगी बनाने के लिए कर रहे हैं। इन पेड़ों को बहुत ही खूबसूरत शैल्फ और अलमारी की तरह किया जा रहा है। इन में बहुत ही खूबसूरती से सजा कर रखीं किताबें जैसे आवाज़ें दे कर बुला रही हों। इन किताबों में भी जीवन के रहस्य ही छुपे हैं। 

दुनिया में किताबों को लेकर भरोसे की अनूठी परंपराएँ रही हैं। कहीं बाजार में किताबें रातभर खुली छोड़ दी जाती हैं, तो कहीं सड़क किनारे कोई लकड़ी की अलमारी में अपनी प्रिय पुस्तकें रख जाता है ताकि कोई अनजान पढ़ सके।ऐसा ही एक अद्भुत प्रयोग है — बुक फ़ॉरेस्ट (Book Forest) — जो जर्मनी के बर्लिन शहर में देखा जा सकता है।

🌳 बुक फ़ॉरेस्ट — ज्ञान और प्रकृति का संगम

बर्लिन की कुछ गलियों और पार्कों में पेड़ों के खोखले तनों को सुंदर बुक शेल्व में बदल दिया गया है।इन पेड़ तनों में छोटे-छोटे काँच या लकड़ी के दरवाजों वाली अलमारियाँ होती हैं, जिनमें किताबें रखी जाती हैं।यहाँ कोई शुल्क नहीं, कोई सदस्यता नहीं — बस किताबें लें, पढ़ें, और चाहें तो अपनी कोई किताब रख दें।

यह पहल न केवल पढ़ाई और साहित्य प्रेम को बढ़ावा देती है, बल्कि यह प्रकृति और ज्ञान के गहरे रिश्ते को भी दर्शाती है।

🌍 दुनिया में और कहाँ?

देश                                    पहल                                             विशेषता

🇮🇶 इराक                     अल-मुतनब्बी स्ट्रीट                  किताबों का भरोसे पर आधारित खुला बाजार

🇩🇪 जर्मनी                 Öffentliche Bücherschränke         सार्वजनिक बुक शेल्व, बिना ताले

🇺🇸 अमेरिका                    Little Free Library                    घरों के बाहर छोटी लाइब्रेरी

🇯🇵 जापान                            Honesty Box                   भरोसे पर आधारित वस्तु और किताब विक्रय

🇮🇳 भारत में संभावनाएँ  

भारत की विविधता और साहित्यिक परंपरा ऐसी पहल के लिए उपजाऊ ज़मीन दे सकती है।पार्कों, विश्वविद्यालयों, कॉलोनियों में हम छोटे-छोटे बुक शेल्व शुरू कर सकते हैं।यह न केवल पढ़ने की आदत को बढ़ाएगा, बल्कि भरोसे और सामुदायिक सौहार्द का प्रतीक बनेगा।

✨ अंत में गर्व की बात है कि पेड़ों की अलमारी हमें सिखाती है

पेड़ों की अलमारी हमें सिखाती है कि किताबें केवल पन्नों में नहीं, हमारी सोच और समाज में भरोसे की जड़ें जमाने का ज़रिया बन सकती हैं। ज्ञान जब प्रकृति से जुड़ता है, तो उसकी जड़ें और भी गहरी होती हैं।

नोट:"यह आलेख मीडिया लिंक रविंदर के इनपुट और ChatGPT (OpenAI) की सहायता से तैयार किया गया है।"आपको यह प्रयास कैसा लगा अवश्य बताएं। आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी ही। "यह आलेख मीडिया लिंक रविंदर की टीम के इनपुट और ChatGPT (OpenAI) की तकनीकी सहायता से और बेहतर बन पाया है और ब्लॉग का स्रोत है: iradgirad.blogspot.com"

शनिवार, जून 28, 2025

'अंबेडकर के संदेश' और 'Ambedkar’s Messages'-दो पुस्तकें

उप राष्ट्रपति सचिवालय//Azadi Ka Amrit Mahotsav//प्रविष्टि तिथि: 28 June 2025 at 6:54 PM by PIB Delhi

 पुस्तकों की पहली प्रतियों के औपचारिक भेंट के अवसर पर विशेष आयोजन 

उपराष्ट्रपति के द्वारा दिए गए संबोधन का पाठ"

नई दिल्ली: 28 जून 2025: (PIB Delhi//इर्द गिर्द डेस्क)::

सभी को नमस्कार,

यह मेरे लिए एक अत्यंत भावुक क्षण है, एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर है। मैं आप सभी के सहभाग के लिए आभार व्यक्त करता हूँ, जो दो बातों को स्पष्ट करता है — पहला, कि डॉ. भीमराव अंबेडकर हमारे हृदय में बसते हैं। वे हमारी चेतना को उद्वेलित करते हैं और आत्मा को स्पर्श करते हैं।

दूसरा, कि इस ग्रंथ के लेखक श्री डी.एस. वीरय्या जी — जो दो बार कर्नाटक विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं, जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए उत्कृष्टता हासिल की — उनका यह कार्य अत्यंत प्रेरणादायक और प्रशंसनीय है।

यह एक महत्वपूर्ण कार्य है, और अत्यंत सामयिक भी। डॉ. अंबेडकर के संदेश आज अत्यंत प्रासंगिक हैं। ये संदेश जन-जन तक, परिवार स्तर तक पहुँचने चाहिए। बच्चों को इनसे परिचित कराना आवश्यक है।

सामयिक दृष्टि से, अंबेडकर के संदेश आज अप्रत्याशित रूप से प्रासंगिक हैं।

मैं इस पुस्तक विमोचन से जुड़कर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूँ। यह एक ऐसा ग्रंथ है, जो पीढ़ियों के बीच की दूरी मिटाता है। यह प्रत्येक के सिरहाने रखने योग्य ग्रंथ है — जिसे पढ़ते-पढ़ते नींद सुकून से आए। यह पुस्तक जीवन की सहचर बननी चाहिए।

मित्रों, एक सांसद के रूप में, और भारत के उपराष्ट्रपति तथा संसद के उच्च सदन — राज्य सभा — का सभापति होने के नाते, मुझे अत्यंत संतोष और गर्व हो रहा है कि मैं ‘Ambedkar's Messages’ जैसी पुस्तक को प्राप्त कर रहा हूँ, जो सबसे पहले हमारे सांसदों, विधायकों और नीति-निर्माताओं द्वारा आत्मसात की जानी चाहिए।

इसके अंग्रेज़ी और हिंदी संस्करणों को मैंने देखा है — श्री वीरय्या जी ने इसे अत्यंत कुशलता और समर्पण से संकलित किया है। वे एक सिद्ध लेखक और कवि हैं।

गुलबर्गा विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘अंबेडकर अवार्ड’ से सम्मानित कर सही निर्णय लिया। मैं उन्हें इसके लिए हार्दिक बधाई देता हूँ।

मित्रों, हम इस समय अमृतकाल के ऐतिहासिक कालखंड से गुजर रहे हैं। हमने अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर अमृत महोत्सव मनाया। फिर, 26 नवंबर 2024 को भारतीय संविधान को अंगीकार करने की 75वीं वर्षगांठ भी मनाई। यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है — एक ऐसा लोकतंत्र, जिसने अनेक चुनौतियों के बावजूद अपने अस्तित्व को कायम रखा है।

आपको यह बताते हुए मुझे संतोष हो रहा है कि 11 जुलाई 2024 को एक राजपत्र अधिसूचना जारी की गई, जिसमें 25 जून 1975 — जब आपातकाल घोषित हुआ था — को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में चिन्हित किया गया।

जब संविधान का अपमान हुआ, लोकतंत्र अंधकार में डूबा — उस समय डॉ. अंबेडकर की आत्मा ने निस्संदेह आक्रोश और पीड़ा महसूस की होगी।

अतः इन दो पुस्तकों के माध्यम से उनका चिंतन हमें स्मरण कराता है कि उनके विचार केवल अकादमिक विमर्श तक सीमित न रह जाएँ, बल्कि समाज में समानता, समरसता और समावेशी विकास के लक्ष्य की दिशा में हमें प्रेरित करें।

जब हम अमृतकाल में हैं, संविधान के अंगीकरण की 75वीं वर्षगांठ और गणराज्य के 75वें वर्ष की ओर बढ़ रहे हैं, तो यह समय है कि हम संविधान की आत्मा और मर्म पर संवाद, विमर्श और विचार करें — क्योंकि संविधान ही हमारे लोकतंत्र की धुरी है।

मित्रों, मैं आज एक गंभीर विषय पर भी ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। संविधान की प्रस्तावना (Preamble) उसकी आत्मा है। यह संविधान का मूल बीज है, जिस पर पूरी संवैधानिक संरचना खड़ी है।

‘हम भारत के लोग’ — यह प्रस्तावना केवल शब्दों का समुच्चय नहीं है, यह संविधान की चेतना है।

परंतु, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विश्व में केवल भारत की प्रस्तावना को बदला गया — 1976 में, 42वें संविधान संशोधन द्वारा — ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ जैसे शब्द जोड़े गए।

क्या प्रस्तावना को बदलना उचित था? प्रस्तावना वह आधार है, जिससे संविधान विकसित हुआ। उसे बदलना संविधान की आत्मा से छेड़छाड़ है।

और यह परिवर्तन उस समय हुआ, जब देश आपातकाल के अंधकार में डूबा था। जनता का विलोपन हो चुका था, मौलिक अधिकार निलंबित थे, न्याय प्रणाली तक पहुँच बाधित थी।

क्या यही लोकतंत्र है?

तीन वर्षों की अथक मेहनत— 2 वर्ष, 11 माह और 18 दिन के गहन मंथन के बाद — जिसमें डॉ. अंबेडकर और उनके सहयोगियों ने पूरे विश्व का अध्ययन किया, भारत की 5000 वर्षों की सभ्यता का विश्लेषण किया — तब यह संविधान बना।

संविधान सभा के सदस्य निःस्वार्थ भाव से, संवाद और समन्वय के माध्यम से, इस दस्तावेज़ को अस्तित्व में लाए। तब कोई व्यवधान या हंगामा नहीं था — यह थी लोकतंत्र की सच्ची भावना।

आज के समय में, जब संसद जैसी संस्थाओं में विघटन, हंगामा और व्यवधान की प्रवृत्ति बढ़ रही है — तब डॉ. अंबेडकर की चेतावनी और चेतना को आत्मसात करना अनिवार्य हो गया है।

संसद लोकतंत्र का मंदिर है— यहाँ जनता की प्रार्थनाएँ सुनी जाती हैं, उनकी पीड़ाओं का समाधान होता है।

मित्रों, न्यायपालिका भी लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। मैं स्वयं उस प्रणाली से वर्षों तक जुड़ा रहा हूँ।

सुप्रीम कोर्ट के दो महत्वपूर्ण निर्णय — गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967) और केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) — में प्रस्तावना की महत्ता पर गंभीर टिप्पणी की गई।

गोलकनाथ निर्णय में न्यायमूर्ति हिदायतुल्लाह ने कहा — “संविधान की प्रस्तावना केवल शब्दों का समूह नहीं है, बल्कि यह संविधान के आदर्शों और लक्ष्यों को संक्षेप में दर्शाती है।”

केशवानंद भारती में न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना ने कहा — “प्रस्तावना संविधान की व्याख्या के लिए मार्गदर्शक है, और यह स्पष्ट करती है कि संविधान की सर्वोच्च सत्ता का स्रोत ‘भारत की जनता’ है।”

फिर भी, जब देश का लोकतंत्र कैद था — तब उस प्रस्तावना में संशोधन हुआ। यह हमारे संविधान की आत्मा को आहत करने जैसा है। ये शब्द संविधान में नासूर की भांति जोड़े गए, जो अस्थिरता और अंतर्विरोध को जन्म दे सकते हैं।

न्यायमूर्ति शेलत, ग्रोवर और सीकरी जैसे विद्वान न्यायाधीशों ने भी प्रस्तावना की अपरिवर्तनीयता पर ज़ोर दिया। उनके अनुसार, प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग है — एक ऐसा बीज, जिससे संविधान रूपी वृक्ष विकसित हुआ है। उसमें परिवर्तन करना, उसकी आत्मा को विकृत करना है।

इस प्रकार, डॉ. अंबेडकर की आत्मा को, उनकी दृष्टि को और हमारे सनातन सांस्कृतिक मूल्यों को इन परिवर्तनों से ठेस पहुँची है।

मैं श्री डी.एस. वीरय्या को इस अत्यंत सामयिक, विचारोत्तेजक और प्रेरणादायक कृति के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ।

डॉ. अंबेडकर को केवल राजनीतिज्ञ के रूप में देखना — उनकी महानता को सीमित करना होगा। वे एक दूरद्रष्टा, समाज सुधारक, संवैधानिक विद्वान और मानवतावादी चिंतक थे। उन्होंने असाधारण संघर्षों का सामना कर एक अनुपम यात्रा तय की।

क्या यह विडंबना नहीं कि उन्हें भारत रत्न मरणोपरांत दिया गया?

मैं सौभाग्यशाली रहा कि 1989 में, संसद सदस्य और मंत्री रहते हुए, इस ऐतिहासिक सम्मान का साक्षी बना। लेकिन मेरा मन व्यथित था — इतना विलंब क्यों?

उन्होंने कहा था, “मैं नहीं चाहता कि हमारा भारतीय होने का दायित्व — हमारे धर्म, संस्कृति या भाषा के प्रति प्रतिस्पर्धात्मक निष्ठा से प्रभावित हो। मैं चाहता हूँ कि हम पहले भारतीय हों, अंत में भारतीय हों और केवल भारतीय हों।”

उन्होंने हमें एक मंत्र दिया — हम भारतीय हैं। भारतीयता हमारी पहचान है। राष्ट्रवाद हमारा धर्म है। राष्ट्र सर्वोपरि है।

आज, जब समाज में वैमनस्य, विघटन और विषमता की स्थिति है — तो अंबेडकर के ये वचन एक मरहम, एक अमृत के समान हैं।

उन्होंने संविधान सभा में अपने अंतिम संबोधन में एक ऐतिहासिक चेतावनी दी थी। 25 नवम्बर 1949 को उन्होंने कहा — 'भारत ने पहले भी अपनी स्वतंत्रता खोई है, और वह अपने ही लोगों की अनिष्ठा और विश्वासघात के कारण खोई। क्या इतिहास स्वयं को दोहराएगा?'

उन्होंने आगे कहा— “यदि हम अपने पंथ को देश से ऊपर रखेंगे, तो हमारी स्वतंत्रता फिर संकट में पड़ जाएगी — और संभवतः हमेशा के लिए खो जाएगी। हमें दृढ़ निश्चय करना होगा कि हम स्वतंत्रता की रक्षा अंतिम बूंद तक करेंगे।

मैं इस ऐतिहासिक अवसर पर डॉ. भीमराव अंबेडकर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ — और देशवासियों से आग्रह करता हूँ कि वे प्रस्तावना में किए गए उन परिवर्तनों पर चिंतन करें, जिन्होंने संविधान की आत्मा को छलनी किया — उस समय, जब देश की जनता बंदी थी और मौलिक अधिकार स्थगित थे।

मैं लेखक तथा इस काम से जुड़े सभी व्यक्तियों को — इस समसामयिक, सारगर्भित योगदान के लिए बधाई देता हूँ।

धन्यवाद।

****//JK/RC/SM//(रिलीज़ आईडी: 2140483)

बुधवार, मई 28, 2025

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक विशेष लेख साझा किया

प्रधानमंत्री कार्यालय//Azadi Ka Amrit Mahotsav//प्रविष्टि तिथि: 28 MAY 2025 at 1:18 PM by PIB Delhi

पूर्वोत्तर भारत में हुए बदलाव पर है यह विशेष लेख 

नई दिल्ली: 28 मई 2025: (पत्र सूचना कार्यालय//PIB Delhi//इर्द गिर्द डेस्क)::

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज केन्द्रीय संचार मंत्री एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा लिखे गए एक लेख को साझा किया। श्री मोदी ने कहा कि पूर्वोत्तर भारत अब सीमांत क्षेत्र नहीं, बल्कि सबसे अग्रणी क्षेत्र है।

प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक्स पर पोस्ट किया:

"पूर्वोत्तर भारत अब सीमांत क्षेत्र नहीं रह गया है, बल्कि यह अग्रणी क्षेत्र बन गया है। केंद्रीय मंत्री श्री @JM_Scindia ने व्यापार, संपर्क के लिए रणनीतिक केंद्र के रूप में इस क्षेत्र के उदय और विकसित भारत के लिए 30 ट्रिलियन डॉलर के दृष्टिकोण पर एक विस्तृत लेख लिखा है। इस पर एक नज़र डालें!"

***//एमजी/केसी/जेके/एसके//(रिलीज़ आईडी: 2131967)

बुधवार, अक्टूबर 09, 2024

सम्पन्न व्यवसाय में बदला जा सकता है छोटे से बगीचे को

Friday 20th September 2024 at 19:22//Horticulture//Domestic Industry//Punjab Screen media Group+Resources

खुशियां बांटता व महकता हुआ बगीचा आर्थिक खुशहाली भी देगा 


चंडीगढ़
//मोहाली: (कार्तिका कल्याणी सिंह//मीडिया लिंक//इर्द गिर्द डेस्क)::

जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है और  बेरोज़गारी भी तो हालात बुरी तरह से भयानक होते जा रहे हैं। नौकरी आसानी से मिलती भी नहीं और नौकरी से पूरी तरह गुज़ारा होता भी नहीं दिखता। ऐसे में कोई न कोई कारोबार होना ही आवश्यक लगने लगा है। लेकिन कारोबार के लिए पूरा अनुभव और इमारतें भी कहां से जुटाई जा सकती  हैं। निराशा और दुविधा के ऐसे अंधेरे में  बागबानी का क्षेत्र भी बहुतसी उम्मीदें लेकर आता है। छोटी सी जगह भी इस मकसद के लिए काफी रहती है। थोड़े से बीज, थोड़ी सी ट्रेनिंग और थोड़े से औज़ार एक अच्छी शुरुआत के लिए काफी हैं। सब्ज़ियों और फूलों के मिला जुला व्यवसाय बहुत आकर्षक आमदनी देने लगता है। पीएयू की कवरेज के दौरान मैंने कई बार किसान मेलों में जा कर भी देखा तो इस मामले में लोगों  को हैरानीजनक हद तक सफल होते देखा।  

छोटे से बगीचे को एक संपन्न व्यवसाय में बदलना कोई ज़्यादा कठिन भी नहीं होता। बस लगन और लगाव बहुत जल्द करिश्मे दिखाने लगते हैं। छोटे से बगीचे की छोटी सी शुरुआत संपन्नता का बहुत बड़ा व्यवसाय सामने ले आती है। आजकल बाज़ार से बहुत बड़ी कीमतें दे कर भी शुद्ध सब्ज़ी नहीं मिलती जिमें मिलावट या कीटनाशकों का दुरपयोग न  हुआ हो ।  छोटा सा बगीचा जहां आपको अपने परिवार के लिए बहुत सी ताज़ी वहीं आपके चाहने वाले, नज़दीकी रिश्तेदार और ओसी-पड़ोसी भी इस सब्ज़ी को खरीदने में  दिखाएंगे क्यूंकि बाज़ार में तो ऐसी सब्ज़ी  ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलती। 

इसलिए छोटे बगीचे के सुझाव कम कारगर न होंगें। इनसे भी काफी फायदा मिल सकेगा। कम इंवेस्टमेंट से ही करीब पूरा अनुभव जुटाना अच्छा ही रहेगा। इसके बाद इसे कभी भी बजट देख कर बढ़ाया जा सकता है। जैसे जैसे उत्पादन बढ़ेगा वैसे वैसे इस कारोबार का दायरा बढ़ाना भी अच्छा रहेगा। यहाँ कुछ मूल्यवान छोटे बगीचे के सुझाव दिए गए हैं जो आपको अपने सीमित स्थान का अधिकतम लाभ उठाने में मदद करेंगे:

शुरुआत बेशक छोटे से बगीचे से ही की जाए लेकिन इसकी योजना और डिजाइन का एक अच्छा सा ब्लूप्रिंट बनाना बहुत ही फायदेमंद रहता है। इसलिए नए उद्यमियों को इन सभी छोटी छोटी लेकिन आरंभिक बातों का ध्यान रखना चाहिए। इस  अनुभवी जानकारों की सलाह बहुत अनमोल रहती है। 

इसलिए सबसे पहले इसका ध्यान रखें कि छोटे से शुरुआत बहुत बड़े परिणाम दे सकती है। छोटे से शुरू करें जिस पर अपना पूरा ध्यान फॉक्स रखें। एक अच्छे प्रबंधकीय आकार का अनुभव आपको इस छोटी शुरुआत से शुरू करने पर ही होने लगेगा। जैसे ही काम बढ़ने लगे वैसे ही आवश्यकतानुसार इसका विस्तार भी ज़रूर करें लेकिन पूरी तरह से तरह से सोच विचार कर और पूरी योजना। 

इसे पूरी तरह से स्पष्ट करने के लिए यहां लोगों की मिसाल भी दी जाएगी और उनके ज़िक्र भी हम करेंगे।  कुछ मूल्यवान छोटे बगीचे हमारी टीम देखती रही है जो बहुत जल्द ही बड़े व्यवसाय में बदल गए। ऐसा पंजाब हरियाणा में ही नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी देखा गया। इन बगीचों ने जहां अपने संस्थापकों को नौकरी की चाहत ही भुला दी वहां उन्हें इतना पैसा भी कमा कर दिखाया कि उन्होंने किसी बड़े उद्योगपति की तरह  किया। 

पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और कुछ अन्य  राज्यों में अब लोग पारंपरिक कृषि से हट कर तेज़ी से बागबानी की तरफ आकर्षित होने लगे हैं। इन लोगों  में अब एक नया चलन देखा जा रहा है। अब ये लोग अपनी समृद्ध कृषि विरासत को  लगभग त्यागते हुए बागबानी की तरफ आ रहे हैं। फूलों की खेती और फलों की काश्त इनका मन पसंद क्षेत्र बन रही है। इस नए चलन की वजह है कि छोटे बगीचे आकर्षक व्यवसाय के रूप में उभर रहे हैं। जैविक उत्पादों, सजावटी पौधों और पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं की बढ़ती मांग के साथ, छोटे बगीचे नौकरी उन्मुख और पैसा कमाने वाली परियोजना बनते नज़र आ रहे हैं। इस पोस्ट में हम इन क्षेत्रों में छोटे बगीचों की संभावनाओं का पता लगाने और उन्हें सफल व्यावसायिक प्रयासों में बदलने के तौर तरीकों के बारे में भी विचार कर रहे हैं। 

कारोबार बागबानी//बगीचे का हो, नर्सरी का या सब्ज़िओं के उत्पादन का हो या कोई भी और लेकिन उसकी सफलता का बहुत बड़ा प्रतिशत बाजार की मांग पर टिका होता है। बाज़ार में बढ़ती मांग ही व्यवसायिक सफलता का मज़बूत आधार बनती है। उसी से उत्पादन की सही कीमत का अनुमान होता है। 

आजकल तेज़ी से आकर्षण बढ़ रहा है जैविक उत्पादनों की तरफ। बढ़ते हुए प्रदूषण और बिमारियों के चलते उपभोक्ता रसायन मुक्त फल और सब्जियाँ चाहते हैं जो  नहीं मिल पाती। हर घर परिवार अपनी ज़रूरत की सब्ज़ियां भी अपने घर में  नहीं   इतना भी आसान नहीं होता। इसलिए आम लोगों में छोटे बगीचे के मालिकों के लिए आकर्षक बाज़ार तेज़ी से विकसित होता जा रहा है। वैसे भी ऑर्गनिक सब्ज़ियों के स्वाद पूरी तरह से अलग होता है। हर किसी की कोशिश रहती है कि उसे वास्तविक ऑर्गनिक सब्ज़ियां आसानी से, नज़दीक और सही भाव पर मिल जाएं। इस मकसद के लिए बगीचा इत्यादि चलाने वालों कुछ  लोगों ने   समय पर डिलीवरी देने के लिए अपने छोटे हाथी या टैंपो जैसे वाहन भी रखे  हुए हैं। 

इसी तरह सजावटी पौधे भी हैं जिनकी आजकल बहुत मांग है। होटल, रेस्तरां और इवेंट प्लानर को भी विदेशी पौधों की आवश्यकता होती है, जिससे नर्सरी में उगाई जाने वाली प्रजातियों की मांग भी बढ़ती है। इस क्षेत्र में नए ग्राहक  तकरीबन हर रोज़  हैं। इनकी संख्या भी  रही है। 

इसके साथ ही चर्चा उनकी भी ज़रूरी है जो मेडिकल क्षेत्र से सबंधित हैं अर्थात हर्बल और औषधीय पौधे। इनकी मांग तो लगातार बढ़ती जा रही है। आयुर्वेद और प्राकृतिक उपचारों में बढ़ती रुचि तुलसी, एलोवेरा और गिलोय जैसी जड़ी-बूटियों की मांग को बढ़ाती है। लोग दवाओं से बुरी तरह तंग आ चुके हैं और लगातार आयुर्वेद और हर्बल जड़ी बूटियों की तरफ बढ़ रहे हैं। अगर सही पहचान आ जाए तो इनका फायदा भी भी होता है। 

व्यावसायिक अवसर इसके कई उपक्षेत्रों में भी बढ़ रहे हैं। इन्हींमें से एक है नर्सरी व्यवसाय। नर्सरी व्यवसाय की जहल हर जगह मिल जाती है। यहां बहुत महंगे महंगे स्थानीय भूनिर्माताओं, बिल्डरों और खुदरा विक्रेताओं को सजावटी पौधे, रसीले पौधे और जड़ी-बूटियाँ उगाएँ और बेचें।

इसी तरह से जैविक खेती भी इसी से जुडी हुई है। उपभोक्ताओं को सीधे बेचने या रेस्तरां और होटलों को थोक आपूर्ति के लिए जैविक फल, सब्जियाँ और अनाज उगाएँ। इनकी मांग भी बहुत ज़ोरों से बढ़ रही है। हर क्षेत्र में है इसकी मांग। इस तरह इस दिशा में भी मुनाफा होगा ही होगा। 

आजकल मूल्य वर्धित उत्पाद भी बाज़ार में हैं। स्थानीय और ऑनलाइन बाजारों को लक्षित करते हुए बगीचे की उपज से जैम, अचार और मसाले बहुत   बेचे जाते हैं। इनकी मांग भी बहुत।  विभिन्न मोहल्लों और गलियों में इस तरह के सामान को बेचने वाले ठेले भी देखे जा सकते हैं और छोटी बसें भी। 

इसके साथ ही बढ़ रहा है कृषि से सबंधित पर्यटन। लोग जहां उत्पादन और किस्में देखने जाते हैं वहीं इससे सबंधित कार्यशालाएँ, बागवानी सत्र और खेत से लेकर मेज तक के अनुभव हासिल करने भी जाते हैं। इस तरह के इवेंट अक्सर आयोजित होते ही रहते हैं। आप भी ऐसे इवेंट आयोजित कर सकते हैं जिससे पर्यटक आकर्षित हों और राजस्व तेज़ी से अधिक उत्पन्न हो।

इंटरनेट की लोकप्रियता देखते हुए ऑनलाइन बिक्री भी बढ़ रही है। बीज, पौधे और बगीचे से संबंधित उत्पादों को बेचने के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग बड़े पैमाने पर होने लगा है। 

इस मामले में सफलता की कहानियां भी बहुत हैं। जालंधर का ग्रीन थंब बहुत प्रसिद्ध हुआ। श्रीमती रूपिंदर कौर ने अपने 1 एकड़ के बगीचे को एक संपन्न नर्सरी में बदल दिया, स्थानीय बिल्डरों और लैंडस्केपर्स को पौधे उपलब्ध कराए। इससे जहाँ उनकी  सेहत को फायदा मिला वहीं आर्थिक खुशहाली बढ़ी। 

इसी तरह से करनाल का ऑर्गेनिक ओएसिस भी लोगों में बहुत पॉपुलर हुआ है। श्री विवेक शर्मा का 2 एकड़ का ऑर्गेनिक फ़ार्म दिल्ली-एनसीआर के शीर्ष रेस्तराँ को ताज़ा उपज प्रदान करता है। इसकी मांग भी बहुत है। इसकी गुणवत्ता की तारीफ़ भी काफी होती है। 

अब तो सरकार ने भी इसे उत्साहित करने के प्रयास बहुत तेज़ कर  दिए हैं।

सरकारी पहल अब बहुत ही अच्छी तरह से मिलने लगी है। इस बढ़ी हुई पहल का फायदा भी बगीचा उद्योग में लगे लोगों को मिलने लगा है। इससे बगीचा  व्यवसाय और मज़बूत होने लगा है। 

कुल मिला कर पंजाब और हरियाणा में छोटे बगीचों में व्यावसायिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। कहा जा सकता है कि आर्थिक खुशहाली आपके द्वार पर है। बाजार की मांग को पहचानकर, सरकारी पहलों का लाभ उठाकर और अभिनव प्रथाओं को अपनाकर, बाग मालिक अपने जुनून को लाभदायक उद्यमों में बदल सकते हैं। खिलती, महकती और मुस्काहटें बिखेरती हुई यह बगीचा क्रांति आपको भी बुला रही है। आप भी इसमें में शामिल हों और भारत के कृषि क्षेत्र के केंद्र में एक सफल व्यवसाय विकसित करें।

बातें और भी हैं। मुद्दे और भी हैं। पहलू और भी हैं -हम इन सब की चर्चा करते रहेंगे आने वाली पोस्टों में। इन सभी जानकारियों से फायदा उठाने के लिए जुड़े रहिए हमारे साथ। 

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रविवार, अक्टूबर 06, 2024

नागालैंड आपकी कल्पना से भी ज़्यादा खूबसूरत है

वहां का खान-पान और रीति रिवाज तेज़ी से मोह लेते हैं 

Photo by MOHAMED ABDUL RASHEED on Unsplash
चंडीगढ़//कोहिमा: 5 अक्टूबर 2024: (के के सिंह//मीडिया लिंक//इर्द-गिर्द डेस्क)::

पर्यटन की बात करें तो दुनिया बहुत बड़ी लगती है लेकिन अगर सैलानी बन कर निकल चलें तो सारी की सारी विशाल दुनिया भी कुछ समय बाद छोटी लगने लगती है। इस दुनिया का हर कोना, हर क्षेत्र अपने आप में कोई न कोई खासियत समेटे हुए है। बहुत से इलाकों की विशेषताएं ज़्यादा प्रसिद्ध नहीं हो पाती लेकिन जो लोग घूमने जाते हैं वे इन्हें ढूंढ ही लेते हैं। आज बात  उत्तर पूर्वी  राज्यों की।  फ़िलहाल नागालैंड की चर्चा। 

आप भी जानते ही होंगें कि आम तौर पर्यटन की इच्छा रखने वालों का ध्यान देश के उत्तरपूर्वी राज्यों की तरफ बहुत कम जाता है। वास्तव में पूर्वोत्तर भारत खूबसूरत जगहों का बहुत है। जहां  प्राकृतिक सुंदरता बार बार बुलाती है। वहां के जन जीवन की  विविधता हर दिल को आकर्षित करती है। कुछ लोगों को वहां के बारे में गलतफहमियां भी होती हैं  वहां सैलानी के तौर पर जाने की पूरी जानकारी भी नहीं होती। हम आपको बताएंगे नागालैंड में पर्यटन का सही राह और ढंग तरीका। नागालैंड के खूबसूरत पर्यटन स्थल और उन तक पहुंचने के लिए आसान मार्ग भी उपलब्ध हैं। इस सारे पर्यटन प्रोजेक्ट पर कितना कितना खर्चा आएगा हम यह भी बताएंगे। कितने खर्चे में आप कितने दिन में आप  सकेंगे हम यह भी बताने की करेंगे। 

आप से अपनी इस वार्ता के दौरान हम एक बार फिर दोहरा दें कि नागालैंड पूर्वोत्तर भारत का एक बेहद खूबसूरत राज्य है, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य, समृद्ध संस्कृति और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां कई आकर्षक पर्यटन स्थल हैं, जिन्हें आप कुछ दिनों में ही  आराम से देख सकते हैं। मुख्य पर्यटन स्थलों और वहां तक पहुंचने के मार्ग के बारे में जानकारी इस प्रकार है। सबसे पहले हम बात  कोहिमा की। 

बहुत सी बातों के लिए प्रसिद्ध राज्य नागालैंड की बात करें तो कोहिमा खुद में ही बहुत विशेष है और कोहिमा वॉर सेमेट्री तो बहुत ही। यह स्थल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की स्मृति में बनाया गया है। यहां थोड़ा सा ध्यान मग्न होते ही आप अनुभव कर सकेंगे युद्ध के उस बेहद भयावह समय वह दर्द। उस  बलि ले ली इसका सही शायद  सके।   

बहुत सी विशेषताओं वाले नागालैंड में एक और विशेष गांव भी है जिसे त्सेमिन्यु विलेज कहा जाता है। अंगामी जनजाति की परंपराओं और संस्कृति को जानने का ही बेहतरीन स्थान है।  अंगामी जनजाति के जनजीवन की परंपराओं और संस्कृति की महक आप  में बहुत , महसूस कर सकेंगे। 

ज़िंदगी में पर्यटन के दौरान झीलें शायद आप ने भी बहुत देखी होंगीं लेकिन दिजू लेक का जलवा तो बिलकुल ही अलग। यह एक एक खूबसूरत पहाड़ी झील, जो प्रकृति प्रेमियों के लिए आदर्श भी कही जा सकती है। इसकी  खूबसूरती देखते ही बनती है। प्रकृति की छटा का अंदाज़ ही अलग है इस झील में। 

पर्यटन शुरू समय कोहिमा तक कैसे पहुंचें यह सवाल भी बहुत महत्वपूर्ण है। हवाई  निकटतम हवाई अड्डा है दीमापुर। दीमापुर हवाई अड्डा कोहिमा से लगभग 70 किमी की दूरी पर है। जिसे सड़क मार्ग से बहुत ही आसानी से  तय किया जा सकता है। 

कोहिमा जाएं तो दीमापुर भी महत्वपूर्ण है। कई बार दीमापुर पहले आ जाता है और कई बार कोहिमा।   लेकिन दीमापुर कैसे पहुंचा जाए तो यह जानना भी ज़रूरी। इसकी चर्चा भी हम करेंगे ही। दीमापुर से टैक्सी या बस द्वारा आप लोग कोहिमा पहुंच सकते हैं। टैक्सी का एकतरफा किराया अनुमानता ₹2000-3000 होगा। यह दर कभी कभार कम ज़्यादा भी हो सकती है। इसलिए अब आती है कोहिमा से दीमापुर जाने की बात। इस पर भी समय तो  लेकिन कितना? समय की बात भी आवश्यक  है। आम तौर पर दीमापुर से कोहिमा पहुंचने में लगभग 2-3 घंटे लगते हैं। इतनी दूरी और इतना समय शायद सही भी है। 

उत्तर पूर्वी भारत देखते समय नागालैंड जानेवाली इस पहली ही ट्रिप पर खर्च की बात करें तो होटल  में रहने का खर्च  ₹2000-₹5000 प्रति रात आ सकता है। होटल के मुताबिक कुछ कम ज़्यादा भी संभव है। इस तरह भोजन पर ₹500-₹1000 प्रति दिन दिन आ।  इस मामले में भी कम ज़्यादा की संभावना बानी रहती है। इसके साथ साथ लोकल आवाजाई का खर्चा भी होता है। स्थानीय यात्रा: ₹500-₹1000 प्रति दिन के हिसाब से पड़ सकती है। कुछ और स्थान और कुछ और बातें हम आपको अलग पोस्ट  में बताने  वाले हैं। आपके ज्ञान  वृद्धि होगी और साथ ही कैरियर और कारोबार में भी फायदा होने की संभावना रहेगी।  

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गुरुवार, सितंबर 26, 2024

पर्यटन मंत्रालय कल विश्व पर्यटन दिवस मनाएगा

पर्यटन मंत्रालय: 26 September 2024 at 6:29 PM by PIB Delhi Azadi ka amrit mahotsavg20-india-2023

इस साल की थीम है ‘पर्यटन और शांति’

*माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ विज्ञान भवन में किए जाने वाले समारोह में मुख्य अतिथि होंगे

*मंत्रालय ‘सर्वश्रेष्ठ पर्यटन ग्राम विजेताओं’ की घोषणा करेगा


नई दिल्ली
: 26 सितंबर 2024: (पीआईबी दिल्ली//इर्द-गिर्द डेस्क)::

पर्यटन मंत्रालय 27 सितंबर को ‘पर्यटन और शांति’ थीम के साथ ‘विश्व पर्यटन दिवस-2024’ मनाएगा जिस दौरान विकास के साथ-साथ वैश्विक सद्भाव को भी काफी बढ़ावा देने में पर्यटन की अहम भूमिका पर प्रकाश डाला जाएगा। यह समारोह नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित किया जाएगा। माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल रहेंगे।

इस अवसर पर केंद्रीय रेल, सूचना और प्रसारण, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव, केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री श्री किंजरापु राममोहन नायडू, केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, पर्यटन राज्य मंत्री और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री श्री सुरेश गोपी की भी गरिमामयी उपस्थिति रहेगी।  

इस कार्यक्रम में पर्यटन मंत्रालय की निम्नलिखित अनगिनत पहल को दर्शाया जाएगा:

पर्यटन मित्र

सर्वश्रेष्ठ पर्यटन ग्राम विजेता

आतिथ्य शृंखलाओं के साथ उद्योग साझेदारी

पर्यटन और आतिथ्य को उद्योग का दर्जा - एक पुस्तिका

अतुल्य भारत कंटेंट हब

विश्व पर्यटन दिवस का इतिहास, महत्व और थीम:

सतत विकास और विशेष रूप से गरीबी उन्मूलन के लिए पर्यटन को प्रमुख माध्यम के रूप में इस्तेमाल करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संघटन (यूएनडब्ल्यूटीआर) ने प्रत्येक वर्ष 27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। वर्ष 1980 में पहली बार विश्व पर्यटन दिवस मनाया गया था। यह तिथि 1970 में संगठन की विधाओं को स्वीकार करने की वर्षगांठ का प्रतीक है, जिसने पांच वर्ष बाद संयुक्त राष्ट्र पर्यटन की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। हर साल विश्व पर्यटन दिवस एक विशेष थीम के तहत मनाया जाता है। इस साल की थीम ‘पर्यटन और शांति’ है।

***//एमजी/वीएस//रिलीज़ आईडी: 2059187